आखिर नींद आती क्यों नहीं?

April 1995

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अनिद्रा को प्रायः मनः जनित रोग समझा जाता है। यह सत्य है। अधिकांश मामलों में इसका कारण भी मानसिक ही होता है, पर सदा यह मानसिक अव्यवस्था को ही दर्शाती है, ऐसा नहीं कहा जा सकता। कई बार इसके पीछे कई ऐसे सामान्य कारक जिम्मेदार होते है, जो अनिद्रा जैसी स्थिति पैदा कर देते है, यथा सोते समय हाथ-पैर न धोना बिछावन का गंदा होना, पलंग की वस्तु, सोने की दिशा एवं पृथ्वी का भू चुम्बकीय क्षेत्र आदि भी नींद नहीं आने के निमित्त कारण हो सकते है।

आज विज्ञान का युग है। औद्योगिक एवं विभिन्न प्रकार के परिष्कृत यंत्र उपकरणों के निर्माण क्षेत्र में इसने जितनी प्रगति की है, उसी अनुपात में ही भौतिक सम्पन्नता भी बढ़ाई है, विभिन्न प्रकार के सुविधा साधन भी जुटाये है। यहाँ तक कि लोगों ने ओढ़ने बिछाने तक के कपड़ों में भी कृत्रिमता का जाल बुन रखा है। शरीर को कड़ाई और कठिनाई से बचाने के लिए रजाइयों में ऊँचे स्तर की रुई भरी जाती है, पर ओढ़ने वाले इस तथ्य से सदैव अनभिज्ञ ही बने रहते हैं कि सिंथेटिक कपास के तकिये ओर रजाई एलर्जी के रूप में प्रकट होकर लोगों को चैन से नहीं सोने देते। इस संबंध में एक जर्मन कहावत बड़ी लोकप्रिय बन चुकी है “अच्छा तकिया अच्छे स्वास्थ्य का प्रतीक है। “नारमन डाइन की पुस्तक में संगीत ध्वनियुक्त तकिये का उल्लेख मिलता है। स्त्री पुरुष के सिर की भार-भिन्नता को ध्यान में रखते हुए इनका निर्माण किया गया है। जो गहरी नींद आने में सक्रिय भूमिका निभाते हैं कहीं कहीं तो चुम्बकीय चिकित्सा प्रणाली का समावेश भी तकिये में देखने को मिला हैं लंदन के बैल एण्ड क्रायडन डिपार्टमेंटल स्टोर में स्लंबर एड पिलो इसी आवश्यकता की पूर्ति करते है। फोम के बीच में महीन और अस्थिर चुम्बक संलग्न तरंगों का संचार हो उठता है, जिससे मानसिक तनाव दूर होकर नींद आसानी से आ जाती है।

पलंग के पाये रबर अथवा शीशे के न बनाये जाएँ रोगोपचार संबंधी क्लीनिकों की जन्मदात्री मेरीस्टोप के अनुसार पृथ्वी से प्रवाहित विद्युत स्पंदन का संबंध शरीर से अवश्य जुड़ा रहना चाहिए। स्वास्थ्य रक्षा के लिए उनने भूमि शयन की परम्परा को पुनर्जीवित करने पर बल दिया है।

शास्त्रों में सोते समय की उपयुक्त-अनुपयुक्त दिशाओं का वर्णन है। दिशाओं का निर्धारण व्यक्ति की मनोदशा को पूरी तरह प्रभावित करके छोड़ता है। शयन कक्ष में पलंग की स्थिति भी तदनुरूप रखनी चाहिए। सुप्रसिद्ध उपन्यासकार चार्ल्स डिकेंस तो सोते समय दिशासूचक यंत्र को जेब में रख लिया करते थे। मेरी स्टोप ने नींद नामक एक पुस्तक लिखी है जिसमें पलंग के सिर वाला भाग उत्तर या दक्षिण में होने पर बल दिया है। परन्तु यह स्थिति योग साधना में निरत रहने वालों के लिए ही उपयुक्त बैठती है। क्योंकि पर्यावरणीय तनाव क्षेत्र को सहन करने की सामर्थ्य सामान्य लोगों की अपेक्षा योगी संयमी लोगों में अधिक होती है।

चिकित्सा शास्त्र की मान्यताओं के अनुसार सामान्य स्तर के व्यक्ति को उत्तर दक्षिण की दिशा में सिरहाना नहीं रखना चाहिए। उनके स्वास्थ्य के लिए तो पूर्व दिशा की ओर सिर करके सोना ही अनुकूल पड़ता है। मद्रास के वी.एच. मेडिकल सेंटर के अनुसंधान कर्ताओं के कथनानुसार उत्तर की दिशा में सिरहाना रखने से परिधीय रक्त प्रवाह में अप्रत्याशित कमी आती देखी गयी है, जिससे स्वभाव में चिड़चिड़ापन तथा भ्रमग्रस्तता और तनाव की स्थिति उत्पन्न होने लगती है। परीक्षणों उपरान्त उनने पाया कि जो व्यक्ति पूर्व दिशा को सिर करके सोये उनके परिधीय रक्त प्रवाह में आश्चर्यजनक अभिवृद्धि होने लगी। कहने का तात्पर्य है कि पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र का प्राणि जगत पर पूरा प्रभाव पड़ता है। उत्तर दिशा में यदि सिर रहेगा, तो मस्तिष्क के विद्युतीय क्रिया−कलाप में विशेष अड़चन एवं अवरोध खड़ा होता है। जबकि पूर्व में सिर करके सोने से यह स्थिति उत्पन्न नहीं होती इस दशा में मस्तिष्क के विद्युतीय क्रिया−कलाप तीव्र हो जाते है। इतना ही नहीं अब इस चुम्बकीय क्षेत्र के प्रभाव से आमवात, गठिया और मिर्गी रोग के उपचार में भी सफलता मिल रही है।

अतः सोने से पूर्व यदि सामान्य लगने वाले इन तथ्यों पर ध्यान दिया जा सके, तो व्यक्ति अनिद्रा जैसी दुःखदायी स्थिति से बच सकता है।


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