महात्मा भगवान दीन की सभा में यदि कभी लोग ताली बजा देते तो थे बड़े उदास हो जाते। सोचते कि कहीं कोई असत्य बात मुँह से निकल गई? एक बार वे सत्य पर ही बोल रहे थे। लोगों ने तालियाँ बजाई वे थोड़ी देर के लिए रुके। चारों ओर देखा पुनः बोलने लगे और थोड़ी देर के बाद लोगों ने फिर तालियाँ बजाई वे फिर रुके और बोले। मेरे द्वारा सत्य के विषय में कही जा रही बातों से आप सब सहमत होकर ही समर्थन में ताली बजा रहे है? भीड़ एक स्वर में जो सत्य आचरण भी करते हैं। अब लोग एक दूसरे का मुँह ताकने लगें। महात्मा बोले, ताली बजाने से पूर्व यह बात सोचनी चाहिए थी सत्य बोलना और सुनना ही पर्याप्त नहीं आचरण में उतारा जाना चाहिए।