नवरात्र सत्र की विदाई- परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी

April 1995

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आश्विन मास अक्टूबर (दिनाँक 29 अक्टूबर 1977)

गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।

देवियों भाइयों आज से पचपन वर्ष पूर्व हमारे जीवन में एक बहुत बड़ी घटना घटी। अपने गुरुदेव ने पूजा की कोठरी में प्रकाश के रूप में दर्शन दिये। मैंने उनका प्रकाश के रूप में दर्शन क्रिया शक्ल भी दिखायी पड़ी उसी स्मृति में हमने अखण्ड दीपक जलाये इसलिए कि वह प्रकाश मेरे जीवन में बना रहे जो पहले दिन गुरुदेव ने अपनी शक्ल और सूरत के रूप में हमें दिखायी। कही भूल न जाये कहीं पथ से दूर न हो जाये इसलिए अखण्ड दीपक के रूप में उनकी स्थापना कर दी गयी। उस प्रकाश के साथ अपना जीवन भर संपर्क और सम्बन्ध बनाये रखने के लिए। गुरुदेव जब मिले तो घटना थोड़ी-सी है एक आधे घंटे की। आधा घण्टे में वह घटना समाप्त हो गयी।

तब मैं पन्द्रह वर्ष का बालक था, पूजा की कोठरी में बैठा हुआ जप और ध्यान के कार्य में लगा था। यकायक एक प्रकाश कोठरी में घूमता हुआ दिखाई पड़ा उस प्रकाश के भीतर एक मनुष्य की आकृति दिखायी पड़ी। मैं तो डर गया कि क्या बात है?भूत प्रत है क्या कोई?काँपते देखकर उस प्रकाश में बैठे हुए मनुष्य ने आवाज दी बच्चे डरने की जरूरत नहीं है। तुम किसी विशेष काम के लिए आये हो। आंखें बन्द करो आंखें बन्द की मैंने और तीन जन्मों का दृश्य फिल्म की तरीके से दिखायी पड़ा मैं कौन हूँ? और कब कब जन्म लिया और यह शक्ल जो मुझे गुरुदेव के रूप में दिखायी पड़ती है, कब कब मेरे साथ नृत्य करती रही? बस इतनी घटना घटित हुई और मेरे जीवन का कायाकल्प हो गाय। मैंने उनके चरणों झुकाया और कहा आप मुझे लम्बे समय से राह बताते रहे है अब इस जीवन की भी राह बताइये। उन्होंने एक राह बतायी चौबीस साल तक चौबीस गायत्री के महापुरश्चरण करने के लिए आज्ञा दी और कहा तुझे लोहे का स्टील का बनना पड़ेगा बड़े काम करने के लिए मजबूती की जरूरत है। मजबूत व्यक्तित्व न होगा तो बड़े काम नहीं कर सकते। हम चाहते है कि भगवान की धारायें तेरे पास आयें। भगवान की धारायें को अपने भीतर धारण करने के लिए कमजोर आदमी समर्थ नहीं हो सकते। कमजोर आदमी जायेगा मर जायेगा। देवता की शक्ति जब आती है तो आदमी को पागल बना देती है उसकी सामर्थ्य को धारण करने के लिए समर्थता फरमानी चाहिए। भगवान की शक्ति धारायें हम तेरे ऊपर डालना चाहते है तेरे माध्यम से कुछ काम करना चाहते है तो मैंने कहा कराइये। उनने कहा ऐसे नहीं हो सकता। कच्चे आदमी-कमजोर आदमी जरा सा नाम लेते ही पागल हो जाते है। जरा सी सम्पदा मिलते ही विक्षिप्त और उन्मत्त हो जाते है। जाने क्या से क्या करने लगते है?”

मजबूत चीजों को ग्रहण करने के लिए मजबूत चीजें चाहिए। एटॉमिक भट्टी बनायी जाती है तो उसके चारों ओर घेरे इतने मजबूत बनाये जाते हैं कि उसके भीतर से रेडियेशन निकलकर कही आसपास के इलाकों में न फैल जाय। ये घेरे बहुत मजबूत बनाये जाते है इसी तरह आध्यात्मिक शक्तियों को भीतर से जिस किसी आदमी को अवतरित करने की इच्छा हो हनुमान जी को शंकर जी को भीतर अवतरित करने की इच्छा हो तो उसे अपने को इस लायक बनाना पड़ेगा कि शंकर जी आये तो वहाँ निवास कर सके। कमजोर आदमी स्वार्थी चालाक विलासी आदमी उसको धारण नहीं कर सकते। यदि आती भी है तो या तो टक्कर मारकर वापस चली जाती है या फट जाती है। फट जाने से मतलब पागल हो जाता है। दिमाग खराब हो जाता है जैसे रावण का हो गया था कंस का हो गया था। दैवी शक्तियों को प्राप्त कर लेना सुगम है पर उनको पचा डालना बड़ा मुश्किल है। वे हजम नहीं होती। पारा हजम नहीं होता। आध्यात्मिक शक्तियाँ हजम नहीं होता। हजम करने का वक्त आता है तो आदमी पागल हो जाता है लोकैषणा पुत्रैषणा और वित्तैषणा के आधार पर।

आध्यात्मिकता जब आती है तो भीतर जो कुछ भी है उसको पहले बाहर निकालती है। दुर्वासा ऋषि के भीतर आध्यात्मिकता आयी थी तो क्रोध काबू से बाहर हो गया था। जो कुछ भी हमारे भीतर चीजें है वे बढ़ेगी हमारे अन्दर कामुकता है तो कामुकता बढ़ जायेगी आप नव रात्रि का अनुष्ठान कीजिए यदि आप के पास संयम के विचार नहीं है तो निश्चित रूप से कामुकता बढ़ेगी क्रोध आपके भीतर भरा है और उसका परिशोधन नहीं किया गया है और आध्यात्मिक शक्तियों का अनुष्ठान आपने किया है तो मैं बताता हूँ कि क्रोध आपके भीतर बढ़ जायेगा। जो भी चीजें आपके भीतर है ज्ञान आपके भीतर है जो ज्ञान बढ़ जायेगा। भक्ति है तो भक्ति बढ़ जायेगी। अनुष्ठान का काम शक्ति उत्पन्न करना है। यह शक्ति किस में खर्च होगी? जो कुछ भी है उसी में खर्च होगी प्राप्त करना कोई मुश्किल नहीं है तप करना कठिन है गुरुदेव ने मुझे सामर्थ्यवान और शक्तिशाली बनाने के लिए तपस्वी होने के लिए आज्ञा दी है और मैं चौबीस साल तक तप करता रहा जिह्वा के तप के बारे में आपको मालूम है न कि चौबीस साल तक जौ कि रोटी और छाछ के ऊपर निकाले हैं और बाकी तप की बातें कैसे बतायें कि कैसे रहे, किसी ने देखा नहीं? हम बराबर तप करते रहे और अपने आपको मजबूत बनाते रहे चौबीस साल तक। गुरुदेव की कृपा रही और लोहा पारस को छूकर सोना हो गया।

मेरे गुरुदेव ने दो चीजें दी पहले दिन जिनको पाकर मैं धन्य हो गया। उन दो चीजों से मेरी जिन्दगी पार हो गई जो पहले दिन मुझे उन्होंने दी। तीसरी चीज की मुझे कोई जरूरत नहीं पड़ी वही वरदान काफी था क्या थी वो दो चीजें? एक तो मेरी उन्होंने कुण्डली शक्ति जगा दी पहले दिन और दूसरा उन्होंने मेरे ऊपर शक्तिपात कर दिया। गुरुकृपा का यह अनुग्रह रहा मेरे ऊपर। इसी तरह का आपको कोई लाभ मिल सके आप भी सौभाग्यवान हो जायेंगे मैं भी सौभाग्यवान् हूँ मैं अपने गुरु को पाकर धन्य हो गया हम दोनों एक दूसरे को पाकर धन्य हो गये। उन्होंने मेरी शक्तियों को जगा दी मेरे ऊपर शक्तिपात कर दिया।

शक्तिपात क्या होता है? कुण्डलिनी क्या होती है? आपको मुझसे यह बातें पूछनी चाहिए आपकी जानकारियाँ बच्चे जैसी है बच्चों की जानकारियाँ बहुत छोटी होती है बहुत कमजोर होती है कुण्डलिनी के बारे में आप लोगों का ख्याल है कि कोई मूलाधार चक्र है जहाँ साँप टाइप की चीज की चीज सोती रहती है और जब जागती है तो पीठ से रीढ़ की हड्डी में से निकल कर सिर पर जा बैठती है और आदमी को चमत्कार दिखाती है तमाशे दिखाती है आपके हिसाब से ये कोई शारीरिक रियाज है फिजीकल एक्शन है इसी प्रकार शक्तिपात के बारे में आप समझते है न कि शक्तिपात जब होता है जब गुरु सिर पर हाथ रखता है तो आदमी के भीतर करेंट मारता है झटका मारता है बिजली जैसी कोई चीज बढ़ जाती है ताकत बढ़ जाती है बेटे ये तो मैस्मरेज्म है हिप्नोटिज्म है और इस तरह के सैकड़ों ख्वाब दिखा सकता हूँ पर उससे कुछ होने वाला नहीं है। मैं आपको ऊँचे स्तर की कुण्डलिनी बताना चाहता हूँ जिसका सम्बन्ध चेतना से है। चेतना में कोई हलचल नहीं होती ओर चेतना कोई करेंट नहीं मारता। चेतना जो हमारा प्राण है जीवात्मा है इसमें से न कोई साँप निकलता है न कोई बिच्छू निकलता है ये सारी बातें मैटर से सम्बन्धित है फिजिकल है और शरीर से सम्बन्ध रखती है आत्मा से इन बातों का कोई ताल्लुक नहीं है।

बेटे जो लोग कुण्डलिनी जगा देने और दिखा देने की बात कहते है मैं उन्हें बाजीगर कहता हूँ और देखने वालों को बच्चा कहता हूँ बचकाना कहता हूँ। प्रकाश दिखा दीजिये बेटे आत्मा में आंखें नहीं होती। आंखें हमारे स्थूल शरीर में है लेकिन हमारी आत्मा कोई आंखें नहीं होती आत्मा में केवल संवेदना है तो दो तरीके से मेरी कुण्डलिनी जगी। कुण्डलिनी किसे कहते है? कुण्डलिनी विवेकशीलता को कहते है विवेकशीलता मेरी उसी दिन जग गई और मैंने देखा कि मेरी समझ और दुनिया की समझ में जमीन आसमान का अंतर है दुनिया की अपनी समझ और अकल है और वह उसी के हिसाब से हमको प्रभावित करती है तथा अपने रास्ते पर चलना चाहती है संस्कारों का कुटुम्ब का दबाव और सारे समाज दबाव एक ओर और मेरी कुण्डली एक ओर अर्थात् विवेकशीलता एक ओर मेरी विवेकशीलता एक ओर जगी और उसने कहा हम और हमारा भगवान हमारी आत्मा और परमात्मा एक ओर ये दोनों मिलकर जो फैसला करेगी वह सबसे बड़ा है यह दुनिया पागलों की है जाहिलों की है दुष्टों की है इनमें से एक का भी कहना नहीं मानेंगे हम अपनी मर्जी से चलेंगे जो बात हमको ठीक मालूम पड़ेगा हमारा भगवान जो कहेगा हम वही करेंगे किसी का नहीं मानेंगे हम अकेले फैसला करेंगे हम अकेले चलेंगे

कुण्डलिनी शक्ति का थोड़ा-सा परिचय रवीन्द्रनाथ टैगोर ने दिया है उन्होंने “कहा एकला चलो रे” अकेला चलो फैसला जो करना है अकेले करो सूर्य अकेला चलता है चन्द्रमा अकेला चलता है पृथ्वी अकेली चलती है जब से यह कुण्डलिनी शक्ति हमारे भीतर जगी लोगों की सलाह मशविरा को उठाकर एक ओर फेंक दिया और कहा आपकी राय आपको मुबारक हो। इस तरह की कुण्डलिनी शक्ति जिनकी जगी है उसको मरने के बाद मैं नहीं कहता उसे इसी जीवन में महानतायें मिली है समर्थ गुरु रामदास के ब्याह की तैयारी हो चुकी थी दूल्हा मंडप में बैठा था। पंडित चिल्लाया लड़की लड़का सावधान। समर्थ गुरु रामदास ने सोचा जरूर कोई चक्कर है। दाल में कुछ न कुछ काला है अन्यथा पंडित क्यों कहता सावधान। उन्होंने आंखें बन्द की तो सारा माजरा समझ में आ गया उनके भगवान ने कहा यह जिंदगी का मोड़ है इधर चल या उधर चल समर्थ ने कहा मैं तो आपके साथ चलूँगा बस एक ही क्षण में उनकी कुण्डलिनी जग उठी और मुकुट उतार फेंका कंगन तोड़कर फेंक दिया और मंडप भाग खड़े हुए। समर्थ गुरु रामदास ने वहाँ से निकलने के बाद क्या किया? आप कभी भी महाराष्ट्र जाये तो वहाँ एक ही संत का नाम सर्वत्र पायेंगे जिसका नाम है-समर्थ गुरु रामदास उन्होंने शिवाजी को बनाया और हिन्दुस्तान को आजादी दिलाई।

ऐसे शानदार जिन्दगी और किसी की हो सकती है क्या?हाँ एक और है और वह है शंकराचार्य उनकी मम्मी रोज कहती थी कि बेटे तेरा ब्याह करूँगी शंकराचार्य को एक सपना दिखाई पड़ा कि मैं शंकर का दूसरा रूप हूँ। मैं चाहूँ तो दुनिया का क्या क्या कर सकता हूँ। मेरे पास ज्ञान की अगाध शक्तियाँ है। बस उनने अपने भगवान से पूछा मुझे क्या करना चाहिए। आपका कहना मानना चाहिए या मम्मी का? भगवान ने कहा-हमारा शंकराचार्य ने निश्चय कर लिया और क्या से क्या बन गये। कितनी शानदार जिन्दगी उनकी व्यतीत हुई। बेटे यह उनकी कुण्डलिनी शक्ति थी जिसने उनके विवेक को जगा दिया।

कुण्डलिनी शक्ति और किसी ने जगाई थी क्या? हाँ बेटे एक और ने जगा दी थी। गोस्वामी तुलसीदास ने मीराबाई की कुण्डलिनी जगाई थी। दोनों समकालीन थे। मीराबाई ने तुलसीदास को एक पत्र लिखा था कि हमारे खानदान वाले हमारे बड़े शुभ चिंतक हैं, लेकिन असल में यही सबसे ज्यादा हमारे लिए बाधक है। वे हमको सत्संग और भजन नहीं करने देते न भगवान के मार्ग पर चलने देते है। मीरा के पत्र के जवाब में तुलसीदास ने एक कविता लिखी जो बहुत ही मार्मिक है। यह कविता तो मुझे बहुत ही प्रिय है। यदि अन्तरात्मा से पढ़े तो आपका भी वैसा ही कायाकल्प हो सकता है जैसा कि मीरा का हो गया था। कविता इस प्रकार है जाके प्रिय न राम वैदेही तजिये ताहि कोटि बैरी सम यद्यपि परम सनेही।”

सारा समाज हमारा खानदान ही है और हमारे भीतर वाले? चोर? इनका वर्णन करते हुए तुलसी दास ने कहा है कि हमारे मित्र-हमारे सहायक हमारे सम्बन्धी जो हमारे भीतर कामना के रूप में लोभ के रूप में इसके रूप में उसके रूप में विद्यमान् है बड़े बड़े प्रलोभन दिखाते है और हमको पकड़े रखते है। ये भी हमारे भीतर के है। समाज के बाहर के भी हैं। सारे के सारे लोगों की समझ एक ओर मेरी एक ओर। बस यही मेरी कुण्डलिनी है। छोटी-सी मछली पानी के बहाव को चीरती हुई उल्टी दिशा में चली जाती है पर सीधी दिशा में हाथी तक बह जाते है। बड़े बड़े समझदार अकलमन्द तक बह जाते हैं लेकिन जिनके भीतर का विवेक जागृत होता है वे अपने रास्ते पर भगवान के रास्ते पर हम और हमारा भगवान दो के हिसाब से निश्चयपूर्वक आगे चढ़ते चले जाते है। मेरी कुण्डलिनी जी थी और उसने मुझे वहाँ से देहात में जहाँ घर में खेती बाड़ी का धन्धा होता था बाप दादा पंडिताई का धन्धा करते थे बढ़ते हुए मैं कहाँ से कहाँ चला आया। कुण्डलिनी ने मुझे कहाँ से कहाँ बिठा दिया। अब मैं उस गाँव का आदमी नहीं हूँ सारे विश्व का आदमी हूँ। और अभी बहुत बढ़ रहा हूँ। अभी दस-पाँच वर्ष मेरी जिन्दगी के है और मैं बढ़ता ही चला जाऊँगा। कुण्डलिनी ने मेरा दायरा कितना अधिक बढ़ा दिया मेरा व्यक्तित्व बढ़ा दिया चिन्तन बढ़ा दिया मेरी आत्मा बढ़ा दी आस्थायें बढ़ा दी आत्मज्ञान बढ़ा दिया मेरी सामर्थ्य बढ़ा दी। हमारा मन था कि आप लोगों को बुलाकर आपकी भी ऐसी ही कुण्डलिनी जगा पाऊँ तो कितना अच्छा। मालूम नहीं मेरे सौभाग्य में वैसा कुछ सुयोग है कि नहीं जैसा कि मेरे गुरुजी में था।

मेरे गुरु ने एक और चीज दी थी। क्या दी थी? शक्तिपात किया था। शक्तिपात किसे कहते हैं? शक्तिपात-बेटे उसे कहते है जिसमें उच्चकोटि के विचारों को कार्य रूप में परिणित करने के लिए जिसे ताकत की जरूरत पड़ती है, जिस बहादुरी और हिम्मत की जरूरत पड़ती है जिस बहादुरी और हिम्मत की जरूरत पड़ती हैं उसका नाम है शक्तिपात। हर चीज के लिए हर विचार को आगे बढ़ाने के लिए शक्ति चाहिए। मोटरकार आपके पास है लेकिन उसे चलाने के लिए पेट्रोल चाहिए पेट्रोल नहीं होगा तो कार चलेगी किससे? कुण्डलिनी से विवेक आ गया विचार आ गया निश्चय करने का हौसला आ गया कि कौन-सी बात उचित है और कौन-सी अनुचित है। लेकिन जो बात उचित है उसको करने के लिए ताकत चाहिए और कौन-सी अनुचित है लेकिन जो बात उचित हैं उसको करने के लिए ताकत चाहिए और जो अनुचित हैं उसको छोड़ने के लिए भी ताकत चाहिए। जो अनुचित है वह छूटता नहीं नशे की आदत छूटती नहीं शराब की आदत छूटती नहीं दुराचार की आदत छूटती नहीं कुसंस्कार छूटते नहीं दुराचार की आदत छूटती नहीं कुसंस्कार छूटते नहीं। प्राण शक्ति है नहीं जिससे कि हम अपने कुसंस्कारों को चैलेंज कर सके कि आप हटिए ओर आप हमें छू नहीं सकते। हमें अपनी विकृतियों से लोहा लेने के लिए ताकत चाहिए। ओर किसके लिए शक्ति चाहिए। किसी भी श्रेष्ठ काम करने के लिए शक्ति चाहिए? श्रेष्ठ काम करने के लिए शक्ति चाहिए। किसी भी श्रेष्ठ काम करने के लिए शक्ति चाहिए। किसी भी श्रेष्ठ काम के लिए फैसला कर लेना ही काफी नहीं है किताब पढ़ लेना विचार सुन लेना काफी नहीं है जरूरत इस बात की है कि हमारे भीतर से एक साहस एक हिम्मत उभरे जो श्रेष्ठ कामों के लिए चल पड़े और दुष्प्रवृत्तियों से लड़ पड़े श्रेष्ठता के मार्ग पर चलने के लिए इतनी बहादुरी की जरूरत है जितनी कि सिपाहियों को भी नहीं पड़ती सिपाहियों को कम ताकत की जरूरत है लेकिन अपने मासिक चोरों के विरुद्ध लड़ने के लिए बहुत बड़ी ताकत की जरूरत है लेकिन अपने मानसिक चोरों के विरुद्ध लड़ने के लिए बहुत बड़ी ताकत चाहिए हम जिस चक्रव्यूह में फँसे हुए है उससे निकलने के लिए बड़ी बहादुरी की जरूरत है हिम्मत की जरूरत है।

मेरे गुरुदेव ने मुझे यही हिम्मत दी और मेरा शक्तिपात हो गया। शक्तिपात होने के पश्चात् में बढ़ता हुआ चला आया। उन दो चीजों के आधार पर मैं आगे बढ़ा हमें हमेशा भगवान ने ही आगे बढ़ाया श्रद्धा और विश्वास के रूप में भगवान होते है। भगवान ने मुझे कन्धे पर बिठाकर और अंगुली पकड़कर चलाया है। भगवन् क्या है? वह एक कायदा हैं कानून है एक नियम है। खुशामद से वह बिलकुल दूर है उसके हाँ न पूजा करने वालों के लिए रियायत है और पूजा न करने वाला ही के लिए शिकायत भी नहीं है। भगवान तो कायदे को देखता है बिजली का उपयोग आप कायदे से करेंगे तो वह बड़ी दयालु है और यदि कायदे करें तब बड़ी दयालु है और यदि बेकायदा करेंगे तब बड़ी दुष्ट भी है जान भी ले सकती है। जिन चीजों ने हमको उठाया उसे हम कुण्डलिनी जागरण कहते है शक्तिपात कहते है हमारे गुरु का एहसान है हमारे ऊपर जो उन्होंने हमारी दबी हुई क्षमता को जगा दिया। बीज के भीतर वृक्ष का छोटा-सा हिस्सा बैठा रहता है खद पानी और जमीन तीनों मिलकर उस बीज की क्षमता को जगाते है उभरते है हमारे भीतर जो महानतायें है उनको उठा देना यही है संतों का काम यही है भगवान का काम यही है देवी देवताओं का काम जब वे किसी पर दया करते है तो उसके भीतर की सोयी हुई क्षमता को उभार देते है देखिये मेरे जीवन में यही हुआ। मैं भी यही चाहता था। कि आपको बुलाकर इसी तरीके से आपकी सेवा करूँ जैसे मेरे गुरु ने की।

तो गुरु जी आप करिये न सेवा नहीं बेटे मैं अकेले नहीं कर सकता। अगर सीप ने अपना मुँह बंद करके रखा है यदि हम अपने कमरे के किवाड़ों को सूरज खिड़कियों को बन्द कर दे तो दुनिया का कोई सूरज हमारे कमरे में प्रकाश नहीं फैला सकता। इसी तरह हमारी मर्जी के बिना हमारे जीवन में कोई भी प्रवेश नहीं कर सकता। इसमें भगवान भी शामिल है संत भी शामिल है भगवान अपना तो है पर हमारी मर्जी के बिना वह हमारी जिन्दगी में प्रवेश नहीं कर सकता इस सम्बन्ध में हम अपने गुरु से बहस करते रहते है। हम अपनी कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए उनसे कहते है कि आपका अनुग्रह है आपकी कृपा है जो आपने हमें धन्य कर दिया वे भी कभी भी ठीक इन्हीं शब्दों को दुहराते है वे कहते है कि अगर तेरे अन्दर पकड़ने का ग्रहण करने का माद्दा न रहा होता प्रकट करने का माद्दा न होता तो इतने लाखों लोग दुनिया में है उनमें से हर किसी को हम बना सकते थे पर किसी को नहीं बना सके। तेरे अन्दर वह चीज थी जो तूने पकड़ ली हमारी कृपा को सार्थक बना दिया। हम दोनों अपनी नम्रता प्रकट करते रहते है अगर भगवान किसी पर अनुग्रह करेंगे तो उस पर कृपा करेंगे जिसने अपने आपको इस लायक बना रखा है।

मैंने यह कोशिश की कि आप किसी तरह अपने आपको इस लायक बना सकें तो मजा आ जाये। भगवान से माँगने की अपेक्षा अप अपने आप से माँगना शुरू करे तो बहुत करे तो बहुत अच्छा आप मेरी बात माने तो देने वालों की तलाश मत करे देने वाले बहुत है पर असल में लेने वाले नहीं है पात्रता का अभाव है महाराज जी कोई ऐसा संत दिखा दीजिए जो हमको वरदान दे सके। बेटे महात्मा के कितने वरदान दिला दूँ? मैं तो तेरे हाथ में मिट्टी का ढेला दे दूँगा वही तेरे लिए वरदान बन जाएगा मीरा को गिरधर गोपाल का एक मिट्टी का ढेला वरदान दे गया था और एकलव्य को मिट्टी का एक ढेला द्रोणाचार्य बनकर आ गया था। तेरे भीतर जो क्षमता है जहाँ कही भी भीतर की वह रोशनी रिफ्लेक्ट होगी वहीं चीज चमत्कारी हो जाएगी अपने आप को देख यदि आपको असीम देने के लिए तैयार है आप यह क्ष्याज मत कीजिये कि हम छोटे हैं हमारी को और सहायता करेगा आप छोटी हैसियत के है तो हम आपको मदद लायेंगे लेकिन आप कायदे पर चलिये कानून पर चलिये आप किस काम के लिए माँगना चाहते हैं बताइये हम गवाह पेश करेंगे कि कम हैसियत के कम योग्यता के होते हुए भी दैवी शक्तियाँ आपको मदद करने के लिए तैयार है दैवी शक्तियों ने किन किन की सहायता की चलिये गवाही पेश करता हूँ।

छः फूट लम्बे चौड़े सुराख से मैंने गंगा जी को गोमुख से निकलते देखा है गोमुख में जो धारा पतली-सी दीख पड़ती है वहीं आगे चलकर बंगाल में मीलों चौड़ी हो जाती है गंगा माता घर में छोटी थी व्यक्तित्व छोटा था, लेकिन रास्ते में हजारों नदी नदियों ने मदद की और उनका विस्तार होगा यह मदद की और यमुना की है। नर्मदा अमरकण्टक में एक छोटे से गड्ढे से निकलती है सभी तालाब सूख गया क्योंकि उन्होंने अपने दायरे को सीमित करके रखा लेकिन नर्मदा ने कहा था कि हम अकेले कष्ट उठाएँगे निरंतर श्रम करेंगे लोकहित के लिए। चलिए अब मैं मनुष्य का उदाहरण देता हूँ राजस्थान के एक स्वामी जी हुए है नाम था केशवानन्द जिसने वास्तव में संत की अभिव्यक्ति पेश की उन्होंने गाँव गाँव में स्कूल खुदवाया बाद में वे हिन्दुस्तान की पार्लियामेण्ट में भी कई साल तक मेम्बर रहे। इसी तरह छोटी-सी हैसियत से पैदा हुआ राजस्थान का एक छोटा-सा प्राइमरी स्कूल का मास्टर नौकरी छोड़कर चला गया और गाँव में छप्पर के नीचे कन्या पाठशाला प्रारम्भ कर दी। उसके पश्चात् क्या हुआ? देखिये उसकी नीयत भगवान भी एक ही चीज देखता है और वह है नीयत। भगवान ने उस मास्टर की नीयत को देखा और उसके हाथ का चलाया हुआ विद्यालय आज हिन्दुस्तान के कन्या महाविद्यालयों में अग्रणी माना जाता है। बाबा साहब आमटे नागपुर के एक बहुत छोटे वकील जो गुजारे लायक पैसा कमा लेते कि वकालत छोड़ दी और कोढ़ियों को लेकर एक आश्रम स्थापित किया। उनका आश्रम अब एक विश्व विद्यालय बन गया है जहाँ अंधों के लिए कोढ़ियों के लिए काम करने का प्रशिक्षण मिलता है। जार्ज वाशिंगटन जिसका बाप एक लकड़हारा था। उसकी माँ उसे एक झोपड़ी में बन्द कर जाती थी कि यदि मैं तुझे खुला हुआ छोड़ जाऊँगी तो भेड़िये खा जायेंगे जब तू बड़ा हो जायेगा तब तू लकड़ियाँ काटना भेड़ियों का मुकाबला करना।

कहने का तात्पर्य यह है कि जब आदमी की परिस्थितियाँ आदमी की अक्ल कमजोर हो तो भी क्या उसकी उन्नति के लिए गुँजाइश है जार्ज वाशिंगटन आपको गवाह देंगे और कहेंगे हमारे पास योग्यता साधन बुद्धि कौशल कुछ भी नहीं था सिर्फ एक ही साधन था वह था हमारा लक्ष्य। लक्ष्य ऊँचा था। आदर्श ऊँचे थे, इसलिए सारी दुनिया ने हमारी सहायता की। सहायता इस तरीके से बरसी जैसे अमृतवर्षा स्नेहवर्षा शक्तिवर्षा। ईमान साफ होना चाहिए। यदि आप अपना व्यक्तित्व अपना अन्तरंग इतना ऊँचा उठा सकते हैं जितना उस बालक का हो सकता है तो बाकी कमी आप हमारे ऊपर छोड़ सकते हैं। किसी देवता की कृपा हमको मिलेगी बेटे मैं यह जिम्मेदारी उठा सकता हूँ। देवताओं से मेरी बड़ी जान पहचान है। मेरा गुरु भी बड़ा समर्थ है। मैं गुरु की हिमायत कर लूँगा, गुरु का पल्ला पकड़ लूँगा। उनसे कहूँगा कि जो आपने मुझे भी है उसे छीन लीजिए और इसको दे दीजिए। आप संतों की तलाश मत कीजिए। देवताओं का मंत्र भी आपको सिद्ध नहीं करना पड़ेगा मैं देवता के हाथ जोड़ूंगा और कहूँगा कि मेरे पास कोई पुण्य हो तो मेरी शक्ति इसे दे दीजिए।

आपको इसके लिए जप भी नहीं करना पड़ेगा आपके बदले मैं जप कर लूँगा। आप तो एक ही काम करें कि अपना कायाकल्प करके यहाँ से जाएँ कायाकल्प वैसे तो शरीर के कायाकल्प को कहते है बुड्ढे से जवान बनने को कायाकल्प कहते है लेकिन मैं आपके अंतरंग को बदल देना चाहता हूँ हम चाहते है कि आपकी नीयत आपका ईमान आपका व्यक्तित्व चिन्तन और चरित्र जिस स्तर का था, उसे बदल दे। अगर आपके अंतरंग वाला हिस्सा बदल जाय तो मजा आ जाय। अभी तो आपके मन के ऊपर एक ऐसी छाप जम गई है एक ऐसा संस्कार जम गया है कि आप अपने को शरीर मानते है। छोटा आदमी बीमार आदमी कंगाल या अमीर मानते है। अभी तो आप शरीर को मान्यता देते है। यदि संभव हो सके तो आप यह कोशिश करना कि हम शरीर नहीं शरीर हमारा औजार है हथियार है और हम आत्मा है आप कोई न कोई समय ऐसा जरूर निकाले जब आत्मचिन्तन कर सके सोचे जब हम शरीर से बाहर निकल जाते हैं और ऊँचाई पर मीनार पर पहाड़ पर जाकर बैठ जाते है वहीं से आपको देखते रहे कि हमारा वह मरा हुआ शरीर पड़ा हुआ है और हम उससे अलग बैठे है हमारे हित अलग है और आत्मा की अपनी अभी तो सब गुड गोबर कर रखा है आपने जो किसी काम का नहीं है।

अभी तो हमने अपनी चेतना को शरीर में इस कदर घुला रखा है कि शरीर के अलावा अपने बारे में कुछ विचार ही नहीं कर पाते कि हमारी आत्मा भी है या नहीं आत्मा का भी कुछ लाभ होता है हमें मालूम ही नहीं। आत्मा का भी कुछ स्वार्थ होता है उसकी भी कुछ आवश्यकतायें होती है हमें मालूम ही नहीं सिवाय शरीर की आवश्यकताओं के हम कुछ सोच ही नहीं पाते यदि संभव हो सके तो यह कोशिश करना कि आप शरीर से अलग हो सकें अगर आप अलग होने कि कोशिश करेंगे तो आपके सामने नये विचार आयेंगे, नये कार्यक्रम आयेंगे कि हमको क्या करना चाहिये और कैसे करना चाहिए। शरीर व आत्मा को अलग करने कि कोशिश करना। दोनों के हित अलग-अलग करने कि कोशिश करना चाहिए-ऐसा जब आप जब आप विचार करेंगे तो आपको दिशा मिलेगी।

जब आप यहाँ से जाये तो माली होकर जाये। अहम् मालिकी को यहीं छोड़ जाएँ दुनिया में मालिक होना बन्द कर दें जहाँ कहीं भी जाये माली होके जायें मालिक मत होना। जब तू मालिक हो जायेगा तो दुनिया इतनी भारी हो जायेगी तेरे लिये कि तेरे प्राण ले जायेगी जब तू माली हो जायेगा तो दुनिया हँसती भी रहेगी और तेरे साथ रहेगी। जब मक्खी चासनी में घुसती है तो पंखों को लपेट लेती है और मर जाती है और जब किनारे बैठी रहती है तो उसका जायका चखती रहती है जुड़ो मत उससे। मालिकी को छोड़ अपना कर्तव्य पूरा कर बस अपनी जिम्मेदारियों को पूरा कर। अपनी स्त्री के लिए, बेटे के लिये,बाप के लिए,बहन के लिये,समाज के लिये हर एक के प्रति अपने कर्तव्य को पूरा करना है मालिकी मत जताना,मुनीम की तरीके से रहना सो जो तेरे पास पैसा है उसका ठीक उपयोग कर सकेगा। मालिक बनेंगे तो आपको दुनिया में पाप कमाने पड़ेंगे न्याय में आप चल नहीं चल सकेंगे जो वस्तु आपको मिली है, उसका कोई उपयोग नहीं कर सकेंगे आपके पास समय की सम्पदा है, श्रम की सम्पदा है बुद्धि की सम्पदा है, उसका उपयोग है यही काया कल्प करना है यदि संतों का अनुग्रह प्राप्त करना है देवताओं की कृपा प्राप्त करनी हों तो भगवान जितना उदार है उतनी उदारता सीखे। शरीर की अपेक्षा अपनी जीवात्मा पर विचार करे जो आप के पास सम्पदा है उसका उपयोग कीजिए और जो नहीं है उसका रोना बन्द कीजिए। जो है उसका उपयोग यदि करेंगे तो सहायता अपने आप मिल जायेगी। आप पहले उदार बनिये अपनी योग्यता और पात्रता के सम्बन्ध में विचार कीजिए आप अपनी नीयत को ईमान को इस तरह बनाये कि भगवान को समाज को पड़ोसियों को पता चल जाए की आप इस लायक है तो आप के पास उनका स्नेह सहयोग और आशीर्वाद बरसेगा। आप के पास हर चीज बरसेगी जिसकी आप को आवश्यकता है माँगने की अपेक्षा देने की परम्परा जो ऋषियों की परम्परा है बनाए। अपनी स्त्री को देंगे प्यार बच्चों को देंगे संस्कार, अपनी भाई-बहन को देंगे स्नेह समाज को देंगे ज्ञान और सारे विश्व को देंगे श्रेष्ठ परम्परायें यदि हम कुछ नहीं दे सकते तो रास्ता तो दिखा सकते है अपनी शानदार जिन्दगी जी कर के ताकि दूसरे आदमी हमारे चले हुए रास्ते पर चले अपने आप को तो श्रेष्ठ और शालीन बना ही सकते है हम निर्धन है, गरीब है तो भी ऐसा कर सकते है चारों ओर जो गहरा अंधकार छाया हुआ है, लोगों को रास्ता चलने के लिए अपने चरण चिन्ह छोड़ते हुए चले जाए हम विश्वास ले कर चले थे, आप भी विश्वास लेकर चले तो भी ये धन्य हो जायेंगे मैं कहता हूँ आप कष्टों का तकलीफ का रास्ता नहीं चलेंगे तो आप नहीं फलेंगे आप बीच की तरह से गले तो वृक्ष की तरह फलेंगे वृक्ष के तरीके से फलने की लिए बीज की तरह गलना आवश्यक है इसके लिए बड़ा कलेजा होना चाहिए वे तपस्वी होंगे, महापुरुष होंगे जिन्होंने अपने कलेजे चौड़े किए कृपणता पर अंकुश रखा। लोक हित के लिए, देश के लिए त्याग और बलिदान किया। ये ऐतिहासिक लोग है। वे समाज का सम्मान पाने के लिए अधिकारी हुए है, ऊँचे पदों पर पहुँचे है नेता हुए है। जो कुछ भी वैभव और वर्चस्व मिला है, गलने की वजह से मिला है आप भी बीज की तरह से गले ताकि वृक्ष की तरह से फलने की सम्भावना हो सके। अपने अंदर विवेक शीलता को जगाएँ यदि आप के अन्दर इतनी हिम्मत हो जाये तो आप के अन्दर शक्तिपात कर सकने में हम समर्थ हो सकते है

आज की बात समाप्त ॐ शान्ति


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