सत्प्रवृत्ति संवर्धन में लगाया हुआ समय (Kahani)

December 1991

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स्वामी रामतीर्थ जब जापान गये तो उन्होंने कितने ही बगीचों में छोटे देवदारु के पेड़ देखे जो बीस बीस वर्ष पुराने थे। इतने दिनों में तो यह वृक्ष पूरा बढ़ जाता है।

स्वामी जी ने माली से पूछा इनके इतना छोटा रह जाने का क्या कारण है। उनने बताया इसके बड़े होने पर हम लोग हर साल काटते रहते हैं और फैलने नहीं देते इसलिए वे आजीवन बौने ही बने रहते हैं।

स्वामी जी इस घटना का अपने प्रवचनों में प्रायः उल्लेख किया करते थे और कहते रहते थे कि जो लोग अपने सद्गुणों की जड़ें फैलने नहीं देते, उन्हें काटते ही रहते हैं वे व्यक्ति की दृष्टि में ऐसे ही बौने रह जाते हैं।

प्रायश्चित प्रकरण में अनेक प्रकार के दानों का उल्लेख हुआ है, पर धन का स्थानापन्न श्रम भी हो सकता है। वस्तुतः श्रम ही वह धन है जिसके द्वारा प्रायश्चित करना हर किसी के लिए संभव है।

सत्प्रवृत्ति संवर्धन में लगाया हुआ समय इस आवश्यकता की पूर्ति करता है। इस दृष्टि से धर्म-प्रचार के लिए की गयी पद यात्रा, तीर्थयात्रा सर्वश्रेष्ठ है। सद्भाव विस्तार के लिए जनमानस का परिष्कार आवश्यक है। यह कार्य धर्म प्रचार के लिए नियोजित की जाने वाली तीर्थयात्रा, पदयात्रा जितनी अच्छी तरह कर सकती है। उतना और किसी प्रकार संभव नहीं। प्रायश्चित के ऋण विमोचन चरण को पूरा करने के लिए अन्यान्य, सत्प्रवृत्ति, संवर्धन प्रयासों के साथ-साथ तीर्थयात्रा पर निकलने से पापकृत्यों का समाधान हो जाता है और अंतःकरण के परिमार्जन का वह लाभ मिलने लगता है जो उपासना पूर्व प्रायश्चित विधान का मूलभूत उद्देश्य है।


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