वह आत्माओं से बातें करती है

October 1997

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

वह लंकाशायर में एक लोहार के घर पैदा हुई थी। अपने व्यवसाय की दृष्टि से उसके पिता साम की गणना गुणी और सफल व्यक्तियों में की जाती थी। पेशे से लोहार होते हुए भी नफासत उनके स्वभाव का हिस्सा थी। वह एक संवेदनशील इनसान और शायद स्वाभाविक रूप से मनोवैज्ञानिक थे। पिता के यही गुण उसने अपेक्षाकृत अधिक विकसित रूप में पाए थे। वह अभी बच्ची थी कि साम पर उस अवस्था का एक रहस्योद्घाटन हुआ कि उसकी बेटी एक खास मनोवैज्ञानिक विशेषता की मालिक है। हुआ यों कि एक रात उनकी बराबर वाली गली में आग लग गयी। आग के बारे में जैसे ही साम और उसकी पत्नी को पता चला, वे तत्काल उस ओर दौड़ पड़े। जिस गली में आग लगी थी उसमें साम का एक प्रिय मित्र सपरिवार रहता था।

आग का खबर उसे भी मिल चुकी थी। हालाँकि वह अभी सोने के लिए बिस्तर पर लेटी ही थी, लेकिन इसके बावजूद यह सुनकर उससे रहा न गया। वह जल्दी से कपड़े पहनकर अपने माता - पिता की तलाश में निकल पड़ी। जब वह उस गली में दाखिल हुई, जिसमें आग लगी थी तो उसने देखा कि गली में जगह - जगह लाग जमा हैं। वहीं पास में एक बुरी तरह जले हुए व्यक्ति को स्ट्रेचर पर डालकर उस मकान से बाहर लाया जा रहा है, जिसमें उसके पिता के मित्र रहते थे। तनिक आगे बढ़कर उसने देखा तो पहचान गयी, अरे यह तो मिस्टर टॉम हैं। वह घबराहट, भय ओर दिलचस्पी के साथ उस दृश्य को देखती रही। अकस्मात् उसे अहसास हुआ कि मिस्टर टॉम का एक शरीर तो झुलसी हुई अवस्था में स्ट्रेचर के बराबर चल रहा था।

उसे यह पहेली बड़ी अजीब लगी। उसे कुछ ठीक से समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर यह सब क्या है ? अभी उसका बाल मन इस गुत्थी को सुलझाने में जूझ रही कि तभी उसके पिता साम निकट आए और उसे डांटने लगे कि वह आधी रात को घर से निकलकर यहाँ क्यों आयी है, कहीं अगर उसे कुछ हो ? अभी वह कुछ कहने के लिए मुँह खोलती की पिता ने उसके कान मरोड़ें और उसे जबरदस्ती घर वापस भेज दिया। कुछ देर टॉम जब घर आये, तो यह देख कर विस्मित रहे गये कि उनकी लड़की भय ओर घबराहट से पत्ते की तरह काँप रही है। साम ने प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा और उसे सान्त्वना देते हुए उसकी घबराहट का कारण पूछा, तो उसने उसे एक जले हुए और एक ठीक टॉम की कहानी सुनायी। पिता ने यह सुनकर उसे प्यार से समझाने की कोशिश की, मेरी प्यारी बेटी ! ऐसा नहीं सोचा करते लगता है तुम्हें वहम हो गया है। लेकिन उसे उसी रात अंदाजा हो गया है कि उसकी बेटी ‘डोर्स स्ट्रोक्स’ भविष्य में एक असाधारण इंसान बनाने वाली है। क्योंकि साम को इस बात का भली−भाँति एहसास था कि डोर्स ने टॉम के साथ उसकी आत्मा को देखा था।

डोर्स का घराना धनी तो नहीं था किन्तु खाता पीता अवश्य था। इसी वजह से उसका बचपन बहुत आराम से बीता। पर वह अभी संसार और जीवन को ढंग से समझ भी नहीं पायी थी कि सहसा उसके पिता के जीवन की अन्तिम घड़ियाँ आ पहुँची। बेटी को प्राणों से प्रिय रखने वाले पिता ने विदा होते हुए उसका हाथ थाम लिया और कहा- ‘डोर्स तुम एक असाधारण इंसान हो। अब जो कुछ भी करना है, तुम्हें स्वयं ही करना है। मैं इस संसार में मौजूद नहीं होऊँगा। इसके बावजूद मेरा वादा है कि तुम्हारा हाथ थामने के लिए सदा मौजूद रहूँगा। बेटी से यह बात कहकर पिता विदा हो गये और डोर्स को भी इस सत्य का तीव्रता से अनुभव होने लगा कि यदि उसने अपने आपको नहीं संभाला तो उसकी जिन्दगी बरबाद हो जाएगी।

आग वाली दुर्घटना के बाद से पिता-पुत्री एक दूसरे के बहुत ही नजदीक आ गए थे। इस गहरी भावनात्मक समीपता के साथ ही साम ने डोर्स को तीव्रता से इस बात का एहसास दिलाना शुरू कर दिया था कि प्रकृति ने उसे क्या विशेषताएँ प्रदान की हैं और उनसे उसे क्या काम लेना चाहिए। इस सिलसिले में साम ने उसे बहुत कुछ सिखाया था, बहुत सी पुस्तकें पढ़ने को दी थीं और बहुत सी घटनाएँ सुनायी थीं। यानि की साधारण लड़कियों से भिन्न जिन्दगी बिताने के लिए काफी हद तक उसे तैयार कर दिया था।

अभी साम की मौत को थोड़े ही दिन बीते थे कि महायुद्ध शुरू हो गया। वह उन दिनों सिर्फ बीस वर्ष की थी। उसने तत्काल ही ‘वीमेन्स रायल एयर फोर्स’ में नौकरी कर ली। नौकरी के दौरान उसे अनेक लड़कियों से मित्रता करने का अवसर मिला। वह उनके साथ शाम को मनोरंजक स्थानों पर जाती, नृत्य करती हंसी खुशी की जिन्दगी बिताती इस सबके बावजूद अक्सर उस पर उदासी के तीव्र दौरे पड़ते। इन दौरों के असल कारण यह था कि वह उन युवा विमान-चालाकों को, जिनके साथ वह समय बिताती, प्रायः यों देखती कि वे अपने विमान उड़ा भी रहें हैं और उनसे बाहर भी तैरते हुए या उड़ते हुए नजर आ रहें हैं।

ऐसे नजारे जब उसकी दृष्टि पथ पर खिंच जाते, तो उसकी अन्तरात्मा गहराई से उदास हो जाती। क्योंकि वह अच्छी तरह जानती थी कि वह जिन युवकों को इस तरह अपने ख्याल में देख लेती है, वे फिर कभी वापस नहीं आते हैं। शुरू शुरू में तो वह इन मामलों को महज एक संयोग समझती रही, पर धीरे धीरे उसे अन्दाज हुआ कि इस प्रकार के जो दृश्य नजर आते हैं, वे शत-प्रतिशत सही साबित होते हैं और यह केवल संयोग नहीं हो सकता।

उन्हीं दिनों रायल एयर फोर्स से सम्बन्ध रखने वाले नवयुवकों का एक समूह एक रात स्थानीय गिरजाघर में आयोजित होने वाले एक आध्यात्मिक समारोह में चला गया। डोर्स भी उस समूह में थी। उस समारोह में जिस व्यक्ति को अपनी कला का प्रदर्शन करना था, जब वह मंच पर आया तो कुछ ही मिनट बाद उसने डोर्स की ओर इशारा किया। डोर्स इसका इशारा देखकर किसी सूत्रधार की तरह उठ खड़ी हुई। वह बोला लड़की याद रखो ! एक दिन वह भी आएगा जब तुम इस प्रकार के प्रदर्शन करोगी और हजारों लोग तुम्हें देखने आएँगे।

ये बातें सुनकर उसके सभी साथी हँसने लगे और उन्होंने उसका हाथ पकड़कर बैठा लिया उस रात जब वे लोग गिरजाघर से वापस हुए तो सभी उसका मजाक उड़ा रहे थे। कुछ दिनों उसके निकटवर्ती मित्रों के बीच यह मजाक इसी तरह चलता रहा और फिर बात आयी गयी हो गयी। इस भविष्यवाणी के कुछ महीनों के बाद ही उसने एक अमेरिकी पायलट जान फिशर से शादी कर लीं जान बहुत कुशल विमान चालक माना जाता था। शादी के कुछ ही दिनों बाद वह हर रोज की तरह उड़ान पर गया और फिर वापस नहीं आया। डोर्स ने अपनी सभी अलौकिक शक्तियाँ लगाकर जान फिशर के बारे में कुछ जानना चाहा, लेकिन हर बार उसके मस्तिष्क के सामने एक काली चादर सी तन जाती।

डोर्स को अपने पति से प्रेम था। वह उसके बच्चों की माँ बनने वाली थी। ऐसे में उसके लिए जान से अलग हो जाना एक असह्य घटना थी। अपने गहरे भावनात्मक आघात से उबरने के लिए वह एक गुह्य-विज्ञानी से जाकर मिली। उस गुह्यविद्याविद् तांत्रिक ने बताया कि जान मारा जा चुका है। और वह उसकी प्रतीक्षा करना छोड़ दे। लेकिन उसका अंतर्मन इस सत्य को स्वीकार करने के लिए तैयार न था। हालाँकि इसके बावजूद इस हकीकत को माने बिना अन्य कोई उपाय भी तो न था। अतः वह सदमे निढाल कर वापस आयी।

घर पहुँचते ही वह अपने बिस्तर पर जा गिरी तभी अचानक कमरे का दरवाजा बहुत जोरदार आवाज से खुला वह समझी की उसकी माँ आयी है, पर जब उसने गर्दन घुमाकर देखा तो अचरज का ठिकाना न रहा, वहाँ तो उसके पिता साम खड़े थे वे बिलकुल वैसे ही लग रहे थे जैसा की अपनी मौत से पहले थे। पहले तो डोर्स को इस दृश्य पर यकीन नहीं हुआ, फिर उसने अपना यकीन करने के लिए उन्हें होठों ही होठों में आवाज दी।

हाँ बेटी! मैं ही हूँ। तुम्हें मालूम है न, कि मैंने तुमसे कभी झूठ नहीं बोला ? वह उसी अन्दाज में बोल रहे थे, जैसे अपने जीवनकाल में बोला करते थे। हाँ, पिताजी ! मुझे आप पर पूरा विश्वास है। वह भावावेश में बोल पड़ी। तब बेटी ! यकीन रखो, मैं अब भी तुमसे झूठ नहीं बोल रहा। तुम बिलकुल परेशान न होओ। जान मरा नहीं है। क्रिसमस के दिन तुम्हें एक पक्का सबूत भी मिल जायेगा। अपने इसी कथन के साथ साम का अस्तित्व हवा में विलीन हो गया।

इस घटना के ठीक तीन महीने बाद वार ऑफिस की ओर से डोर्स को सरकारी तौर पर सूचित किया गया कि जान फिशर युद्ध क्षेत्र में वीरता दिखाते हुए शहीद हो गया है। लेकिन पड़ोसियों-कुटुम्बियों-मित्रों के लिए यह बात विस्मयकारी थी कि वह डोर्स जो कुछ दिनों पहले तक सदमे से निढाल थी बहुत शान्तिपूर्ण और आश्वस्त लग रही है। वार आफिस से जान के निधन का समाचार मिलने के बाद इसके बजाय कि वह जान के मारे जाने का शोक मनाती, उसने इस समाचार की सत्यता से ही इनकार कर दिया।

पहले तो उसकी माँ और उसके मित्रों ने उसे बहुत समझाया, लेकिन जब उन्हें अनुमान हुआ कि वह इसके बारे में कुछ सुनने -समझने के लिए तैयार ही नहीं, तो उन्होंने यह समझकर उसे हाल पर छोड़ दिया कि सदमे ने मस्तिष्क को प्रभावित किया है, अतः इस सतत् को स्वीकार करने के लिए तैयार ही नहीं कि वह विधवा हो चुकी है।

सब लोग इस बात की समीक्षा करने लगे कि कब वह सत्य का सामना करने में समर्थ हो पाती है। लेकिन तभी क्रिसमस के दिन उसके पिता की भविष्यवाणी के अनुसार यह समाचार आ गया कि जान फिशर का पता चल गया है और वह बेहद जख्मी हालत में जिन्दा बच गया है। उसके सकुशल घर आने के बाद उसे गहराई से विश्वास हो गया कि शरीर से परे जीवन है और सूक्ष्मशरीर सूक्ष्मशरीर -धारी लोग समय-समय पर सहायता भी पहुँचाते हैं।

उसे स्वयं भी सूक्ष्मशरीरधारी लोगों की आवाजें यदा-कदा सुनायी पड़ने लगी थीं। इसी समय उनका पाँच माह का बेटा मर गया। बेटे की दुःखद मृत्यु ने उसे शरीर से परे जीवन के प्रति और अधिक सचेतन किया। हालाँकि दुर्भाग्यवश उसके एक के बाद तीन बच्चों की मृत्यु ने उसकी चेतना को अन्दर तक झकझोर दिया था। अन्त में उसने एक बच्चों टेरी को गोद लिया, लेकिन लगातार की इन मौतों ने उसे सूक्ष्म जगत से अधिक जोड़ दिया।

यह बताना बड़ा मुश्किल है कि उसकी प्रसिद्धि घर - घर कैसे पहुँची ? 1978 में उसने अमेरिकी टेलीविजन पर लगातार कई ऐसे प्रोग्राम किये जिनमें उसने अपनी अध्यात्मिक विशेषताओं को प्रदर्शित किया था। उसके ये प्रोग्राम इतने सफल हुए कि वह हर खास व आम लोगों में बेहद लोकप्रिय हो गयी। उसकी पुस्तक ‘वायसेज इन माई ईयर्ज’ को सबसे अधिक बिकने वाली पुस्तक का नाम दे दिया गया। वह जिस जगह जाती, लोग वहाँ जमा हो जाते और उससे यह इच्छा प्रकट करते कि दूसरे संसार को सिधार जाने वाले उनके प्रियजनों से उनका करा दें। उससे निजी- तौर पर सूक्ष्म शरीरी लोगों का संपर्क चाहने वालों की सूची हजारों तक जा पहुँची। उसने कई देशों के तूफानी दौरे किए, जिनमें उसे क्षण - भर की मोहलत नहीं मिलती थी और जब वह आस्ट्रेलिया के दौरे पर सिडनी पहुँची , तो आस्ट्रेलिया के लोग उसके प्रोग्राम के टिक खरीदने के लिए घण्टों कतार में खड़े रहने में गर्व का अनुभव करते थे।

विज्ञानवेत्ता सूक्ष्मजगत से उसके गहरे संपर्क को देखकर विस्मित होते हैं। जो अनुभव पा चुके हैं, उन्हें डोर्स का यह सूक्ष्म - सार इतना वास्तविक लगता है, जितना कि हमारा वास्तविक संसार। डोर्स और उसके संपर्क में आने वालों को न केवल मौत के पश्चात् जिन्दगी पर विश्वास है, बल्कि वह अपने हर प्रोग्राम को इस विश्वास के और दृढ़ होने का प्रमाण घोषित करती है। डोर्स स्ट्रोक्स का कहना है कि उसकी हकीकत एक टेलीफोन एक्सचेंज की जैसी है, जो आत्माओं से उनके प्रियजनों का संपर्क कायम कर देता है। वह लोगों को उनके प्रियजनों के चेहरे तो नहीं दिखा सकती, किन्तु उसकी आवाज अवश्य सुना सकती है। कभी - कभी वह अपने बच्चों की आत्माओं को भी देखा करती थी और इसका कारण उनसे उनका गहरा भावनात्मक जुड़ाव था।

वह अपने संपर्क में आने वाली आत्माओं से कुछ इस तरह बातें करना शुरू करती, मानो वे उसके सामने बैठी हों और उनसे सुखदायक मूड में हलके - फुलके विषयों पर विषयों पर वार्तालाप हो रही हो। सूक्ष्म - जगत में उसी पहुँच कुछ इस तरह जाती, जैसे लोग गाड़ी या बस की यात्रा में अजनबी व्यक्तियों से बातचीत शुरू कर देते हैं। इस बातचीत में उसे अनेक अनुभव हुए। विभिन्न तरह की आत्माओं की अलग - अलग स्थिति एवं प्रकृति का पता चला।

डोर्स का कहना है कि कुछ आत्माएँ कम हिम्मत वाली होती हैं। ऐसी आत्माओं के साथ बातचीत करते हुए वह उत्साह बढ़ाती है और प्रायः निःसंकोच होकर रहती है, डियर जरा जोर से बोलो, तुम्हारी आवाज साफ नहीं आ रही है। इन शर्मीली आत्माओं के अतिरिक्त कुछ आत्माएँ ऐसी भी होती है। जो जीवित व्यक्तियों से संपर्क करने के लिए का जरिया है, अतः वे उससे बातें करने के लिए जब व्यग्रता प्रकट करती हैं। तो वह उनसे शिष्टता से अपनी बारी की प्रतीक्षा करने का अनुरोध करती है। सूक्ष्म - संसार से संपर्क के इसी स्वाभाविक और निःसंकोच अन्दाज ने उसे असाधारण नारी बना दिया है।

एक बार वह स्टॉक ऑफ टेण्डर में 4 मई , 1974 को एक बड़े जनसमूह के सामने विशिष्ट प्रतिभा का प्रदर्शन कर रही थी कि सहसा उसे एक ऐसी जानी - पहचानी आवाज सुनायी दी, जो उसकी सूचनाओं के अनुसार अभी जीवित थी। उसने घबराई - सी आवाज में कहा, नहीं डायना, यह तुम नहीं हो सकतीं। फिर उस आवाज से उसका संपर्क टूट गया ओर उसने अपने कोनों का धोखा समझा लेकिन उसी शाम स्थानीय आकाशवाणी पर जब यह घोषणा हुई कि आज अपराह्न अभिनेत्री डायना जो कैंसर से पीड़ित थीं, अकस्मात् स्वर्ग - सिधार गयीं। तब डोर्स को अनुमान हुआ कि उसके कानों ने धोखा नहीं खाया था। उसकी मित्र ने इस संसार से विदा होते समय उसे आवाज दी थी और फिर वह ऊपरी संसार की ओर उड़ गयी थी।

इसी प्रकार की एक विचित्र घटना उसे टोमी कूपर के साथ पेश आयी । टोमी कूपर उन दिनों का एक विख्यात हास्य अभिनेता था। एक दिन टोमी टी.वी पर अपनी कला का प्रदर्शन कर रहा था कि सहसा वह लड़खड़ाया। उसने संभलने का काफी प्रयत्न किये, परन्तु जिन्दगी मोहलत समाप्त हो चुकी थी। कुछ क्षणों के अन्दर टोमी कूपर समाप्त हो गया। डोर्स इस प्रोग्राम में मौजूद थी। उसने देखा कि जैसे ही टोमी कूपर गिरा, उसके अस्तित्व में से एक इंसानी आकृति ऊँची उठी और फिर हवा में घुल−मिल - सी गयी।

इस घटना के थोड़े ही समय बाद डोर्स को लेस्टर की एक जगह पर एक ऐसे होटल में रात बिताने का अवसर मिला, जिसमें कूपर अपनी मृत्यु से पूर्व ठहर चुका था। डोर्स ने देखा कि उस कमरे में एक लम्बा - चौड़ा बिस्तर बिछा हुआ है। उसने कमरे में प्रवेश किया और इसी के साथ अपना कोट उतार कर कुर्सी की पुश्त पर डाला। पर्स मेज़ पर रखा और बिस्तर की ओर बढ़ी। उसी समय उसके कानों में टोमी कूपर की आवाज़ आयी, इस बिस्तर की मुझे आवश्यकता है। डोर्स ठिठक कर रुक गयी। फिर कमरे में धीरे - धीरे टोमी की हँसी गूँजने लगी और बढ़ते - बढ़ते यह आवाज जोरदार ठहाकों में बदल गयी। वह टोमी के इन ठहाकों को नजरअंदाज करते हुए बिस्तर पर जा लेटी। कोई और होता तो कमरा छोड़ कर भाग जाता। पर वह तो आत्माओं के साथ इतनी बातें कर चुकी थी कि उसे इस सबसे कतई डर नहीं लगा। फिर यह हुआ कि आधी रात को उसे चाय की जरूरत महसूस हुई। अभी उसने बिस्तर से उठकर फोन तक जाने का इरादा किया था, ताकि रूप सर्विस को फोन करके चाय मंगवा सके, तभी टोमी की मसखरी आवाज सुनायी पड़ी, छोड़ो भी चाय का चक्कर, ठाठ से बिस्तर पर लेटकर सो जाओ। ‘

ऐसी एक नहीं अनेकों घटनाएँ डोर्स के जीवन के साथ अभिन्नता से जुड़ी हैं। हजारों लोग उसकी इन विशेषताओं को स्वीकार भी चुके हैं। जबकि उसका कहना है कि यह विशेषता और कुछ नहीं, मानवीय संवेदनशीलता और चेतना का विकास हैं कोई भी उच्चतर संसार से संपर्क कर सकता है। ठीक वैसा ही संपर्क जैसा कि हमारे अपने संसार से है। इसमें अचरज की कोई बात नहीं। पर हम हैं कि जीवन को बस वर्तमान परिधि तक सीमित मान बैठे हैं। जबकि जीवन का विस्तार अनन्त है, वह शरीर तक सिमटा नहीं है।

अपनी बातों का प्रायोगिक औचित्य सिद्ध करने वाली डोर्स आत्माओं के जो संदेश, उनके सगे - सम्बन्धियों को देती है, उसे सुनकर वे सभी अचरज में पड़ जाते हैं। क्योंकि इसमें ऐसी अनेक बातें होती हैं जो उनके और उनका प्रिय परिजन की आत्मा के सेवा और किसी को नहीं मालूम। वे लोग जो उसकी इस सारी क्रिया को संदेह की दृष्टि से देखते हैं, कम से कम यह मानने पर तो मजबूर हो ही जाते हैं कि वह असाधारण संवेदनशील चेतना (एक्स्ट्रा सेन्सरी परसेप्शन) का प्रदर्शन कर रही है।

जबकि इस प्रक्रिया के दौरान डोर्स का यह मानना है कि वह जिन आत्माओं से संपर्क करती है उनके सिरों पर वह झिलमिलाता हुआ नीला प्रकाश देख सकती है। उसका यह भी कहना है कि किसी व्यक्ति की मौत को जितना ज्यादा समय बीत जाता है, उसकी आवाज उतनी ही साफ सुनायी देती है और कुछ दिनों पहले समाप्त होने वाले व्यक्तियों की आवाजें बहुत मद्धिम होती हैं और कई बार तो सुनायी ही नहीं देतीं। डोर्स ने अपनी पुस्तक ‘ एक होस्ट ऑफ वायसेज ‘ में कतिपय बहुत प्रसिद्ध व्यक्तियों की आत्माओं से अपनी मुलाकात का हाल लिखा है। इसी पुस्तकों में है कि 1974 नामक प्रसिद्ध उपन्यास के लेखक जार्ज आरवेल से उसकी बातें हुई। जॉन लेनिन और मार्क बोलन से भी उसकी दिलचस्प मुलाकातें हुई। ये दोनों पॉप संगीत के उज्ज्वल सितारों की हैसियत रखते थे। उसकी बात चीत नवयुवक अभिनेता रिचर्ड बेकन से हुई, जो 32 वर्ष की आयु में दिल का दौरा पड़ने से मर गया था। इनके अलावा ऐसी आत्माओं से भी उसकी मुलाकातें हुई हैं, जो बहुत ही दिव्य हैं और उच्चतर लोकों में निवास करती हैं।

इन आत्माओं से हुई रहस्यमय मुलाकातों के बारे में डोर्स का कहना है कि इन सभी में मानवता के प्रति अद्भुत प्रेम हैं ये मानव - कल्याण के लिए सतत् सूक्ष्म रूप से प्रयास करती हैं। इन सभी का मानना है कि समूचा विश्व इन दिनों एक भयावह संक्रमण से गुजर रहा है। बीसवीं सदी समाप्त होते ही इसका भी अन्त मानव की उज्ज्वल भवितव्यता के रूप में होगा। ये सभी दिव्य आत्माएँ इक्कीसवीं सदी उज्ज्वल भविष्य का पर्याय और मानव की अनिवार्य नियति मानती हैं। डोर्स स्ट्रोक्स का कहना है कि उनकी ही तरह हर व्यक्ति ऐसी रहस्यमय अनुभूतियों को अर्जित कर सकता है बशर्ते उसकी अभिरुचि भौतिक प्रगति के साथ अपनी आत्मिक एवं चेतनात्मक प्रगति की आरे भी हो।

क्या उन्हें पानी से भरी इस सुरंग में बैठकर अपनी जान खतरे में डालनी चाहिए। उस लड़के को खोजने के लिए , जो शायद अब तक मर भी चुका हो ? हाँ ‘, उन्होंने किसी अज्ञात प्रेरणा से यह खतरनाक फैसला किया। यह खतरा उन्हें उठाना ही चाहिए। उनका फैसला था। गोताखोरी का विशेष श्वास यंत्र प्राप्त करने का तो समय था नहीं। इसलिए क्रोनिन और रोड्डा ने अपनी - अपनी पीठ पर हवा के सिलेंडर कसे और चेहरों पर वे मुखौटे चढ़ा लिए जो आग बुझाते समय धुएँ से भरी बिल्डिंगों में घूसने के लिए पहने जाते हैं। ये उपकरण पानी के अन्दर गोता लगाने के लिए नहीं थे, लेकिन उन्होंने जल्दी से जलकुण्ड में इधर - उधर डुबकी लगाकर देखा लिया कि उनके सहारे वे साँस ले सकते हैं।

इस बीच पुलिस ने चौक की देख - रेख वाले कक्ष में एक ऐसे कर्मचारी को खोज निकाला था, जो फव्वारे की चक्कर काटती पानी की तेजधारा वाली प्रणाली को बन्द करने में सफल हो गया। पानी शाँत हो गया। 30 मीटर लम्बे रस्से से अपने को बाँधकर, जिसे उसके साथियों ने थाम रखा था, पहले क्रोनिन ने उस अँधेरे गर्त में पाँव डाले। उसने गड्ढे की तली छूने की कोशिश की लेकिन पीठ पर बंधे हवा के सिलेंडरों ने उसको उछाल दिया। उसका सिर जोर से उन दोनों पाइपों से जा टकराया, जो नाले के अन्दर से गुजरते थे, इससे उसका एक दाँत टूट गया और ठुड्डी कट गयी।

क्रोनिन नीचे ठहर सके, इसके लिए रोड्डा नाले के अन्दर क्रोनिन के कंधों के ऊपर ,खड़ा हो गया। क्रोनिन दीवारों के साथ - साथ टटोल - टटोल कर उस सुरंग की प्रणाली को समझने का प्रयास करने लगा। उसने उस सीधी सुरंग का मुहाना ढूँढ़ निकाला। लेकिन घुप्प अंधियारे में अकेले घुसना उसे खतरनाक लगा। वह तैरकर ऊपर निकल आया।

और कुछ ही क्षणों बाद उन दोनों ने दोबारा गोता लगाया। इस बार वे अपने साथ कोई दो मीटर लंबा एक बाँस भी ले गये थे, जिसके एक सिरे पर हुक लगा था। उन्होंने यह बाँस उस खड़ी सुरंग के अन्दर डाल दिया और उस समय तक टटोलते रहे, जब तक उसमें कुछ फँस नहीं गया उसे खींचने के लिए उन दोनों को बहुत जोर लगाना पड़ा। दोनों के दिल धड़क रहे थे - होनी हो चुकी है। पर उनके हाथ लगा था कचरे से भरा एक बड़ा - सा प्लास्टिक का थैला। आग बुझाने वाले दोनों जवान पानी के ऊपर आए तो पुलिस ने उन्हें अब खोज कर देने की सलाह दी। कार्ल को गायब हुए एक घण्टा हो चुका था और यह निश्चित - सा लगता था कि लड़का मर चुका है। चौक से भीड़ भी धीरे - धीरे खिसक चली थी।

लेकिन कार्ल अभी मरा नहीं था। सारे भरोसे टूट जाने और सारे सहारे छिन जाने बाद भगवान के प्रति विश्वास बाकी था। उसे यह उम्मीद बरकरार थी कि सर्वसमर्थ एवं परम दयालु परमेश्वर मुझ असहाय बालक की जरूर सुनेंगे। वह बड़ी आन्तरिकता और व्याकुलता के साथ पुकार रहा था - प्रभु ! मैं तुम्हारी शरण में हूँ। मुझे बचा लो, शरणागत वत्सल। शायद अपने भगवत् - विश्वास के कारण ही उसमें अभी मनोबल बाकी था। वह जब बहकर सुरंग में पहुँच गया था और तेजी से चक्कर काटती धारा के साथ बुरी तरह पटका और झंझोड़ा जा रहा था और उसके फेफड़े फटने - फटने को हो रहे थे, तभी भगवान को पुकारने के साथ ही उसकी उँगलियाँ किसी दीवार से खरोंच - सी खा गयीं पर दीवार बेहद चिकनी थी, फिर वह जा टकराया किसी गोल - सी चीज से, जो पाइप - सा लगता था। इस टक्कर से कार्ल की गति धीमी पड़ गयी और उसने चलकर जैसे - तैसे पाइप को पकड़ लिया और उछलकर पानी के ऊपर निकलने का प्रयास किया। वह सोच रहा था कि वह इसके सहारे पानी के ऊपर हवा में पहुँच जाए, पर तभी उसका सिर किसी सख्त चीज से टकरा गया। वह छत थी, तो कोई निकलने का रास्ता नहीं।

अग कार्ल किसी भी तरह साँस नहीं रोके रह सकता था। उसे जैसे - जैसे साँस लेनी ही थी। विकल मन से भगवान की याद करते हुए उसने अपना मुँह खोला। कितना अविश्वसनीय लगता है कि उस गुफा की एक दरार में उसे हवा की एक खोह मिल गयी थी। लंबी साँस उसने अपने फेफड़े भर लिए। जब उसने अपना चेहरा झुकाया तो वह पानी से जा लगा। यह पता करने के लिए कि साँस लेने की जगह उसके पास कितनी है कार्ल पाइप के आस - पास घुमा। बस कोई 30 सेंटीमीटर जगह थी। उसके सिर से बस थोड़ी -सी ज्यादा। उसे इस छोटे से खण्ड में ही रहना होगा। जब तक कोई सहायता न आ जाए। पर सहायता तो तभी आएगी, जब परम् दयालु भगवान कृपा करें।

फिर अचानक ही उसे आस - पास उफनता पानी शाँत होता जान पड़ा। कार्ल को अचरज - सा हुआ - तो क्या परमात्मा सचमुच मुझे बचाने के लिए किसी को भेज रहे हैं ? इस समय उसका मन बड़ी विकलता से प्रभु की याद करने में तल्लीन था। हालाँकि अब उस छोटी - सी खोह में भरी हवा उसे साँस लेने से क्षीण हो रही थी।

उसे न कुछ सुझाई दे रहा था, न कुछ सुनाई पड़ रहा था, कोई आता क्यों नहीं ? वह जोर से चिल्लाया। अपनी ही आवाज सुनकर उसे थोड़ी ढाँढस बंधी और फिर वह प्रतिदिन विद्यालय में दुहराई जाने वाली प्रार्थना गुनगुनाने लगा। पर अब तक वह थक चुका था। दिमाग के तन्तु ढीले पड़ने से वह जल्दी ही ऊँघने लगा। उसका मन हो रहा था कि आँखें मूँदकर वह थोड़ी देर सो ले। नीचे फँसे उसे एक घण्टा दस मिनट हो चुके थे। लेकिन उसे अपनी ही सोच पर हंसी आ गयी। सोएगा और यहाँ ? वह वह कर भी क्या सकता था। उसने स्वयं को पूरी तरह भगवान के हवाले करके आँखें मूँद लीं।

ऊपर चौक में एक एंबुलेंस कर्मचारी कार्ल की माँ कैथलीन पावेल के साथ खड़ा उन्हें बुरी से बुरी स्थिति के लिए तैयार करने की चेष्टा कर रहा था। वह साढ़े 6 किलोमीटर दूर स्थित अपने घर से भागी - भागी घबराई हुई यहाँ पहुँची थी। पुलिस उन्हें पास के स्टोर में ले गयी। कोई भी यह नहीं चाहता था कि वे उसे स्ट्रेचर और कम्बल को देखें, जो उनके बेटे की लाश के लिए यहाँ लाया गया था। कैथलीन पावेल को लोग घटनास्थल से जितना दूर रखने की कोशिश कर रहे थे, उतनी


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles