गृहस्थ जीवन का मर्म (Kahani)

August 1995

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एक गृहस्थ एक बार परेशान होकर अपने गुरुदेव के पास आया और बोला-मैंने कई प्रयास कर लिए, पर मेरी पत्नी से मेरी पटरी नहीं बैठ पायी। वह तो अपनी ओर से कुछ कहती नहीं, पर जैसा मैं चाहता हूँ, वैसा वह अपनी क्रियाओं में नहीं ला पाती। बताइये, मैं क्या करूँ?”

गुरुदेव ने बिना कुछ कहे, दो बाल्टी जल मंगवाया। एक बाल्टी में एक बूँद तेल डाल दिया एवं एक बाल्टी में एक अंजलि दूध। तेल की परत पानी पर फैल गई जबकि दूध पानी के साथ एकाकार हो गया। अपना परीक्षण समझाते हुए, उन्होंने कहा-तुम्हें पारिवारिक जीवन में दूध की तरह घुल-मिल जाना चाहिए, तेल की तरह हावी होने का प्रयास नहीं करना चाहिए?

गृहस्थ जीवन का मर्म उसकी समझ में आ गया एवं वह उत्साह से भर कर घुल-मिलकर जीवन निभाने पुनः लौट आया।


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