बौने शरीर से भले हों, मन से नहीं

December 1991

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मानवी क्षमता असीम और अप्रत्याशित है। काया का रंग, रूप, आकार प्रकार, ऊँचाई निचाई कैसी भी क्यों न हो, यदि मनुष्य शारीरिक, मानसिक व भावात्मक रूप से स्वस्थ है तो तो प्रतिभा प्रखरता के क्षेत्र में वह कीर्तिमान स्थापित कर सकता है। शरीर से छोटे लोग मन से भी छोटे होते हैं, यह मान्यता किसी हद तक ठीक हो सकती है, पर उसे निर्विवाद व सुनिश्चित नहीं कहा जा सकता। चेतना सत्ता पर कोई बंधन नहीं लग सकते। वह इच्छा और संकल्प लेकर खड़ी हो जाए तो अद्भुत और असाधारण प्रगति हर परिस्थिति में करके दिखा सकती है।

प्रायः शरीर का बौनापन उपहासास्पद माना जाता है और समझा जाता है कि असाधारण कम ऊँचाई के कारण बौनेपन से ग्रस्त व्यक्ति सामान्य लोगों की तरह पुरुषार्थ नहीं कर पाते, फलतः उनकी प्रगति भी अवरुद्ध हो जाती है। जो लोग उन्हें अपनी तुलना में छोटे पाते हैं और कौतुक कौतुहल की दृष्टि से देखते तथा उपहास करते हैं, वे इस तथ्य को भूल जाते हैं कि वास्तविक बौनापन तो मन का बौनापन है, जो शरीर की ऊँचाई कम होने पर भी कही अधिक उपहासास्पद है। शरीर की वृद्धि रुक जाने में मनुष्य के अपने पुरुषार्थ का दोष नहीं होता। उसके कारण अविज्ञात होते हैं और उन्हें हटाने में व्यक्ति के प्रयत्न प्रायः कुछ अधिक काम नहीं आते, किन्तु मन के बौनेपन के बारे में ऐसी बात नहीं मनुष्य चाहे तो अपने गुण, कर्म, स्वभाव को चिंतन, चरित्र, व्यवहार की उत्कृष्टता ही नहीं मस्तिष्कीय चेतना की प्रखरता भी बढ़ा सकता है। मानसिक दृष्टि से ओछे एवं पिछड़े हुए मनुष्यों को बौने मन वाला कहा तथा और भी उपहासास्पद माना जा सकता है।

इतिहास में अनेक बौने व्यक्तियों की प्रतिभा का उल्लेख मिलता है। हिन्दू धर्म की अवतार शृंखला में एक वामन अवतार भी थे, यह नाम इन्हें इसलिए दिया गया कि वे वाबन अंगुल के थे, शब्द शास्त्र की दृष्टि से वामन और बौना लगभग एक ही अर्थ के बोधक हैं। अष्टवक्र ऋषि जो महाराज जनक के गुरु थे, आठ जगह से टेढ़े मेढ़े थे। उनके हाथ पैर मुड़े तुड़े थे, अपंग पीठ, कूबड़ के होते हुए वे ऊँचाई की दृष्टि से बौने जितने ही रह गये थे। इतने पर भी वह प्रतिभा के धनी थे और सर्वत्र पूज्यनीय माने जाते थे। यह इस बात का प्रमाण है कि चेतना सत्ता पर शारीरिक अपंगता या बौनेपन का कोई बंधन नहीं है। प्रयास और पुरुषार्थ के बल पर उसे हर कोई विकसित कर महानता का वरण का सकता है। बौने व्यक्तियों में कभी-कभी ऐसी विशेषताएँ देखी गयी हैं जिनसे भाग्य पर पुरुषार्थ की विजय का प्रत्यक्ष प्रमाण मिलता है।

प्रख्यात ग्रीक कवि फिलेटास की गणना बहुत छोटे कद के लोगों में होती है। पैरों में में बहुत भारी जूते वे इस डर से सदैव पहने रहते थे कि हल्के होने के कारण कही हवा में उड़ न जाएँ। वे मिश्र देश के राज गुरु भी थे। इसी तरह होमर, हैरोडोट्स, प्लिनी पोप्योनियम, अरस्तु आदि विश्व विख्यात मनीषियों का शारीरिक दृष्टि से बौने के रूप में उल्लेख हुआ है।

फ्राँस के प्रसिद्ध चित्रकार और फिल्म अभिनेता तुलूज लात्रे यों तो अपनी प्रतिभा के कारण ही प्रख्यात हुए थे, पर उनके बौनेपन ने इस प्रसिद्धि में और भी चार चाँद लगा दिये थे। इसी प्रकार इंग्लैण्ड के एक बौने ने रोते हुए व्यक्ति को भी हँसा देने की कला में भारी ख्यात और प्रवीणता प्राप्त की थी। जेफरी हडसन नामक इस बौने ने इसी आधार पर अपनी अच्छी आजीविका भी उपार्जित करने में सफलता पायी थी। ड्यूक आफ बर्मिंघम की रानी छोटे कद के कारण राज परिवार की कृपा पात्र मानी जाती थी। एक बार चोरों ने उनका अपहरण कर लिया तो रानी ने अपनी सूझ बूझ से एक बड़ी राशि फिरौती के रूप में देकर किसी प्रकार उनके पंजे से छुटकारा पाया।

अमेरिका में गत शताब्दी में जनरल टाम धम्ब अपनी प्रतिभा के लिए प्रख्यात थे। जटिल से जटिल गुत्थियों को सुलझा देना उनके बांये हाथ का खेल था। वे मात्र 31 इंच के थे। उनके नाटे कद के कारण वे चाहे जहाँ प्रवेश पा लेते थे। इनके समान या छोटे कद की पत्नी न मिली तो उन्हें अपने से दो इंच ऊँची लेविनिया वारेन नामक बौनी महिला से विवाह स्वीकार करना पड़ा।

फ्राँस में एक 23 इंच ऊँचा बौना रिचीवर्ग जासूसी दुनिया में सबसे अधिक विख्यात था। युद्धकाल में वह जासूसी की अति महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा। दुश्मन सेना उसे बालक समझती थी और वह युद्ध मोर्चे तक बहुत महत्व के कागज पहुँचाने ओर लाने का काम सरलता पूर्वक करता। 90 वर्ष की दीर्घायु तक वह जीवित रहा।

फ्राँस के मूर्धन्य नेतृत्ववेत्ता ब्रेसचिन ने अपनी पुस्तक में बौने व्यक्तियों में सामान्य व्यक्तियों की तुलना में कई गुणों की अधिकता रहने की बात लिखी है। उनके अनुसार बौने व्यक्ति अपने आकार की तुलना में अधिक फुर्तीले और हिम्मत वाले होते हैं। वे मिलजुल कर रहने और प्यार मोहब्बत का परिचय देने में किसी से कम नहीं होते हैं, सहयोग-सहकार की प्रवृत्ति इनके नैसर्गिक गुण हैं। विद्वान मनीषी बैफोन ने भी इसी तरह मैडागास्कर में पायी जाने वाली किमोस नामक एक बौने कबीले का कई दृष्टियों से विवेचन किया है। अपनी कृति में उन्होंने कहा है कि शरीर छोटे होने के साथ साथ यद्यपि मनुष्य की अनेक क्षमतायें घट जाती हैं, फिर भी चेतनात्मक स्तर पर वह सामान्य कद वालों की तुलना में किसी से कम नहीं ठहरते, उनका भावात्मक स्तर तो देखते ही बनता है।

इतिहास-वेत्ता जानते हैं कि संसार में पहले बौनापन अधिक था, अब वह क्रमशः घट रहा है। वंशानुक्रम की परतों तक जहाँ इस कमी ने प्रवेश कर लिया है। वहाँ अब भी पीढ़ी दर पीढ़ी यह कमी चलती रहती है और बौनी जातियां ही बन जाती हैं। अभी भी फिलीपीन्स, मलेशिया, न्यू गयाना, मध्य एशिया, अफ्रीका में कितने ही कबीले कद की दृष्टि से बौने ही बने हुए हैं। अफ्रीका का काँगो देश तो बौने नागरिकों के लिए प्रसिद्ध है। वहाँ के वन्य प्रदेश में चार फुट से भी कम ऊँचाई के लोगों की बहुत बड़ी आबादी है। पिछली सहस्राब्दी में लंका, भारत, जापान, चीन, फ्राँस, जर्मनी, स्विट्जरलैण्ड आदि एशिया एवं यूरोप के कई देशों में बौनी जातियां रहती थीं। अनुसंधानकर्त्ताओं का कहना है कि वे या तो अविवाहित रहने के कारण अथवा बड़ी आयु के लोगों के साथ रक्त मिश्रण के कारण समाप्त होते चले गये।

यह मान्यता सही नहीं है कि शरीर के छोटे होने से मन भी छोटा है और सूझ बूझ तथा परिस्थितियों का सामना कर सकने की कुशलता में भी कमी आ जाती है। कद की ऊँचाई-निचाई का प्रतिभा प्रखरता से कोई सीधा संबंध नहीं है। इसका एक उदाहरण बाल्टी-मोर में पिछले दिनों संपन्न हुए एक बौने सम्मेलन में बौने लोगों ने ही प्रस्तुत किया था, यह सम्मेलन इस विकृति के कारणों को खोजने और निवारण उपायों की खोज करने के साथ ही शारीरिक कमी के कारण उन्हें अर्थोपार्जन एवं नागरिक सम्मान पाने में जो कठिनाई होती हैं, उसके निवारण में सहयोग देने के लिए आयोजित किया गया था। जब यह सम्मेलन चल रहा था, उसी समय एक बहुत छोटे कद के बौने इंजीनियर अपने निजी विमान को स्वयं उड़ाते हुए भाग लेने पहुँचे तो उपस्थित सदस्यों का साहस बढ़ा और उनने समझा कि शरीर की ऊँचाई कम होने से अन्य विशेषताओं को ऊँचा उठने में कोई अड़चन उत्पन्न नहीं होती है। अमेरिका में बौने लोगों का संगठन “दी लिटिल पीपुल्स ऑर्गनाइजेशन”


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