ओ वसंत के दूत तुम्हीं ने, मर्म रंग का पहचाना। तपे जगत हित किया हमें पहना दिया वही बाना॥
जो भी निकट तुम्हारे आया, रंगता गया इसी रंग में। केवल वस्त्र न पीले है-है वही ऊर्जा अंग अंग में॥ भला और का हो चाहे खुद को पड़ जाये चोट खाना॥
ओ वसंत के दूत तुम्हीं ने, मर्म रंग का पहचाना। तपे जगत हित किया हमें पहना दिया वही बाना॥
भले कूट दो पीली सरसों पिसकर, भी देती है स्नेह। ऐसे ही बन गये तुम्हारे शिष्यों के मन, प्रण व देह॥ अभी रंगे है स्वयं, शेष है सकल विश्व को रंगवाना॥
ओ वसंत के दूत तुम्हीं ने, मर्म रंग का पहचाना। तपे जगत हित किया हमें पहना दिया वही बाना॥
लायेंगे वह पर्व वासंती-ममता का आलम होगा। सभी बनेंगे सबके अपने- समता का परचम होगा ॥ सब चाहेंगे सुखद, शाँतिमय झंडे के नीचे अपना॥
ओ वसंत के दूत तुम्हीं ने, मर्म रंग का पहचाना। तपे जगत हित किया हमें पहना दिया वही बाना॥
हमें कसम आँवलखेड़ा की- गुरु का वचन निभायेंगे। जबतक दम में दम है-काम मिशन का करते जायेंगे॥ हों जग के सब खेत वासंती -हमें बीज बन गल जाना॥
ओ वसंत के दूत तुम्हीं ने, मर्म रंग का पहचाना। तपे जगत हित किया हमें पहना दिया वही बाना॥
मायावर्मा