बीमारियाँ (Kahani)

April 1995

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बीमारियों को सभी ने दुत्कारा तो वे पहाड़ के पास गई और वे बोली अपनी सहनशीलता और उदारता प्रख्यात है। हमें सभी दुत्कारते हैं आप हमें आश्रय दे तो यही रहकर दिन गुजारे पहाड़ ने स्वीकार कर लिया। वे चैन से रहने लगी। रोज ही पूछती पिताजी कोई सेवा हो तो बताना। पहाड़ हँस भर देता।

एक बार उस क्षेत्र के किसानों का मन आया कि पहाड़ काटकर खेत बनायें और नई जमीन हथियाये एक ओर से किसानों की सफलता देखकर चारों ओर लोग चिपट गये और पहाड़ का बहुत-सा हिस्सा कट गया। बीच का टीला भी गिरने जैसा हो गया।

पहाड़ चिंता में बैठा था। बीमारियों ने चिंता का कारण पूछा और कोई सेवा हो तो बतायें सदा की भाँति पूछा।

पहाड़ को एक सूझ सूझी। बीमारियों से कहा। तुम लोग इन काटने वालों से चिपट पड़ो और यहाँ से भगा दो। नहीं तो हमारा सफाया हो जाएगा तुम्हें भी भगाना पड़ेगा बीमारियाँ बहुत दिन से खाली बैठी थी। उत्साहपूर्वक चल पड़ी और पहाड़ काटने वालों से पूरी तरह चिपक गई। फिर भी पहाड़ कटना रहा। काटने वालों ने हार नहीं मानी।

कितने ही दिन बीत गये। पहाड़ ने बीमारियों से पूछा- इतने दिन में क्या किया? एक भी बीमार नहीं पड़ा और खुदाई ज्यों कि त्यों चलती रही।

बीमारियों ने अपनी हार पर बड़ी लज्जा प्रकट की और कहा यह लोग इतना पसीना बहाते है। कि उनके साथ-साथ हमें भी बाहर निकलना पड़ता है, ठहरने की जगह ही नहीं मिलती।


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