पुरुषार्थ (Kahani)

April 1995

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एक श्रमिक पत्थर काटते काटते थक गया तो सोचने लगा कि किसी बड़े मालिक का पल्ला पकड़े ताकि अधिक लाभ मिले और कम मेहनत पड़े

सोचते-सोचते वह पहाड़ पर चढ़ गया और शिखर अवस्थित देवों की प्रतिमा से याचना करने लगा। उसने भी बात सुनी नहीं तो सोचा बड़े देवता की आराधना करे। बड़ों में बड़प्पन अधिक होता है।

बड़ा कौन? यों उसे सूर्य सूझा। सूर्य की आराधना करने लगा। एक दिन बादल आये और सूर्य को अपने अंचल में छिपा लिया। श्रमिक सोचने लगा-सूर्य से बादल बड़ा है। यों उसने अपना इष्ट देव बदला और बादलों की अभ्यर्थना करने लगा।

फिर सोचा बादल तो पहाड़ से टकराते और सिर फोड़कर वहाँ समाप्त हो जाते है। इसलिए पहाड़ का भजन क्यों न कर।

इसके बाद वह सबको छोड़कर अपने आप को सुधारने लगा और कुछ दिन बाद पुरुषार्थ के सहारे उस क्षेत्र के बड़ों में गिना जाने लगा।


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