नववर्ष की प्रभात बेला में, करें एक अभिनव संकल्प

January 1996

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नयी साल की सुबह अपने साथ जिन उपहारों को लेकर आती है, उनमें सबसे बेशकीमती उपहार डायरी है। इसे नववर्ष के सौभाग्य चिन्ह के रूप में अपनाते स्वीकारते तो सभी है, पर सार्थक उपयोग बिरले ही कर पाते हैं। सामान्य क्रम में यह या तो यूँ ही उपेक्षित पड़ती रहती है। अथवा सब्जी दूध के हिसाब लिखने के काम आती है। हो सकता है डायरी लेखन से अनभिज्ञ मन में सवाल उठे आखिर यह है क्या और इसका उपयोग किस लिए ? इसके जवाब में जे.बैट्समैन को अपनी रचना ’थाट्रस इट्रस जर्मिनेशन ग्रोथ एण्ड डेवलपमेंट’ में समूचा एक अध्याय डायरी के मूल एवं महत्व पर लिखा है। उन्होंने कतिपय उप महापुरुषों के नामों का उल्लेख भी किया है, जिन्होंने अपने विचारों को डायरी लेखन के द्वारा सँवारा सुधारा और विकसित किया है। इनमें जार्ज बर्नार्डशा, बर्ट्रेंड रेसल और आइन्स्टाइन मुख्य है। रेसल के अनुसार इनकी बचपन से दैनन्दिनी लिखने की नियमित आदत थी। वह अपनी अंत+प्रवृत्तियों एवं वाह्य घटनाचक्रों पर उनकी प्रतिक्रियाओं का बारीकी से विश्लेषण करते, बाद में उन्हें शब्दों में पिरोते। कालांतर उनकी इसी आदत ने उन्हें विश्व का महान विचारक और दार्शनिक बनाया।

हिन्दुस्तान में भी ऐसे अनेक महनीय व्यक्तित्व हुए जिनका डायरी लेखन आज विचार जगत की अमूल्य धरोहर बन गया। श्री राम कृष्ण परमहंस क शिष्य महेन्द्र नाथ गुप्त ‘ मास्टर महाशय’ इसी तरह दैनन्दिनी लेखन करते थे। वह परम हंस देव की चर्चाओं को नियमित लिपिबद्ध करते थे जिन्हें बाद में श्री रामकृष्ण वचनामृत के रूप में प्रकाशित किया गया। इसके प्रकाशन के अवसर पर स्वामी विवेकानन्द ने कहा था- मास्टर महाशय के वचनामृत के रूप में विश्व मानवता को ऐसी धरोहर सौंपी हैं, जिन्हें युगोँ तक याद किया जायेगा। उनके इस कार्य ने डायरी लेखन के मूल्य को अक्षुण्य बना दिया।

महात्मा गाँधी के शिष्य एवं सचिव महादेव भाई की डायरी जो अब अनेक खण्डों में प्रकाशित हैं, गाँधी के जीवन के मार्मिक क्षणों एवं तत्कालीन घटनाक्रमों का तथ्यात्मक मूल्याँकन है। गाँधी जी के इस कार्य के मुक्त प्रशंसक थे। बिनोवा भावे जो गाँधी के सहयोगी होने के साथ एक मौलिक विचारक भी थे, उन्होंने इस कार्य को चार चरणों में वर्गीकृत किया। उनके अनुसार ये चार चरण है आत्मनिरीक्षण, आत्म समीक्षा, आत्म सुधार एवं आत्म जागरण।

डायरी लेखन में नियमित रूप से इन चारों का समावेश होना चाहिए। प्रातःकाल से लेकर रात्रि सोने के समय तक स्वयँ का प्रवृत्तियों, भावनाओं, विचारों के उतार चढ़ाव, बाहरी घटना क्रमों पर स्वयँ होने वाली प्रतिभाओं का लेखा- जोखा आत्मनिरीक्षण है। इनके उचित अनुचित होने की विवेचना आत्मसमीक्षा है। उचित का उन्मूलन, उचित का संवर्धन आत्म सुधार है। और इसके प्रयास के फलस्वरूप स्वयँ की आत्म चेतना का जागरण अनिवार्य है। यही चौथा एवं अंतिम चरण है। इन चारों की गति स्थिति एवं विकास का ब्योरा नियमित लिपिबद्ध किया जाना चाहिए।

यह प्रक्रिया जहाँ समय एवं शक्ति का बेहतर उपयोग करने में सहायक सिद्ध होती है, वही हमारे विचारों एवं भावनाओं को असाधारण रूप से विकसित करने में सहायक सिद्ध होती है। प्रख्यात लेखक वालटेया ने, तो यहाँ तक लिखा हैं कि जिसे मौलिक लेखक, विचारक बनाना हो, उनको नियमित रूप से डायरी लेखन करना चाहिए। इससे न केवल विचारो का विकास होता है, बल्कि भाषा भी उत्तरोत्तर परिमार्जित एवं संतुलित होती जाती है। आइन्स्टाइन तो डायरी को अपना सबसे विश्वस्त मित्र एवं एकान्त क्षणों का सहयोगी मानते थे। उनके अनुसार हम अपनी वे बातें, वे भावनायें जिन्हें हम किसी से बत नहीं सकते, वे नितान्त गोपनीय है, अपनी डायरी में मुक्त मन से कह सकते हैं। इससे अधिक विश्वसनीय भला कौन होगा? मानव मन के विशेषज्ञ जेम्स डिलेट फ्रीमैन का कहना है कि यदि मन की गाँठों को खोला न जाये, तो परिणाम गंभीर मनोरोगों व शरीर रोगों के रूप में उभरता है। लेकिन इन गाँठों को खोले भी किसके सामने? इस सवाल के जवाब में उनका कहना हैं कि हमें अपनी सारी बातें अपनी डायरी से कह देना चाहिए। ऐसा करके हम स्वच्छ चिंतन एवं स्वस्थ जीवन का मार्ग अपनाते हैं।

साहित्य जगत की विभूतियाँ स्टीफेन ज्विंग जिनकी रचनाओं का अनुवाद दुनिया, करीब

तेईस भाषाओं में हो चुका है, नियमित दैनन्दिनी लेखनी के अभ्यासी थे उनके अनुसार डायरी हमारे विचारों के विकास का इतिहास है। जिस तरह हम शिशु का नियमित अंतराल में फोटो खींचें जाय एवं इस क्रम को वृद्धावस्था तक जारी रखा जाय तो उपलब्ध छाया चित्रों के सहारे शरीर के विकास क्रम को चेहरे के भावों को आसानी से समझा जा सकता है। उसी तरह से नियमित रूप से किया गया डायरी लेखन भी हमारे मानसिक, भावात्मक विकास के सूक्ष्मातिसूक्ष्म तत्वों को स्पष्ट रूप से प्रकट करता है।

इतनी मूल्यवान विधा से न जाने क्यों हमने स्वयँ को उपेक्षित कर रखा है। आइये इसे आज से अभी से इसी वर्ष से शुरू करें और नियमित रूप से जारी रखें। इससे होने वाले परिणाम हमें आश्चर्य चकित किये बिना न रहेंगे। सन् 1996 की प्रभात वेला में यह उपहार आप स्वयँ स्वीकारें और औरों को भी दें।


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