एक विशेष निवेदन

October 1997

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

विगत माह सितम्बर 97 का अखण्ड-ज्योति का अंक ‘क्रान्ति विशेषांक के रूप में प्रकाशित हुआ है। यह मातृसत्ता को समर्पित एक विशेषांक है। शान्तिकुञ्ज द्वारा घोषित रजत जयन्ती वर्ष संसर्ग समारोहों का विस्तार वे विवेचन इस अंक में तथ्यों, आँकड़ों एवं प्रतिपादनों के माध्यम से हुआ है। नवयुग का आगमन इन्हीं सूत्रों के आधार पर होगा। जितने अधिक व्यक्तियों तक अंक पहुँचाया जा सके, इस दिशा में जितना अधिक पुरुषार्थ सम्भव है, वह अपने सभी परिजनों द्वारा गुरुसत्ता के प्रति सुमनांजलि के रूप में किया जाना चाहिए। जितनी प्रतियाँ अतिरिक्त मँगानी हों, उसके लिए ‘अखण्ड ज्योति संस्थान’ घीयामण्डी मथुरा से पत्र व्यवहार करें।

आंदोलन खड़ा किया था और ग्वालों का संगठन कर उन्हें कहा था कि तुम केवल अपनी अपनी उँगली लगा दो, यह गोवर्धन उठ जाएगा अर्थात् तुम्हारी थोड़ी-थोड़ी सहायता से यह आंदोलन सफल हो जायेगा और हुआ भी ऐसे ही। पूज्य आचार्य जी ने इतना बड़ा साहस गायत्री परिवार के छोटी सामर्थ्य वाले साधकों पर किया था कि बड़े आयोजन करने के लिए राजा, महाराजा, सेठों और अमीरों के सहयोग की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने यह सिद्ध करके दिखा दिया कि जिस प्रकार ने भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पहाड़ उठाने जैसा बड़ा कार्य ग्वालों की सीमित शक्तियों से कर लिया, उसी प्रकार यह गायत्री सशस्त्र कुण्डीय यज्ञ, जिसको सभी ने आश्चर्य की दृष्टि से देखा, गायत्री परिवार के मतवालों की संगठन शक्ति का फल है। सशस्त्र कुण्डीय यज्ञ के पश्चात् अब तक 24 हजार कुण्डों के यज्ञों को सम्पन्न कराके घर-घर में यज्ञ भगवान के प्रति आस्था व श्रद्धा उत्पन्न करना, उनके महान तप का ही परिणाम है। चारों वेदों का प्रकाशन भी कम गौरव की बात नहीं है। अभी तक किसी संस्था प्राचीन भाष्यों के आधार पर वेद प्रकाशित नहीं किये हैं।

परम पूज्य आचार्यजी हमारे हृदयों के सम्राट हैं। आध्यात्मिक उन्नति के लिए उन्होंने हमारे लिए उत्तम मार्ग प्रशस्त किया है। लुप्तप्राय गायत्री व यज्ञ विद्या का उन्होंने पुनरुत्थान किया है। गायत्री विद्या एक वर्ग विशेष तक सीमित थी। आज सभी लोग उससे लाभ उठा रहे हैं। उनके पथ-प्रदर्शन और सहयोग से लाखों व्यक्तियों ने भौतिक आध्यात्मिक शुभ परिणाम प्राप्त किये ओर कर रहे हैं। युग-निर्माण के क्रान्तिकारी प्रहरी तप और त्याग की साक्षात् मूर्ति हैं। नम्रता और सरलता उनके स्वभाव में कूट-कूट कर भरी हुई है। अहंकार उनके पास तक फटक नहीं सकता। संयम महान आदर्श हैं, जिनकी नस-नस से परमार्थ और सेवा की भावनाओं का महासमुद्र हिलोरें मारता है। आचार्यजी का वरद्हस्त सदैव हमारे ऊपर बना रहे है, माता से यही कामना है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles