बगदाद के खलीफा ने अपना दैनिक वेतन तीन रुपये रोज रखा था कोई त्योहार आया तो बेगम ने कहा-” वेतन नहीं बढ़ा सकते तो राज कोश से दस रुपये उधार ले लो। उसे धीरे धीरे चुकाते रहेंगे।
खलीफा ने कहा-”मौत का क्या ठिकाना? कल ही आ गई तो लिया हुआ कर्ज कौन चुकायेगा। अभी समाज में जी रहें हैं, कर्ज तो चढ़ा ही हैं, पहले उससे तो मुक्त हो। ” कर्ज लेने से उन्होंने स्पष्ट इन्कार कर दिया तो बेगम ने दैनिक वेतन में से ही कुछ बचा कर त्योहार मनाया।