यदि प्रसुप्त को जगाया जा सके

August 1995

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स्थूल मस्तिष्क की ज्ञान-परिधि सीमित हैं वह असीम को नहीं जान सकता। यदि उसमें जानने की ऐसी क्षमता रही होती, दुनिया में आज सब कुछ सुविज्ञात होता, पर विश्व में अब भी ऐसे कितने ही रहस्य मौजूद हैं, जो मानवी बुद्धि के लिए चुनौती बने हुए है।

ऐसा ही एक रहस्य कर्नाटक के शिमोला जिले के सपीगेहल्ली गाँव के सघन वन के प्राचीन मन्दिर का खण्डहर है, निकट में कुआँ है।

एक बार विल्फ्रेड नामक एक अंग्रेज शिकारी यहाँ हेतु आया। मन्दिर को छिपने का उपयुक्त स्थान समझ कर वह यहीं दुबककर बैठ गया और शेर का इन्तजार करने लगा। आधी रात के करीब शेर अचानक कुएँ के नजदीक प्रकट हुआ। वह निशाना साध ही रहा था कि कुएँ के अन्दर से सीटी की आवाज सुनाई पड़ी। वी सीटी बड़ी ही सुरीली थी। कुछ क्षण के लिए तो वह उसमें खो सा गया, तभी पुनः उसे शेर का ध्यान आया। वह कुएँ की ओर मुँह किए निश्चल बैठा था। उसने फिर बन्दूक का निशाना साधा। गोली छूटने ही वाली थी कि एक बार पुनः वहीं मोहक ध्वनि गूँजी। विल्फ्रेड अजीब बेचैनी अनुभव करने लगा। थोड़े अन्तराल बाद तीसरी सीटी पुनः सुनाई पड़ी। इसी के साथ शेर कुएँ में कूद पड़ा। विल्फ्रेड को भी ऐसा लगने लगा, जैसे वह भी कुएँ में छलाँग लगा दें। उस ओर वह एक विचित्र खिचाव महसूस कर रहा था, पर बड़ी मुश्किल से वहाँ से भागने में सफल हुआ। जब निकटवर्ती गाँव पहुँचा, तो लोगों ने बताया कि आज ही के दिन हर वर्ष यहाँ इस घटना की पुनरावृत्ति होती है। लगभग दर्जन भर शिकारियों ने इसी प्रकार अपनी जान गँवा दी। एकमात्र विल्फ्रेड ही ऐसा था, जो वहाँ से जीवित लौट सका।

मिलता-जुलता प्रसंग नीलगिरी का है। यहाँ एक

गाँव है-चमनथ बताया जाता है कि टीपू सुल्तान के समय में यह गाँव एक बड़ा व्यापारिक केन्द्र था और बहुत समृद्ध था। इसके अनेक चिन्ह अब भी वहाँ मौजूद है। इन्हीं में से एक है-काले ग्रेनाइट पत्थरों से बना भव्य मन्दिर का भग्नावशेष। समीप ही एक कुआँ है।

कहते है जिन दिनों अस ग्राम की यशगाथा गायी जाती थी, उन्हीं दिनों वहाँ एक रहस्यमय बीमारी फैली, जिसमें वहाँ की पूरी की पूरी आबादी ही समाप्त हो गई। कई साल पश्चात् कैप्टन नेड नामक एक अंग्रेज अफसर नीलगिरी में नियुक्त हुआ बातचीत के दौरान उसे चमनथ के मन्दिर की जानकारी मिली। वह एकान्त और कला प्रेमी था। एक बार उसने मन्दिर के दर्शन का कार्यक्रम बनाया। वहाँ गया और हर दृष्टि से उपयुक्त पाकर उसने वहीं रात बिताने का निश्चय किया।

आधी रात तक सब कुछ सामान्य रहा। मध्यरात्रि के उपरान्त मन्दिर में रखा पीतल का दीपक अचानक जल उठा और साथ ही साथ उसकी ज्वाला से कुछ अस्फुटी ध्वनि निकलने लगी।

कैप्टन् नेड को हिन्दी और संस्कृत से गहरा लगाव था। भारत रहते हुए उसने उन दोनों भाषाओं का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया था। ध्वनि पर ध्यान दिया, तो पता चला कि यह कोई स्त्री पाठ है। गौर करने पर विदित हुआ कि वह रावण रचित शिव स्तोत्र है, जो अत्यन्त मन्द स्वर में उच्चरित हो रहा था। स्तोत्र पाठ से नेड ने अन्दाज लगाया कि इसे कोई शिव मन्दिर होना चाहिए। वे ध्यानपूर्वक उसे सुनते रहे। पाठ समाप्त हुआ, तो दीपक बुझ गया। नेड दीपक की घर ले आया। इसके साथ ही नेड बुरी तरह बीमार पड़ गया। बहुतेरे उपचार कराये गये। पर स्थिति सुधरने के स्थान पर गंभीर बनती गई। अन्ततः एक रात कैप्टन नेड की पत्नी को एक साधु ने सपने में आदेश दिया कि दीपक जहाँ से लाया गया है, वहीं पहुँचा दिया जाय। जीवन रक्षा का अब यही एक मात्र उपाय है। नेड ने ऐसा ही किया और वे धीरे-धीरे स्वस्थ होने लगे और जल्द ही एकदम ठीक हो गये।

मानवी मन स्थूल जगत को समझने का एक उपकरण भर है। विज्ञान जैसी विधा में इसके इसी स्तर का उपयोग होता है। चूँकि इसमें वह हर कार्य के पीछे स्थूल कारण की तलाश करता है, इसलिए अवसर रहस्यमय प्रसंगों को सुलझाने में असफल होता है। यह इसके 7 प्रतिशत शक्ति की चर्चा हुई। इस भूमिका से ऊँचा उठकर यदि उसकी शेष 13 प्रतिशत प्रसुप्त खमता को जगाया जा सके, तो फिर अज्ञात स्तर का रहस्य दुनिया में कुछ भी र नहीं। ऐसा अध्यात्म उपचार के बिना सम्भव नहीं। इसी के माध्यम से योगी-यति सोयी पड़ी शक्ति को जगाते और अपने लिए ऋद्धि -सिद्धियों के द्वार खेलते है। अविज्ञात को ज्ञात बनाने का यही एक मात्र उपाय है। इसे अपनाया जाना चाहिए।


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