गुरु ने शिष्य से पूछा “यदि तुम्हारे एक हाथ में घी से भरा लोटा हो व दूसरे में छाछ से। रास्ते में कोई तुमसे टकरा जाय व दोनों में से एक लोटा गिर जाने की स्थिति बनने लगे तो तुम कौन सा संभालोगे।”
“शिष्य ने उत्तर दिया घी का लोटा ही संभालेंगे।”
गुरु प्रसन्न हुए और बोले “हमारा शरीर छाछ की तरह है व आत्मा घी की तरह है। फिर भी मनुष्य शरीर को संभालने की ही चिंता अधिक करता है। घी के लोटे की तरह आत्मा को संभालने की नहीं और जो मनुष्य तुम्हारी तरह आत्मा की चिंता करता है वही जीवन के आनन्द की प्राप्ति करता है।”
ये सभी मापन जिनका उल्लेख ऊपर किया गया है, ब्रह्मवर्चस् शोध संस्थान द्वारा यहाँ आने वाले शिविरार्थी साधकों पर परीक्षण कर नोट किये जाते रहे हैं। जिन अध्यात्म उपचारों के प्रयोग उन पर किये गये उनमें प्रमुख थे शरीर परक व्यायाम, आहार में परिवर्तन, योगसाधनाएँ, मंत्र विज्ञान एवं यज्ञ विज्ञान।
इन पाँचों उपचारों का प्रभाव नौ दिन व एक माह के शिविरार्थी साधकों पर देखने का प्रयास किया गया कि न्यूनतम कितनी अवधि में किस स्तर का परिवर्तन होता है। कुछ प्रयोग स्थायी उन साधकों पर भी किये गये जो शाँतिकुँज के साधना आरण्यक में निवास करते हैं। इन सब प्रयोगों के बारे में विस्तार से जाने से पूर्व ऊपर वर्णित अध्यात्म उपचारों के संबंध में अगली बार पढ़ें।
(-क्रमशः)
परम पूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी-