अपनों से अपनी की बात- - साधना वर्ग समारोह से उपजे दो महत्वपूर्ण कार्यक्रम

October 1997

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शान्तिकुञ्ज के रजतजयंती वर्ष के समारोहों के क्रम में तीन पूर्णिमाओं में तीन समारोह सम्पन्न हो चुके। प्रत्येक की अपनी विशिष्ट उपलब्धियाँ रही हैं। श्रद्धा-संवर्द्धन हेतु सम्पन्न गुरुपूर्णिमा पर्व, पर्यावरण संरक्षण स्वास्थ्य संवर्द्धन हेतु सम्पन्न श्रावणीपर्व के समारोहों का विस्तृत विवरण पहले ही परिजन पढ़ चुके हैं। इन पंक्तियों के आप तक पहुँचने तक अक्टूबर का सद्ज्ञान सदशिक्षा वर्ग का समारोह भी सम्पन्न हो चुकेगा। जो कि शरद पूर्णिमा पर आयोजित है। विगत माह साधना वर्ग के अंतर्गत परमवंदनीय माताजी की पुण्यतिथि पर जो आयोजन सम्पन्न हुआ, वह स्वयं में अति महत्वपूर्ण रहा है, अनेकानेक संकल्पों के साथ उसका समापन हुआ एवं ऐसा लगा कि साधना पक्ष का प्राधान्य इस मिशन की जड़ों में रहा है, उसके माहात्म्य व क्रियापक्ष को लोगों ने भली−भाँति समझा है, आत्मसात् किया है।

वस्तुतः देखा जाए तो परमपूज्य गुरुदेव एवं परमवंदनीय माताजी का सम्पूर्ण जीवन आस्तिकता के मूल्यों को जन-जन के जीवन में समाविष्ट करने हेतु ही नियोजित हुआ है। इस मिशन की धुरी ही वह रही है। उसके विना किसी भी क्रान्ति की सफलता की आशा नहीं की जानी चाहिए। इतिहास बताएगा किस तरह परमपूज्य गुरुदेव एवं शक्तिस्वरूपा माताजी ने अपने आपको एक साधक के रूप में गलाया, अपनी तप की पूँजी से यह मिशन खड़ा हुआ एवं हर व्यक्ति की प्राणचेतना में भाव-संवेदना भरकर उन्हें स्वयं का निर्माण करने के साथ राष्ट्रदेवता, मातृभूमि के प्रति समर्पित करने हेतु एकजुट कर विराट परिवार का रूप इसे दे दिया। बिना साधना, समर्पण एवं पारस्परिक आत्मीयता के सूत्रों का जीवन में उतारे कोई आध्यात्मिक संगठन नहीं चला सकता। यही अन्यान्य संगठनों से कुछ अलग हमारा गायत्री परिवार दिखाई देता है, जहाँ औरों के हित जीने की तमन्ना लिए हर धर्म-सम्प्रदाय वर्ग के व्यक्ति सूक्ष्म चैतन्य प्रवाह से जुड़ते ही चले जा रहे हैं। आस्तिकवाद जीवनचर्या में व्यावहारिक रूप में कैसे उतरना चाहिए, सभी समस्याओं का हम अध्यात्म कैसे हो सकता है, उज्ज्वल भविष्य एक भवितव्यता है, कैसे समूह मन के विकास से-एक साथ सम्पन्न की गयी साधना से आ सकता है, अध्यात्म के ध्यान-प्रयोगों से मानसोपचार कैसे सम्भव है, ये कुछ ऐसे महत्वपूर्ण पक्ष हैं जिन्हें गायत्री परिवार ने आज बड़ी सरलता से जन-जन के मन में बिठा दिया है। वैज्ञानिक आध्यात्मवाद के प्रवक्ता इसे ठोस तर्क, तथ्य व प्रमाणों के माध्यम से प्रमाणित कर जन-जन तक पहुँचाने वाले परमपूज्य गुरुदेव के साहित्य की यही विलक्षणता है कि व्यक्ति जो स्वयं को बुद्धिजीवी मानता है, सहज ही इस विराट विचार सागर में डुबकी लगाकर आस्तिकता को सही मायने में उतारता देखा जाता है। गाँव में रहने वाले सीधे साधे किसान वर्ग के, श्रमिक वर्ग के व्यक्ति ने तो परम्परा के रूप में वे संस्कार पाए हैं कि वह अध्यात्म उसके रोम-रोम में समाया हुआ है। उसे मात्र स्वावलम्बन-आर्थिक उपार्जन-पारमार्थिक सुनियोजन-स्वच्छता सभ्यता के प्रारम्भिक पाठ की आवश्यकता थी, वह भी गुरुसत्ता ने पूरी कर दी। जीवन साधना के इस पक्ष को ऋषियुग्म की सत्ता ने बड़ी सहजता ने निरक्षर अथवा कम शिक्षित जनता के दिलों को पहुँचाकर संस्कारों के समावेश की जीवन में अनिवार्यता बताकर उन्हें भी आत्मनिर्माण से राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में जोड़ दिया है। युगशक्ति का जागरण इतने बड़े समुदाय को जोड़े बिना हो भी कैसे सकता था। अब शिक्षित समुदाय की, तथा कथित प्रबुद्ध वर्ग की समस्या सामने है, जिसने बुद्धि विलास के साधन तो अनेकानेक जुटाएँ हैं, किन्तु उस मृगमरीचिका में वह स्वयं को ऐसा उलझा चुका है कि साधना तो दूर उसका जीवन एक ऐसी नैया की तरह दिखाई देता है, जो गतिशील तो है पर गंतव्यहीन होकर बेचैनी से बढ़ती चली जा रही है। कब लहरों के थपेड़े, तनाव के झोंके उसे उलट दें, पता नहीं। इसी वर्ग के लिए परमपूज्य गुरुदेव ने प्रतिपादन दिये, प्रत्यक्षीकरण हेतु ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान की स्थापना की एवं जीवन साधना द्वारा रोजमर्रा की जीवन चर्या में उतारने हेतु संजीवनी साधना सत्रों की शृंखला शान्तिकुञ्ज में चलाई। आज संस्कार महोत्सव जो स्थान-स्थान पर सम्पन्न हो रहे हैं, एक ही विशेष लक्ष्य के साथ हो रहे हैं कि यह वैज्ञानिक अध्यात्मवाद उन सभी तक पहुँचे, जो कर्मकाण्ड प्रधान धर्म को परम्परागत मानते हुए उसे नकारते हैं, ताल ठोंककर स्वयं को नास्तिक कहते हैं, जबकि व्यक्तिगत जीवन में हर क्षण हर कष्ट में भगवान को याद करते हैं। अखण्ड ज्योति के विज्ञानसम्मत प्रतिपादन भी इसी उद्देश्य के साथ प्रतिमास निरन्तर 58 वर्षों से प्रकाशित हो रहे हैं एवं यह ज्योति निरंतर प्रज्वलित ही रहेगी।

अब इस साधना वर्ग की एक विशिष्ट उपलब्धि के रूप में दो कार्यक्रम विशेष रूप से दिये जा रहे हैं।

(1) प्रतिदिन के लिए विशिष्ट शक्ति प्राप्त करने हेतु युगतीर्थ-ज्ञानगंगोत्री शान्तिकुञ्ज से शक्ति का संचार होने व उसे प्राप्त करने की साधना। इसमें अवधि 10 से 15 मिनट रखी गयी है। नये साधकों के लिए एक सरल उपक्रम बनाया गया है एवं पुराने शान्तिकुञ्ज आ चुके व्यक्तियों-परिजनों के लिए शान्तिकुञ्ज का ध्यान निर्धारित किया गया है। विस्तार से इस ध्यान-साधना का विवरण आगामी पृष्ठ में पढ़ लें।

(2) सभी धर्म सम्प्रदायों के व्यक्तियों-अनुयाइयों से अनुरोध किया जा रहा है कि वे हो प्रतिमास दो बार अमावस्या और पूर्णिमा के अवसर पर एक साथ संध्या 7 से 7.30 तक अपनी-अपनी उपासना पद्धति से उज्ज्वल भविष्य की प्रार्थना करें। आधे घण्टे की इस प्रक्रिया में वे द्वीप प्रज्वलित कर सकते हैं, मोमबत्ती जला सकते हैं अथवा लोबान जला सकते हैं। अपने-अपने घरों में एक साथ, एक दिन जब इतने अधिक व्यक्ति यह साधना उपक्रम मौन साधना-’ भविष्य उज्ज्वल बने विभीषिकाएँ मिटे' ऐसी प्रार्थना तथा दीपयज्ञ संक्षिप्त उपक्रम करेंगे तो इससे एक समष्टिगत मन-कास्मिक माइण्ड’ का निर्माण होगा, जिसका प्रभाव निश्चित ही चारों ओर वातावरण पर, सूक्ष्म जगत पर पड़ेगा। आशा की जानी चाहिए कि उत्साहपूर्वक यह उपक्रम सभी स्थानों पर चल पड़ेगा व सन् 2000 के आने तक गति पकड़ लेगा। अब यही तो एक मात्र आशा की केन्द्र रह गया है।


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