संस्कार-महोत्सव से सम्बन्धित कुछ विशेष निर्देश

October 1997

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विराट संस्कार-महोत्सवों की शृंखला पुनः वर्षा के बाद अब 1 अक्टूबर, 1997 से आरम्भ हो रही है। यों इस विराट स्वर के कार्यक्रम इससे पूर्व भारत भर में 24 एवं दो भारत से बाहर यू. क्रे. (इंग्लैण्ड) लंदन में वेम्बले में तथा यू.एस.ए. (अमेरिका) की धरती पर न्यूयार्क नगर में मई 97 के बाद अगस्त-सितम्बर में सम्पन्न हुए हैं। अब जो शृंखला आरम्भ हुई है, यह सतत् जून 98 तक चलती रहेगी एवं पूरे देश को मथती रहेगी। यह ने केवल वहाँ की भूमि के, वहाँ रहने वाले लोगों के प्रसुप्त संस्कारों को जगाएगी, अपितु षोडश संस्कारों के माध्यम से जन -जन में नयी चेतना का समावेश करेगी। संस्कार अधिक से अधिक रुचि के साथ अधिकाधिक व्यक्तियों की भागीदारी के साथ सम्पन्न हो, यह लक्ष्य रखा गया है एवं यही शृंखला आगे भी न्यूजर्सी (यू.एस.ए.) में होने वाले विराट संस्कार महोत्सव-वाजपेयी स्तर के ज्ञान यज्ञ मल्टीमीडिया एक्जीविषन (23, 24, 25, 26 जुलाई, 1998 ) के बाद 97-99 में भी चलती रहेगी। जब तक की सारा देश विश्व संस्कारों से अनुप्राणित नहीं हो जाता।

हिन्दी भाषा, उड़िया, गुजराती भाषी ऐसे क्षेत्र जहाँ मिशन पहले से ही बहुत विराट परिमाण में जन-जन तक पहुँच चुका है, प्रचारात्मक के बाद अब रचनात्मक-सुधारात्मक कार्यक्रम भी चालू हो चुकें है, वहाँ अब इन कार्यक्रमों के स्थान पर संगठनात्मक स्तर के एवं भावी पूर्णाहुति की तैयारी के निमित्त कार्यक्रम होने चाहिए थे, फिर भी जन उत्साह को देखते हुए एवं जो अश्वमेधों में अपने स्थान का प्रतिनिधित्व तो कर सकें, किन्तु अपने यहाँ आयोजन नहीं कर सके, उनकी इस इच्छा को नैष्ठिक साधकों के निर्माण व संस्कारों का सम्पन्न कराने देने की भावना के साथ स्वीकृति दे दी

गई। अब ये सभी स्थान व इनके कार्यकर्ता प्रौढ़ता की सीमा पार कर चुके हैं। उन्हें कौतुक प्रदर्शन भरे कार्यक्रम से ऊँचा उठाकर कुछ अतिसामान्य कर दिखाने हेतु सुनियोजित कार्य पद्धति से जोड़ने का मन था, सो उस अब वसंत पर्व 1998 तक के लिए आगे बढ़ा दिया है। यह सभी उन कार्यकर्ताओं के लिए जहाँ कार्यक्रम हो चुके, अनुयाज प्रक्रिया होगी। इन्हीं स्थानों पर भविष्य में संगठनात्मक कार्यक्रम सम्पन्न होंगे, जिनमें मिशन की संचालन मण्डली के 15 सदस्यों में से वरिष्ठ कार्यकर्ता भागीदारी करेंगे।

जहाँ तक नवलपरासी, नेपालगंज, बीरगंज (नेपाल), रानीखेत (कुमायूँ) नैमिषारण्य, शिरपुर (धुले), चंडीगढ़ भिवण्डी (ठाणे), धर्मशाला काँगड़ा-हिमाचल बाड़मेर (राजस्थान), मदुराई (तमिलनाडु), विशाखापट्टनम (आँध्र), मद्रास (चेन्नई), गंगटोक (सिक्किम) जैसे स्थानों का प्रसंग है वहाँ यह तो समझ में आता है कि चूँकि यहाँ अभी तक इस विराट स्तर के आयोजन पूर्व में नहीं हुए, अतः इन्हें महत्व दिया जाना चाहिए। किन्तु शेष सभी कार्यक्रम जहाँ हो रहे हैं, वहाँ जन उत्साह ही प्रधान रहा है, जिस कारण वहाँ संस्कार महोत्सवों के लिए अनुमति देनी पड़ी है। अब कुछ महत्वपूर्ण बिन्दु सभी परिजनों पाठकों हेतु यहाँ दिये जा रहे हैं ताकि वे वर्तमान में चल रही शृंखला एवं भावी कार्यक्रमों के विषय में भी अपनी सोच को उस स्तर तक लाकर विकसित कर सकें। यह हो सका तो ही पूज्यवर को वैचारिक क्रान्ति-ज्ञानयज्ञ की प्रक्रिया जन-जन तक पहुँच सकेगी। कुछ बिन्दु इस प्रकार हैं :-

सभी परिजन यह मानकर चलते हैं कि हमारा कार्यक्रम विराटतम एवं अद्वितीय होने जा रहा है। इसमें शान्तिकुञ्ज के वरिष्ठ से वरिष्ठ कार्यकर्ता का आना अत्यधिक अनिवार्य है। यह मानकर नाम छाप देते हैं व प्रचार यही करते हैं कि अमुक-अमुक सज्जन आ रहे हैं। एक साथ चार टोलियाँ हम एक अक्टूबर को रवाना कर रहे हैं। एक साथ चार कार्यक्रम भिन्न भिन्न स्थानों पर भौगोलिक दृष्टि से बड़ी दूरियों पर सम्पन्न होने जा रहे हैं। यह तो मात्र नवम्बर तक उसके बाद छह टोलियाँ हो जायेंगी एवं छय कार्यक्रम एक साथ मई जून माह तक चलते रहेंगे ऐसे में यह आग्रह करना कि अमुक भाई साहब या बहिनजी को हमारे यहाँ आना चाहिए, न केवल अनौचित्यपूर्ण है, अपनी अपरिपक्वता का परिचायक भी है। ऐसे में फोन फैक्स, पत्र, परिजनों की भीड़ लेकर शान्तिकुञ्ज पर चढ़ाई करने की बजाय अपना ध्यान अपने आस पास के क्षेत्र में सक्रियता बढ़ाने की ओर अधिकाधिक लगाना चाहिए।

जिस चौदह सदस्यीय दल को यहाँ से भेजा जा रहा है, वह परमपूज्य गुरुदेव, वंदनीया माताजी की शक्ति को लेकर आ रहा है। सभी वरिष्ठ स्तर के साधक स्तर के कार्यकर्ता है। किसी को भी किसी से कम न माने, अपने कार्यक्रम को विशिष्ट मानते हुए किसी भी वी.आई.पी. स्तर के कार्यकर्ता की माँग न करें तो अच्छा है। बार बार आग्रह करने पर नीतिगत निर्णय के अंतर्गत शान्तिकुञ्ज से प्रार्थना अमान्य होने पर सभी अकारण दुखी होंगे।

अब नये संस्कार-महोत्सवों को 1998 की अक्टूबर से वसंत पंचमी 1999 तक की अवधि में किया जा रहा है। प्रस्तुत वर्ष की शृंखला में भी स्थान खाली नहीं है। जितनी टोलियाँ जा रहीं हैं, इनसे अधिक बड़ा पाना शान्तिकुञ्ज का संचालन मण्डल आवश्यक मानता है। कोई भी अतिरिक्त विशेष टोली का आग्रह न करें। दो वाहन के साथ आ रही टोलियों के सभी सदस्य पूर्णता प्रशिक्षित एवं स्वयंसेवक स्तर के हैं। इन्हीं को मंच से प्रवचन देते भी देखा जा सकेगा। संस्कृतनिष्ठ कर्मकाण्ड सम्पन्न कराते भी तथा प्रदर्शनी खड़ी करने जैसा पुरुषार्थ करते भी देखा जा सकता है। आप सभी उनका यथा-सम्भव सहयोग करें, उनके माध्यम से गुरुसत्ता की ऊर्जा को ग्रहण करने का प्रयास करें।

मंच की गरिमा बनाए रखना सभी का दायित्व है। गायत्री परिवार के कार्यक्रम अध्यात्मिक कार्यक्रम हैं, राजनैतिक सभाएँ नहीं, जहाँ मंच पर ठूँस ठूँस के व्यक्तियों को बैठा दिया जाता हो। कृपया गरिमा को बनाये रखने में भेजे गये दल के सदस्यों का सहयोग करें।

जहाँ तक सम्भव हो, कार्यकर्ता गोष्ठी हर स्थान पर कार्यक्रम के पूर्व या टोली रवाना होने के पूर्व अवश्य रखी जाए ताकि भविष्य का अनुयाज-प्रक्रिया को गतिशील किया जा सके।

विस्तार से व्यवस्था-निर्देश हेतु 1 अक्टूबर के पाक्षिक (प्रज्ञा अभियान) के पृष्ठ दो को पढ़े प्रत्येक आयोजक मण्डल को इस आशय के पत्र भी अलग से भेजे गये हैं। सभी को यह पत्र, यह लेख एवं पाक्षिक के संपादकीय पढ़ कर सुनाएँ एवं तदनुसार ही अपनी रीति-नीति बनाएँ। सभी को दीपावली के उजासपर्व की भावभरी मंगल कामनाएँ।

*समाप्त*


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