माँद में ही भूखा मर गया (Kahani)

December 1991

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

एक खरगोश बहुत भले स्वभाव का था। जंगल में सभी जानवरों से उसकी मित्रता थी। सभी की सहायता के लिए वह सदैव तैयार रहता था।

एक बार खरगोश बीमार पड़ा। समाचार सुनकर सभी आस पड़ोस के जानवर सहानुभूति प्रकट करने आयें।

बीमारी के लक्षण प्रकट होते ही खरगोश ने आड़े वक्त के लिए कुछ घास जमा कर रखी थी। सहानुभूति प्रकट करने वाले जो भी आते उसी संचित घास को चरते। इस प्रकार वह दो चार दिनों में ही समाप्त हो गयी, बीमारी के अच्छा होने पर खरगोश कमजोरी के कारण घास चरने न जा सका और अपनी माँद में ही भूखा मर गया।

मृतक भोज के दिन भी सहानुभूति प्रकट करने के लिए आने वाले प्रायः यही करते हैं।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles