राष्ट्र प्रेम की पराकाष्ठा

January 1996

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

अब क्या होगा ? इस सवाल ने किसी एक दो को नहीं, समूची अबीसीनियाँ को चौका दिया। विगत दो दिनों से लड़ाई बन्द थी। सभी सैनिक अपने अपने तंबुओं में मीठी नींद में सो रहें थे। अचानक उन्हें पता चला कि इटली कि सेना बढ़ती चली आ रही है। नगर के बाहर पहुँचकर मुकाबला करने का समय नहीं रह गया था और नगर के भीतर मुकाबला करने का मतलब था अपने ही देश की तबाही बरबादी। देखते ही देखते सारा नगर किसी विधवा की माँग की तरह सूना ओर वीरान हो गया।

लेकिन उसे भयभीत होकर भागना कायरता लगी। घर के सदस्यों, हितैषियों, पड़ोसियों ने पन्द्रह वर्ष की इस लड़की को बहुत समझाया, लेकिन उसे अपने साथ भाग चलने के लिए राजी न कर सके। अपने देश का झण्डा, अपने मकान पर लगाकर झण्डे की बल्ली के सहारे खड़ी हो गयी। थोड़ी ही देर में इटली की सेना नगर में प्रवेश कर गयी। पूरा नगर सैनिकों के बूटों की धमक एवं उनके नारों की गूँज से भर गया। अचानक सभी का ध्यान बरबस उस ओर जा पहुँचा, जिस पर अबीसीनियाँ का झण्डा अपनी पूरी शान से लहरा रहा था। सब के सब उसी ओर बढ़ते चले गये, जहाँ वह अपने विचारों में खोई चुपचाप खड़ी थी।

“तुम कौन हों ?” कप्तान के स्वर की मृदुता थी।

“ अबीसीनियाँ की एक नागरिक। “

“ नगर के सारे लोग कहाँ जा छिपे हैं बेटी “ कप्तान के स्वर में उसे फुसलाने का पुट था।

“ यह बात बताने की नहीं हैं कप्तान। “ पन्द्रह साल की इस छोटी सी लड़की की दृढ़ता ने उसे हैरत में डाल दिया। उसकी आँखों में क्रूरता चमक उठी। उसने डपटकर पूछा- “ यह तुम्हें बताना होगा शैतान लड़की।

कप्तान की इस सख्त और भेड़िया जैसी गुर्राहट ने दी जाने वाली शारीरिक यातनाओं की ओर संकेत कर दिया था, पर उसके होठों पर एक मासूम सी मुस्कुराहट फैल गयी, जो कप्तान के लिए एक चुनौती थी।

क्रोध से विफरा हुआ कप्तान कांप रहा था। उसकी आँखों में अंगारे धधक रहें थे, मुट्ठियाँ कस गयी थी। उसका भारी बूट बेरहमी से उसके घुटने पर जा पड़ा और वह हल्की सी कराह के साथ चुप हो गयी।

टब कप्तान के आग बबूला होने की बारी थी। अपने दोनों बूटों से उसके नन्हें नन्हें पैरों को लहूलुहान कर दिया लेकिन वह अपनी जगह पर शान्त और स्थिर होकर रह गयी थी।

अपनी हार पर कप्तान झुंझला उठा। उसने उसका सिर पूरी ताकत से झण्डे की बल्ली से टकरा दिया। खून की एक पतली सी धार उसके सिर से बह निकली। उसके पैर पहले ही खून से लथपथ हो चुके थे।

वह शत्रुओं के घेरे में खड़ी थी। चारों ओर से उसे तरह तरह की यातनायें दी जा रही थी। वह तड़फ रही थी और कठोर दिल सैनिक उसकी बेबसी पर अट्टहास कर रहें थे। एक ने आगे बढ़कर उसकी फ्राक को चीर दिया उसे पूरी तरह नग्न करके घुटनों तक धरती में गाड़ दिया। तलवार से उसके स्तनों को काट दिया गया। इंसानियत काँप कर रह गयी।

लेकिन वह दृढ़ स्वरों में कहने लगी-” तुम जैसे शैतानों की हवस का शिकार होने के बदले अपने शरीर को देश की आजादी में निछावर कर देने में तुमने मेरा हाथ बँटाया है, इसके लिए मैं तुम्हारी आभारी हूँ। ”

डस पर धीरे धीरे बेहोशी छाने लगी। शारीरिक यातनायें सहते सहते उसके दिल दिमाग जवाब देने लगे थे। कप्तान की अनुभवी निगाहों ने यह कमजोरी परख ली थी। उसने एक बार फिर अपनी आवाज को मुलायम करने की कोशिश करते हुए कहा- “ तुम दूसरों के लिए यह मुसीबत क्यों झेल रही हो लड़की ?बता दो न लोग कहाँ छिपे है। ”

अंतिम क्षणों में उसे अपने पिता के शब्द याद आ गये “ देश की मर्यादा तुम्हारे हाथ में है लायना, दुश्मन को यदि तुम्हारा पता चल गया तो देश सदा के लिए गुलामी की बेड़ियों में जकड़कर रह जायेगा।

एक नयी शक्ति का संचार उसके अन्दर हो। उसने बड़ी फुर्ती से अपने पास खड़े एक सैनिक की तलवार छीन ली जब तक इस मामले की तह तक पहुँचते उसने अपनी पूरी जीभ काट कर कप्तान के आगे फेंक दी। उसके मुँह से

खरून उबल रहा था, लेकिन वह हँसने की कोशिश कर रही थी उसकी हँसी में अब खिलखिलाहट की मिठास नहीं थी, बल्कि ओ आ ओ आ..............ओ आ की कंपा देने वाली भयावह आवाज थी।

बेरहम कप्तान भी एक बारगी थरथरा उठा। पत्थर दिल सिपाहियों के सीने भी दहशत से भर उठे। इस दहशत और कंपकंपी के बीच कही उन सब के भीतर लायना के देश प्रेम के प्रति सद्भावना अंकुरित होने लगी थी। बढ़ती हुई सेना के कदम वापसी की ओर मुड़ने लगे।

लयना का शरीर भले ही नष्ट हो गया हो, लेकिन उसका अमर कर्तृत्व आज भी अबीसीनियाँ के इस चौराहे पर प्रतिमा बनकर स्थापित हैं जो आज भी मूक स्वरों में राष्ट्रप्रेम एवं मानवीय भावनाओं का ज्ञान करता है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118