समर्पित भावनाशीलों द्वारा सम्पन्न - प्रथम पूर्णाहुति आयोजन

January 1996

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(समापन किश्त)

आंवलखेड़ा पूर्णाहुति महोत्सव में पाँच मंच बनाए गए थे जहाँ से वार सम्प्रेषण, दैवी चेतना के प्रवाह के वितरण का क्रम चलता रहा। इनमें से देव मंच से सामगान से लेकर वैदिक ऋचाओं द्वारा 1251 कुण्डीय यज्ञशाला का संचालन ऋत्विक् गणों एवं ब्रह्मवादिनी बहिनों द्वारा सम्पन्न हुआ तथा संस्कार मंच जहाँ से बारह प्रमुख संस्कारों से सम्पन्न कराया गया, की चर्चा विगत अंक में की जा चुकी है। ज्ञान मंच 4, 5, 6, नवम्बर को संधिवेला में पूज्यवर की विचार चेतना को जन-जन तक पहुँचाने का कार्य करता रहा। विचार युगऋषि के थे, पहुँचाने का कार्य उनकी कठपुतलियां नित्य अभ्यागत अतिथिगणों व विशेषज्ञों के द्वारा विभिन्न विषयों पर विचारों की अभिव्यक्ति व करने योग्य क्या-क्या कार्य हैं, यह क्रम 2 नवम्बर से 7 नवम्बर तक सतत् चलता रहा। पांचवां मंच कला मंच था, जहाँ से लोक कला के वैविध्य पूर्ण प्रस्तुतीकरण का कार्य देश भर के कोने-कोने से आए कलाकारों ने कर लोकरंजन से लोक मंगल के पूज्यवर द्वारा निर्धारित एक महत्वपूर्ण कार्य के अभिनव स्वरूप प्रदान किया।

ज्ञान मंच - बैकड्राप के रूप में जन्मस्थली की झलक व परमपूज्य गुरुदेव के विराट रूप को दर्शाता एक चित्र पृष्ठ भाग में था। गुरु सत्ता के प्रतीक के रूप में मध्य में एक भव्य सिंहासन पर गुरुदेव एवं माताजी की पादुकाएँ स्थापित थीं। प्रतिनिधि रूप में मध्य में एक भव्य सिंहासन पर गुरुदेव एवं माताजी की पादुकाएँ स्थापित थी। प्रतिनिधि रूप में श्रद्धेय पंडित लीलापति जी शर्मा (गायत्री, तपोभूमि, मथुरा) एवं डॉ0 प्रणव पण्ड्या (निदेशक, ब्रह्मवर्चस् शोध संस्थान) ने अपने विचार इस मंच से व्यक्त किए। 3 नवम्बर कलश यात्रा वाले दिन संध्या वेला में विशिष्ट अनुयाज पुनर्गठन प्रधान उद्बोधन में डॉ0 प्रणव ने कहा कि अब “करो या मरो” का समय आ गया है। जनता का विश्वास जीत लेने वाले गायत्री परिवार को जब सुगठित सुव्यवस्थित इकाइयों में पुनर्गठित हो जाना चाहिए। यही समय की माँग है। उनने पंच प्यारों का उदाहरण देकर संधिकाल की विशिष्ट वेला में कार्यकर्त्ताओं के लिए पूर्णाहुति का संदेश क्या है, विस्तार से समझाया। श्रीमती शैलबाला पण्ड्या ने नारी जागरण की प्रक्रिया को कैसे बलवती बनाया जाय इस सम्बन्ध में मार्गदर्शन दिया। संवेदना प्रधान शैली में उनने परमवंदनीय माताजी की अन्तः की पीर को अपनी भावाभिव्यक्ति दी। श्रद्धेय पण्डित जी का एक ही संदेश था कि गुरुवर के साहित्य को अब घर-घर पहुँचाना ही एक मात्र दायित्व हमारे परिजनों का है। जो जिस परिमाण में पूज्यवर के विचारों को जन-जन तक तक पहुँचाएगा, वह उतना ही पूज्यवर का निकटवर्ती व श्रेयाधिकारी बनेगा। ज्ञान मंच का संचालन श्री कालीचरण जी ने बड़े कौशल के साथ किया। दीपयज्ञ भव्य विराट रूप में 6 नवम्बर को ज्ञान मंच में ही आयोजित व संचालित था तथा इसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सहसंघ कार्यवाह श्री कुप. सी. सुदर्शन, सुप्रसिद्ध अधिकारी (मुम्बई महानगर पालिका) एवं भ्रष्टाचार उन्मूलन मोर्चे के उपाध्यक्ष श्री खैरनार तथा ‘कालचक्र’ वीडियो पत्रिका के प्रधान सम्पादक श्री विनीत नारायण भी उपस्थित थे। श्री सुदर्शन जी ने संक्रान्तिकाल व अवतार के प्रकटीकरण की प्रक्रिया को वैज्ञानिक-दार्शनिक शैली में समझाते हुए गायत्री परिवार के इस प्रयास को श्लाषनीय बताया। दीपयज्ञ का संचालन श्री वीरेश्वर जी उपाध्याय एवं चन्द्र भूषण मिश्र ने किया। सवालक्ष दीपों के जलने पर जो आभा प्रकट हुई, वह देखते ही बनती थी।

विचार मंच - इसे केन्द्रीय कार्यालय के सामने आगरा रोड पर कर्ब्हड क्षेत्र में बनाया गया था। एक बार में उसमें पाँच हजार व्यक्ति बैठते थे। इतने ही बाहर खड़े होकर सुनते थे। पत्रकार नगर भी पास था, अतः सारे भारत में आए पत्रकार इसमें सतत् उपस्थित रहे। विचार मंच से विचार क्रान्ति का स्वर गुँजायमान करने वाले स्वर मुखरित होते रहे। मुख्य रूप से इसका स्वरूप एक विचार गोष्ठी का था। कोई एक नहीं, 5-6 वक्ता निर्धारित विषय पर अपने विचार व्यक्त करके गए। राष्ट्रीय जलागम विकास परियोजना (एन. डब्ल. डी. पी. आ. ए.) में युग निर्माण मिशन की भागीदारी, राष्ट्र निर्माण हेतु प्रतिभाओं का आह्वान, धर्मतंत्र और राजतंत्र का सहगमन, स्वास्थ्य संरक्षक योजना-चल ग्राम्य चिकित्सा सेवा, नवसृजन में युवाओं की भूमिका, विश्व के साँस्कृतिक विकास में प्रभारी भारतीयों की भागीदारी, जातिभेद का व्यावहारिक समाधान ग्रामीण स्तर पर आर्थिक स्वावलम्बन, बिखरे हुए धर्मतंत्र पुनर्जीवन, तथा दृष्टाओं की दृष्टि में भारत का भविष्य जैसे विचारोत्तेजक विषयों पर सतत् विचार मंथन चलता रहा एवं प्रवासी भारतीयों से लेकर राजनेताओं एवं मूर्धन्य प्रतिभाओं की इसमें भागीदारी होती रही। उपलब्ध निष्कर्षों के आधार पर ऐसी व्याख्यान मालाएँ दूसरे देश में आयोजित करने की अनुयाज वर्ष में योजना बनी है। युगद्रष्टा के विचार जन-जन तक फैलें एवं विचार मंच द्वारा एकमत होकर विभिन्न स्तर की प्रतिभाएँ सृजनात्मक दिशाधारा तय कर सकें, वही इसका मूल उद्देश्य था एवं इसमें पूरी सफलता मिली, यह सुनिश्चित रूप कहा जा सकता है।

कला मंच - यह न केवल क्षेत्री स्तर की

प्रतिभाओं के लिए अवसर के रूप में सामने आया। जन-जन के लिए एक स्वस्थ मनोरंजन का स्वरूप भी लेकर सामने आया अपितु पूज्यवर चाहते थे कि लोकरंजन कसे लोकमंगल के लिए लोक कला को पुनर्जीवित किया जाय एवं विविधता से भरे इस देश की कला क्षेत्र से जुड़ी विभिन्न प्रतिभाओं को एक मंच पर लाया जाए। यह भूमिका कला मंच ने पूरी तरह निभायी। प्रतिभाओं के मनमोहन प्रदर्शन ने दर्शकों का दिल जीत लिया। बुन्देलखण्ड का आल्हा, रुहेलखण्ड के लोकगीत, पंजाबी-भाँगड़ा, उड़िया नृत्य व गायन, कूल्लू की दशहरा पूजा व नृत्य, उत्तराखण्ड का लोक गायन, पंडवानी गायकी से जुड़ी प्रतिभाओं का प्रदर्शन, राजस्थानी कौशल भरा नृत्य, असम के त्यौहार नृत्यों का प्रदर्शन, ब्रजभाषी मीठी शब्दावली के साथ भावनात्मक प्रस्तुति, एकाकी मिमीक्री शैली द्वारा अपनी कला का सर्वोत्कृष्ट प्रदर्शन अरुणाचल के कलाकारों द्वारा पूर्वांचल की शैली में नृत्य-गायन ये सभी विशेषताएँ कला मंच की थी। कलानगर में टेण्टों की नगरी में सारी असुविधाओं में रहकर भी कलाकारों ने दिव्यता के अनुदानों की वर्षा की अनुभूति की एवं इस कार्यक्रम से वे बहुत कुछ लेकर गए। अनेकों कलाकार दीक्षित होकर परिजन बनकर गए।

अब इस प्रयोग के बाद ऐसी संकल्पना की जा रही है कि अगले दिनों अनुयाज क्रम के बाद जब विराट् सम्मेलनों-यज्ञायोजनों की शृंखला चले तब इसी प्रकार विचार मंच एवं कला मंच स्तर के अनेकानेक प्रयोग क्षेत्रीय स्तर पर चलें एवं प्रतिभाओं का सदुपयोग किया जाय। अनुयाज पुनर्गठन वर्ष में भी शाँतिकुँज में ऐ मंच सक्रिय हो जायँ यह भी सोचा गया है।

विराट जीवन दर्शन प्रदर्शनी जिससे सबने मिशन को जाना

इस विराट आयोजन का सर्वाधिक आकर्षक केन्द्रबिन्दु थी एक विराट प्रदर्शनी जो कई भागों में बँटी थी किन्तु प्रत्येक अपने में परिपूर्ण एवं गुरुसत्ता के निर्धारणों जीवन दर्शन-आदर्शों का, राष्ट्र निर्माण के विविध कार्यक्रमों की झाँकी दिखाने वाली थी। इन्हीं के साथ परमपूज्य गुरुदेव एवं परमवंदनीय प्रातःस्मरणीय पूज्य श्री दादा गुरु, अर्धनारी-नटेश्वर के विराट कट आऊट स्थान-स्थान पर लगे थे, जिनकी झाँकी परिजन चित्रों में देख चुके हैं। समर्पित कलाकारों द्वारा बनायी गयी महाकाल की विराट प्रतिमा सर्वाधिक आकर्षण का केन्द्रबिन्दु थी। पाप-पुरुष के ऊपर नृत्य की मुद्रा में खड़े महाकाल का स्वरूप सबने देखा जिसकी अभिव्यंजना व्याख्या परमपूज्य गुरुदेव की पुस्तक ‘महाकाल और युग प्रत्यावर्तन प्रक्रिया’ पुस्तक में की गई है।

शाँतिकुँज प्रदर्शनी चित्रकला प्रभाग के श्री गंगाधर चौधरी, सुधीर भारद्वाज एवं गगन तो अपने समर्पण भाव से एक माह पूर्व से ही तैयारी में लग गए थे किन्तु क्षेत्रीय स्तर की प्रतिभाओं जिनने विगत सभी अश्वमेधों में अपना योगदान दिया था, इस विराट महाकुम्भ में भी अपना पूरा समय दिया एवं भोपाल के आनन्द विजयवर्गीय से लेकर गुजरात की समग्र टीम इसके लिए आ पहुँची। सर्वाधिक पुरुषार्थ किसका रहा, यह किन शब्दों में व्यक्त किया जाय किन्तु चलती-फिरती मूर्तियों, मनमोहक-आकर्षण-कलाकारिता की पराकाष्ठा तक पहुँची मूर्तियों के माध्यम से गुरुसत्ता, गायत्री माता एवं संस्कार प्रक्रिया के एक-एक पद्धति को अभिव्यक्ति देने का कार्य श्रीराज जी (मुँगेर) के माध्यम से जिस प्रकार सम्पन्न हुआ, इसकी सभी ने मुक्त कण्ठ से प्रशंसा की। श्रीराजजी 3 माह पूर्व से ही शाँतिकुँज आ गए थे एवं अपनी समर्पण साधना के आधार पर उनने वह झाँकी भारत एवं विश्वभर के परिजनों को दिखायी जिसने संस्कारों से लेकर चौबीस गायत्री महाशक्तियों के तत्वज्ञान को उन्हें बड़ी सुगमता से समझा दिया। सरकण्डों से बना भव्य मन्दिर एवं विराजमान गुरुदेव-माताजी सभी के लिए एक आश्चर्य का विषय बने हुए थे। ब्रह्मवर्चस् शोध संस्थान के क्रियाकलापों- आँकड़ों-उपकरणों, विज्ञान अध्यात्म समन्वय सम्बन्धी प्रयोगों तथा एक सौ आठ दुर्लभ वनौषधियों का जीवन दर्शन आगन्तुक सभी विशिष्ट अभ्यागतों सहित परिजनों ने किया। यह प्रस्तुतीकरण पहली बार किया गया था व अपने आप में अनूठा था।

जीवनदर्शन प्रदर्शनी में परमपूज्य, गुरुदेव, परमवंदनीया माताजी एवं मिशन की जीवन यात्रा समग्र रूप में दर्शायी गयी थी। 1911 से प्रारम्भ इस यात्रा के एक-एक पक्ष को चित्रों आँकड़ों-विवरणों-पक्षों के माध्यम से शिकागो यज्ञ (जुलाई 1995) तक की स्थिति तक दर्शाया गया था। सभी ने इसे देखकर अपने सौभाग्य को सराहा। इसी प्रदर्शनी में परमपूज्य गुरुदेव के द्वारा लिखे गये विराट साहित्य पर आधारित वाङ्मय की एक झाँकी छपे चौबीस खण्डों के दर्शन के रूप में परिजनों ने की।

एक विलक्षण पक्ष इस प्रदर्शनी का आदर्श ग्राम की परिकल्पना एवं राष्ट्रीय जलागम विकास परियोजना में युग निर्माण मिशन की भागीदारी के मॉडल रूप में था। ऐ विराट लैण्डस्केप पर एक आदर्श ग्राम की परिकल्पना की गयी थी एवं किस प्रकार जल-भू-संरक्षण द्वारा पर्यावरण को सही रख कृषि उत्पादन बढ़ाया जा सकता है, यह क्राँति कैसे जन-जन को प्रभावित कर गरीबी उन्मूलन की दिशा में एक महत्पुरुषार्थ सम्पन्न कर रही हैं, यह सभी ने देखा। श्री जे. सी. पंत जो अपने एक परिजन भी है व भारत सरकार के कृषि सचिव के नाते इस योजना के प्रणेता भी रहे हैं, ने इसे देखकर अपनी हर्षाभिव्यक्ति प्रकट की। गायत्री महाविद्या, यज्ञ विज्ञान, वैदिक विज्ञान एवं देवसंस्कृति के विभिन्न पक्षों पर एक विराट प्रदर्शनी गुजरात के सारसा शक्तिपीठ द्वारा लगायी गयी थी। यह अनेकानेक भागों में बँटी थी एवं इसमें चित्रों, ग्राफों आँकड़ों तथा वैज्ञानिक-शास्त्रोक्त प्रमाणों के माध्यम से उपरोक्त सभी विधाओं के एक-एक पक्ष को छुआ गया था। यही नहीं, प्रत्येक पैनल की विज्ञान सम्मत व्याख्या करने वाले प्रशिक्षित स्वयं-सेवकों जिनमें अधिकाधिक बालक थे, के प्रस्तुतीकरण द्वारा संकस्ति के इस पक्ष को जन-जन तक पहुँचाने का भी एक श्रेष्ठ स्तर का प्रयास किया गया था। श्री साधुराम भाई आचार्य गायत्री महाविद्या के दर्शन पक्ष को जन-जन तक पहुँचाने का भी एक श्रेष्ठ स्तर का प्रयास किया गया था। श्री साधुराम भाई आचार्य गायत्री महाविद्या के दर्शन पक्ष पर पी.एच.डी. कर चुके हैं एवं देवसंस्कृति के विज्ञान सम्मत स्वरूप को पूरे विश्वभर में पहुँचाने हेतु परिव्रज्या कर चुके हैं। गुजरात प्राँत की इस प्रदर्शनी के माध्यम से जन-जन ने परमपूज्य के माध्यम से जन-जन ने परमपूज्य गुरुदेव प्रणीत गायत्री से जन-जन ने परमपूज्य गुरुदेव प्रणीत गायत्री महाविद्या के गुह्य पक्ष को बड़े सरलतम ढंग से जाना एवं सराहा।

वैज्ञानिक प्रयोग परीक्षण- पूर्व में भी यज्ञ प्रक्रिया के विज्ञान पर शोध कार्य हेतु हमारे युवा वैज्ञानिकों का दल भोपाल-गोरखपुर, जबलपुर आदि अश्वमेध यज्ञों में कार्य कर आंकड़े एकत्र कर चुका है। इस बार भी उनने पूर्व मिट्टी, हवा, जल के नमूने एकत्र किया। शाला के अत्यन्त समीप, एक किलोमीटर, दूरी पर मोबाइलवाँन में उपकरण स्थापित किये गये थे व सभी जगह नमूने एकत्रित कर उनका विश्लेषण किया गया व अब उन पर विस्तृत अध्ययन किया जा रहा है। सी.एस.आई.आर. दिल्ली के वैज्ञानिकों एवं दिल्ली की मानी बाजपेई सहित मथुरा पिफाइनरी के वैज्ञानिकों का इसमें सक्रिय सहयोग रहा। आधार स्तर पर स्वयं सेवक की तरह दौड़−धूप कर श्रीमती संध्या पाण्डे एवं डॉ0 पदमाकर त्रिपाठी ने सारी व्यवस्थाएँ जुटाई एवं समस्त असुविधाओं प्रतिकूलताओं के बीच भी यज्ञ प्रक्रिया के वैज्ञानिक प्रभावों, जन स्वास्थ्य व पर्यावरण से लेकर सामाजिक पक्ष पर अपना अध्ययन किया। सभी आँकड़े कम्प्यूटर में डाल दिये गए हैं व विस्तृत विश्लेषण के बाद इस पत्रिका में प्रकाशित होंगे।

प्रवासी परिजनों की भागीदारी-लगभग बीस देशों के तीन सौ से अधिक प्रवासी भारतीयों ने इस महायज्ञ में भाग लिया। अपनी आराध्य सत्ता की जन्मभूमि पर हो रहे इस विराट यज्ञायोजन में सब आना चाह रहे थे किन्तु सुन्दर देशों में रहने वाले परिजनों की अपनी विशेषताएँ भी होती हैं। फिर भी अमेरिका, कनाडा, ग्रिनिडाड-टोबेगो, दक्षिण अफ्रीका, जिंबाब्वे, जाम्बिया, केन्या तंज़ानिया, यूगाण्डा इंग्लैण्ड, फ्राँस, पुर्तगाल, न्यूजीलैण्ड, थाईलैंड इत्यादि देशों से प्रवासी भारतीय व अन्य विदेशी भी इस आयोजन में आए एवं भारतीय संस्कृति भी इस आयोजन में आए एवं भारतीय संस्कृति का विश्व संस्कृति के रूप में बदलता स्वरूप देखकर गए। प्रत्येक से एक प्रश्नावली भराई गयी। सभी के जवाब समान रूप से इस अभिव्यक्ति के रूप में आए कि विचार मंच, कला मंच, ज्ञान मंच, देव मंच व संस्कार मन से जो विचार उनने सुने, वे सभी उनको संतानों भौतिक वादी जीवन में जी रहे लोगों के लिए अत्यंत महत्व पूर्ण है। शाँति का एक यही राजमार्ग अब बचा है। सभी आयोजन की भव्यता व सुव्यवस्था से गदगद होकर गये। लंदन लेस्टर व यूरोप का पूरा समूह तो एक चार्टर फ्लाइट से पूरे अस्सी लोगों के साथ आया था व सभी नव दिवसीय सत्र भी शाँतिकुँज में संपन्न करके गये।

वेदस्थापना वाङ्मय एवं साहित्य केन्द्र- इस बार विशेषता थी चारों वेदों के अभिनव संपादित संस्करणों की उपलब्धता जो कि जो आठ जिल्दों में थे, पूज्य गुरुदेव के समग्र साहित्य पर संपादित वाङ्मय के सत्तर में से चौबीस खण्ड तथा विराट परिणाम में लिखा छोटी बड़ी पुस्तिकाओं के रूप में विद्यमान ऋषियुग्म रचित संजीवनी विद्या प्रधान साहित्य। इसके लिए शाँति कुँज हरिद्वार एवं युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि मथुरा द्वारा स्थान स्थान पर स्टाल लगाये गये थे। वेदस्थापना की अभिनव पूजन प्रक्रिया से जोड़कर ऐ संस्कार का रूप दे दिया गया। प्रायः बीस हजार से अधिक व्यक्तियों ने यह संपन्न कराया। वाङ्मय के प्रत्येक खण्ड अलग अलग भी समग्र रूप से अग्रिम राशि देकर विशेष कार्टन में पैक्ड उपलब्ध थे। ढेरों व्यक्ति ले गए। अनेक शक्तिपीठों-प्रज्ञा परिजनों के समूह या प्रज्ञा मण्डलों ने इसे अपने यहाँ स्थापित करने का उत्साह दिखाया है। साहित्य लेकर जो भी गया, इसे यज्ञ का विशेष प्रसाद मानकर ले गया। सच भी है कि पूज्यवर की प्राणचेतना उनके द्वारा लिखे साहित्य में ही तो विद्यमान है।

भोजनालय, चिकित्सालय, विभिन्न कार्यालय- एक साथ ढाई लाख व्यक्ति भोजन कर सकें, इसके लिए 4 विशाल पाकशालाएँ एवं बीस भोजन शालाएँ (डाइनिंग हाल) बनाई थीं। सभी प्रान्तों के विविध कार्यकर्त्ताओं ने मिल-जुलकर यह व्यवस्था सँभाली। छत्तीसगढ़, गुजरात, रुहेलखण्ड-बागपत-मेरठ क्षेत्र एवं राजस्थान के परिजनों ने यह सारा दायित्व बखूबी निभाया। किसी को भी बिना अधिक प्रतीक्षा के समय पर भोजन मिलता रहा।

एक विराट परिधि में चिकित्सक नगर भी बसाया गया था, जहाँ सभी सुविधाएँ एम्बुलेंसों, एक्सरे उपकरण, सर्जरी आदि से लेकर सामान्य उपचार तक की उपलब्ध थी। शाँतिकुँज के डॉ0 रामप्रकाश पाण्डे जी की सुव्यवस्था के कारण क्षेत्रीय नगरों की डिस्पेंसरी व केन्द्रीय कार्यालय में सभी को सारी सुविधायें मिलती रहीं। मिशन के प्रायः दो सौ से अधिक चिकित्सकों व आगरा नगर के चिकित्सकों का योगदान सराहनीय रहा।

अन्त में-मीडिया, प्रशासन की भूमिका के बारे में जितना विस्तार से लिखा जाय कम है। सभी ने यथायोग्य अपनी शक्ति अनुसार इसमें योगदान दिया। जो भी कुछ कमियाँ इस आयोजन में रही होंगी वह आयोजकों की सूझबूझ की कमी की वजह से हो सकती है परन्तु दिव्यसत्ता ऋषि चेतना के सुरक्षा कवच में, उनके अनुदानों की वर्षा की दृष्टि से कोई कमी नहीं थी। इस आयोजन की सफलता का श्रेय उन ढेरों श्रमशील समयदानियों को तो है ही जो पूर्व से आकर रह रहे थे, उन सभी को जो केन्द्र के आग्रह पर बाद में काफी दिन तक रुककर सारे क्षेत्र की सुव्यवस्था बनाते रहे।

इस आयोजन की पूर्णता तो 2001 में हुई मानी जाएगी पर इतना अवश्य कहना चाहेंगे कि क्षेत्रीय स्तर पर हुई अनुयाज गोष्ठियों पुनर्गठन परक विचार विमर्श से 1996 में जो कार्य सम्पन्न होगा वही मिशन की नवसृजन प्रक्रिया की आधारशिला रखेगा। (समाप्ति)


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