महावीर का एक शिष्य हुआ है गौतम। वह परम ज्ञानी था। बड़ा पंडित था। प्रखर तथा कुशाग्र बुद्धि का था। किंतु अन्य अनेक शिष्य ज्ञान को प्राप्त करते चले गये वह नहीं प्राप्त कर सका। उसे भी यह बात खटकती थी कि आखिर उसमें क्या कमी है जो पीछे आते है वे आगे बढ़ जाते हैं और वह नहीं बढ़ पाता। उसकी कभी महावीर से पूछने की हिम्मत भी न होती। उसकी पीड़ा बढ़ती गई। वह प्रव्रज्या पर था। महावीर के अंतिम दिन थे। उन्होंने उसे लौटने के लिए संदेश भिजवाया। यह लौटा तो किंतु तब तक महावीर ने प्राण छोड़ दिये गौतम को गाँव के बाहर जब सूचना मिली कि महावीर नहीं रहे तो वह रोने लगा। ग्रामवासियों ने कहा रोते क्यों हो। वह बोला अब मेरा क्या होगा। क्या मेरे लिए कोई संदेश छोड़ गये है।
ग्रामवासियों ने कहा हाँ मरते समय तुम्हारी बड़ी याद की थी और कहा गौतम को इतना कह देना कि वह पूरी नदी पार कर गया अब किनारा पकड़े क्यों बैठा हैं। नदी तैरकर पार करने वाला यदि किनारा पकड़े बैठा रहे तो उसका नदी पार करना बेकार।”
कहते हैं कि महावीर के अंतिम वचन सुनते ही गौतम ज्ञान को लब्ध हो गया। मृत्यु के समय का यह संदेश उसके जीवन को बदल गया क्योंकि उसे पता था कि कौन-सा किनारा पकड़े वह बैठा था। अकड़ और अहंकार का किनारा छोड़ते ही वह ज्ञानी ही नहीं शिष्यों में प्रमुख हो गया।