मानवी पुरुषार्थ के लिए निताँत संभव (Kahani)

December 1991

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अपनी बात को हम कितना ही सही क्यों न माने पर साथ ही यह भी ध्यान रक्खें कि मतभेद वाले पक्ष भी हमारी ही तरह सच मानने वाले हो सकते हैं। सत्य तक पहुँचने के लिए मस्तिष्क खुला रखना चाहिए। “ही” की कट्टरता में भी ‘भी’ की गुंजाइश छोड़नी चाहिए।

की स्थापना विलीवार्टी नामक एक प्रतिभावान व्यक्ति ने की थी। वह माना हुआ विद्वान व प्रतिभाशाली होने के साथ-साथ बौना भी था।

वंशानुक्रम में उत्पन्न हुई खामी एवं हारमोन्स ग्रंथियों की विकृति शारीरिक बौनेपन के दो प्रमुख कारण माने जाते हैं। जिस तरह पिछड़ेपन के अनेकों अभिशाप विभिन्न कारणों से मनुष्य पर बरसते रहते हैं और व्यक्तित्त्व को दबाने का प्रयत्न करते हैं, उसी प्रकार बौनापन भी है। यह प्रकृति प्रदत्त लगते हुए भी वस्तुतः मनुष्यकृत है। उसे अन्य रोगों की तरह प्रयत्नपूर्वक हटाया जा सकता है। कोई भी कठिनाई ऐसी नहीं जो सरल न की जा सके। बौनापन भी इसका अपवाद नहीं है। मानवीय संकल्प और पुरुषार्थ सर्वोपरि है। वह हर कठिनाई से लड़ने और हर स्थिति में आगे बढ़ने में सफल हो सकता है। शारीरिक एवं मानसिक बौनेपन के कारण उत्पन्न पिछड़ेपन को निरस्त कर सकना मानवी पुरुषार्थ के लिए निताँत संभव है।


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