स्वप्न जो हमें अचेतन की झाँकी दिखाते हैं

January 1996

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मनुष्य जीवन का सर्वाधिक समय सोने में लगाता है। यद्यपि दिन के 24 घण्टे में से सामान्यतः 16 घण्टे जागते हुए बिताते हैं परन्तु इन 16 घण्टों में अनेक विधि क्रिया कलाप अपनाता जाता रहता है। यदि एक ही काम में समय लगने की दृष्टि से समय विभाजन और उसका मूल्याँकन किया जाय तो इस निष्कर्ष पर पहुँचना पड़ेगा कि निद्रा ही मनुष्य का सबसे ज्यादा समय लेती है। स्वस्थ मनुष्य के लिए प्रायः 8 घण्टे नींद लेना आवश्यक समझा गया है।

नींद के संबंध में एक तथ्य यह प्रकाश में आया कि उस समय शरीर तो सोया रहता है किन्तु मन जागता रहता है और वह तरह तरह की हलचलें किया करता है। जागृत अवस्था में मनुष्य में जो क्रिया कलाप व्यवहार, आचरण और कार्यों के रूप में होते अभिव्यक्ति जान पड़ते हैं सुप्तावस्था में वही हलचलें मन को स्वप्न के रूप में दिखाई पड़ती है। जागृत स्थिति में मन के उचंगों को सामाजिक दबाव, नैतिकता और सभ्यता के मानदंडों को दबाना पड़ता है उन्हें व्यक्त होने से रोकना पड़ता है। लेकिन स्वप्न एक ऐसी स्थिति है वहाँ किसी तरह के दबाव अथवा नैतिकता बाध्य नहीं रहती, इसलिए सपनों में मन स्वच्छन्द होकर विहार करता है। इसी आधार पर प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक फ्राइड ने यह सिद्धाँत प्रतिपादित किया कि प्रत्येक स्वप्न अतीत की अनुभूतियों एवं दैहिक संवेदनों, विकारों का संयुक्त परिणाम होता है। स्वप्न यह स्पष्ट करते हैं कि हमारा चेतन मन हमारी भावनाओं के हाथ में एक खिलौना मात्र है।

फ्राइड ने यह कहा कि मन की उचित वासनाएँ ही प्रायः स्वप्न के रूप में प्रकट होती है और तरह तरह के रंग बिरंगा चित्र दिखाकर अपने तृप्ति का उपाय सृजती रहती है। लेकिन अब यह धारणा पुरानी पड़ चुकी हैं और यह स्वप्नों का एक पक्ष सिद्ध हुई, न कि उन्हें समझाने या व्याख्यायित करने का संपूर्ण आधार।

फ्राइड के अनुसार व्यक्ति के अवचेतन को किन्हीं सामान्य और संकीर्ण सिद्धांत द्वारा स्वप्न के माध्यम से समझाने का दावा किया जाता था और उन्हें अतृप्त इच्छाओं की अभिव्यक्ति मात्र समझा जाता था। किन्तु अब स्वप्न को सामान्यतः तीन वर्गों में रखा जाता है, एक स्वप्न वह जो शारीरिक दबावों से प्रभावित होने के कारण दिखाई देते हैं, दूसरे प्रकार के स्वप्न मानसिक स्थिति की प्रक्रिया स्वरूप उत्पन्न होते हैं, तीसरी श्रेणी में उन स्वप्नों को रखा गया है जिन्हें आध्यात्मिक स्वप्न कहा जाता है।

शारीरिक दशाओं से प्रभावित स्वप्नों में अपच, उदार विकार, सर्दी गर्मी की अधिकता, भूख -प्यास, शरीर से किसी वस्तु से स्पर्श होने, सोते समय वातावरण में विशेष बदलाव आ जाने के कारण दिखाई पड़ने वाले दृश्य आते हैं। ऐसे स्वप्नों में अतिरंजना और विकृति की प्रधानता होती है। उदाहरण के लिए सोते समय यदि कोई सुई या कील वगैरह चुभ रही हो तो स्वप्न में जान पड़ता है कि किसी ने भाला या तलवार घुसेड़ दी। सर्दी की अधिकता में बर्फ की सिल्लियों पर लेटने या ठंडे पानी में डूबने तथा गर्मी में आग से झुलसने जैसे अनेक दृश्य दिखाई पड़ते हैं।

मैंने मस्तिष्क पर पड़ने वाले विभिन्न दबावों, इच्छाओं और वासनाओं के आघातों से उत्पन्न स्वप्न दृश्य दूसरी श्रेणी में स्वप्नों की कोटि में आते हैं। इस प्रकार के स्वप्नों के संबंध में प्रसिद्ध मनःशास्त्री कार्ल शेरनल का कथन हैं- “ शरीर या मन का प्रत्येक विक्षोभ एक विशिष्ट प्रकार के स्वप्न को उत्पन्न करता है। यह ठीक है कि स्वप्न तथ्यों पर आधारित होते हैं किंतु वे तथ्यों की सीमाओं से बँधे नहीं होते। उनमें कल्पनात्मक उड़ान भी भरपूर होती है।

तीसरी श्रेणी के स्वप्न वे हैं जिन्हें आध्यात्मिक कहा जाता है। इन्हें अतीन्द्रिय भी कहा जा सकता है। फ्राइड ने इस तरह के स्वप्नों को यौन कुण्ठाओं द्वारा प्रेरित ओर दमित इच्छाओं का प्रतीक कहा था, यही स्वप्न अब अतीन्द्रिय अनुभूतियों के आधार सिद्ध हो रहे है। विभिन्न अनुसंधानों प्रयोगों और परीक्षणों द्वारा यह भली भांति स्पष्ट हो चुका है कि स्वप्न मात्र दमित यौन आकाँक्षाओं अथवा कल्पित क्लिष्ट मनोविकृतियों के दायरे में नहीं सिमट सकते अपितु उनके विविध वर्ग एवं स्तर है। अतीन्द्रिय अथवा आध्यात्मिक स्वप्न भी उनमें से एक है।

अतीन्द्रिय अनुभूतियों से स्पष्ट प्रमाण देने वाले विभिन्न स्वप्नों की वैज्ञानिक छान बीन से यही संकेत मिल रहें हैं कि व्यक्ति का अवचेतन मनुष्य के सामूहिक अवचेतन का ही अंग है। इसका विस्तार विराट् एवं महत् है विश्व के अनेक आविष्कार इसी अवचेतन की कृपा से संभव हुए है।

हेनरी फार डेसफार्टिस, डन पाइनकेयर जैसे गणितज्ञों को स्वप्न से मार्गदर्शन होने की घटनाएँ सर्वविदित है। सिलाई की सुई से लेकर बंदूक के लिए शीशे के छर्रो और मनुष्य तक की सैकड़ों वैज्ञानिक आविष्कारों की सफलताओं का आधार स्वप्न प्रेरणायें रही है। विश्व विख्यात संगीतकार मीजार्ट को एक ललित संगीत धुन एक ही बग्घी में बैठकर कही जाते समय जरा सी झपकी लेने पर व्यक्त सूझी। वायलिन वादक तारालिनी को “ द डेविस सानेट “ नामक ध्वनि पूरी की पूरी स्वप्न में दिखाई पड़ी थी। ये धुनें काफी प्रसिद्ध और लोकप्रिय हुई, विश्व प्रसिद्ध गीतकार चैम्पीन भी अपने संगीत सृजन की प्रेरणायें स्वप्नों में पाते थे। प्रसिद्ध नृत्याँगना मेरी विगमैन ने “पास्तेरोल “ नामक एक नृत्य की प्रेरणा एक स्वप्न द्वारा ही प्राप्त की थी। हेनरी भूर पाठलों पिकासो, एडयू वेथ, वान गागासल्वाडोर डाली आदि प्रख्यात चित्रकारों की सृजन चेतना में स्वप्नों का बड़ा हाथ है।

साहित्यकारों का तो कहना ही क्या? पुश्किन, गेटे, शेक्सपियर, टॉलस्टाय आदि सैकड़ों लेखकों ने स्वप्न से प्राप्त हुए प्रेरणाओं निर्देशों और परामर्शों के आधार पर एक से एक अनूठी और ऐतिहासिक कृतियाँ रची। प्रख्यात यूनान लेखक होमर, अंग्रेजी साहित्यकार कार्लारेज, एडगर एलनोपो आदि ने अर्द्ध चेतन स्थिति में, स्वप्न लोक का विचरण करके उन्हीं प्रेरणाओं के आधार पर अनेक रचनाओं का सृजन किया।

इसी प्रकार अनेक गणितज्ञों ने गणित की जटिल समस्याओं को स्वप्नों के माध्यम से अवचेतन की झांकियों के आधार पर सुलझाया। वैज्ञानिकों ने इस आधार पर अनेकों महत्वपूर्ण आविष्कार किये हैं, कवियों ने अमर काव्य कृतियाँ रची हैं, कथाकारों और नाटककारों ने स्वप्नों के माध्यम से रचनाओं के प्लाट प्राप्त किये हैं इन स्वप्नों का विश्लेषण अभी संभव नहीं हुआ हैं पर यह तथ्य है कि अनेक व्यक्तियों ने स्वप्नों के माध्यम से वर्तमान में प्रस्तुत जटिल गुत्थियों का समाधान प्राप्त किया और सुलझाया। अनेक वैज्ञानिक आविष्कारों के मूल में स्वप्नों की प्रेरणा होने तथा साहित्यिक कृतियों के आधार मिलने की सैकड़ों घटनायें मिलती है। उनमें से कई तो विश्व विख्यात है। प्रश्न उठता है कि यदि स्वप्नों के कारण मन की दमित और कुण्ठित इच्छाएँ वासनाएँ ही हैं तो ये महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक स्वप्नों के पीछे कौन सी दमित आकाँक्षाएँ काम कर रही थी जिन्होंने सृजन और निर्माण की नई नई धाराओं को निःसृत किया।

इन सभी घटनाओं का विश्लेषण करने के बाद इस निष्कर्ष पर पहुँचना पड़ता है कि स्वप्न में मानवीय मस्तिष्क का अधिक विस्तृत और सशक्त भाग, जिसे अवचेतन कहा जाता है जागृत और क्रिया शील रहता है तथा व्यक्ति के मन की संरचना के अनुसार वह विश्व व्यापी गतिविधियों की गहराई के साथ संबद्ध होता है। अतीन्द्रिय स्वप्नों का यह एक प्रकार हैं और सर्वसामान्य भी यदा कदा इस प्रकार की अनुभूतियाँ प्राप्त करता है। जब कोई सुलझाये नहीं सुलझ रही हो, मन और बेचैन और व्यथित हो तो न जाने कहाँ से कई बार ऐसे समाधान सूझ पड़ते हैं कि चमत्कृत रह जाना पड़ता है। इसे सृष्टा की अनुकम्पा और करुणा ही कहा जाना चाहिए कि उसने अपने प्रिय संतान के लिए स्वयं उत्पन्न की गयी समस्याओं के लिए भी समाधान के ऐसे स्रोत प्रस्तुत किये हैं कि सही समस्यायें अनेक महत्वपूर्ण प्रेरणाएँ सृजन का संदेश इस विचित्र माध्यम से प्राप्त होते हैं।

इसका यदि सुनियोजित सदुपयोग किया जा सके तो अनेकानेक उपलब्धियाँ हस्तगत की जा सकती है।


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