खलीफा (Kahani)

April 1995

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अरब के एक खलीफा थे। जब मरने का समय आया तो वे पैसे का हिसाब किताब करने बैठे। अब तक राजकोष से मैंने कितना लिया? हिसाब लगाने पर पता चला। छः हजार दिरहम ले चुके। खलीफा ने अपने उत्तराधिकारियों को बुलाया और कहा मेरा घर बेचकर यह पैसा राजकोष में जमा कर देना।

दूसरा प्रश्न उनने अपने परिवार वालों से पूछा-खलीफा बनने के बाद मेरी निजी संपत्ति में कितनी वृद्धि हुई?

हिसाब लगाने पर पता चला एक गुलाम एक ऊँटनी और एक दुशाला। खलीफा ने वसीयत की कि इन्हें हजरत उमर के पास भेज दिया जाय।

तीसरी वसीयत उन्हें और करनी थी दफनाते समय मेरे जिस्म पर सिर्फ तीन कपड़े हो। दो वे धो ली जाय जो इस समय मेरे जिस्म पर लिपटी है। तीसरा टुकड़ा ही नया खरीदा जाय।

मित्रों ने पूछा-तीनों नये कपड़े हम लोग आसानी से खरीद सकते है फिर पुराने क्यों इस्तेमाल करें।

खलीफा ने कहा नये कपड़ों की मुर्दों की बनिस्बत जिंदों को अधिक जरूरत है।

महापण्डित कौत्स्य कालिन्दी तट पर बैठकर नित्य प्रवचन करते। उनका प्रधान विषम होता था लोभ से विनाश। कथन, श्रवण ही उन्हें सब कुछ लग रहा था। इतना ही नहीं प्रलोभन और व्यक्तिक्रम का अवसर न आने से वे अपने को आत्मजयी अनुभव करने लगे।

गहरे जल में रहने वाले घड़ियाल ने उनकी वाचालता, अपरिपक्वता और अहमन्यता को ताड़ा और एक अतिरिक्त प्रसंग प्रस्तुत किया। अवसर पाकर एक दिन उसने बहुमूल्य मोतियों के दाने तट से लेकर उनके आसन तक बखेर दिये।

ध्यान बटा तो चमकते मोतियों के बटोरने के लिए वे पुस्तक और माला एक ओर रखकर उठ खड़े हुए। एक एक करके बीनते हुए वे धारा के समीप तक जा पहुँचे।

घड़ियाल ने साष्टांग दंडवत करते हुए कहा जलचर होने के कारण आपके आसन तक पहुँच नहीं पाता था सो मोती बखेर कर आपको ही यहाँ तक पधारना और दर्शन देने का कष्ट दिया। मैं धन्य हो गया।”

घड़ियाल की संपन्नता और उदारता और श्रद्धा देखकर कौत्स्य बहुत प्रसन्न थे। उसे आशीर्वाद देने लगे। तो घड़ियाल और भी गिड़गिड़ाया बोला आप तो करुणा निधान है। मेरी एक और मनोकामना पुरी कर दें। त्रिवेणी स्नान की मेरी इच्छा है पर मार्ग देखा नहीं। आप मेरी पीठ पर सवार होकर वहाँ तक मार्गदर्शक करते चले तो मेरे सहस्र मणिमुक्तकों वाला जो हार है उसे भी भेंट करूँगा

लोभ के प्रथम आक्रमण आकर्षण में महापण्डित का पांडित्य हवा में उड़ गया। इतना बड़ा लाभ उनसे छोड़ते न बना सो मगर की पीठ पर जा चढ़े। बीच धारा में पहुँच कर दोनों सुखपूर्वक प्रवाह का आनंद लेने लगे।

घड़ियाल ने जिज्ञासा की आप प्रतिदिन लोभ से विनाश का जो उपदेश देते रहते थे वह उतनी जल्दी विस्मृत कैसे हो गया।

उत्तर की प्रतीक्षा किये बिना ही घड़ियाल ने करवट बदली और जल में बहते महापण्डित को उदरस्थ कर लिया?


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