गायत्री परिवार की शुभ कामनाएँ (Kahani)

December 1991

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विगत 20 अक्टूबर को उत्तराखण्ड हिमालय के गढ़वाल क्षेत्र में आयें भूकम्प ने एक बार फिर प्रकृति का रौद्र रूप दिखा दिया है। भारत में इस सदी के भयंकरतम माने जाने वाले इस भूकम्प ने पर्यावरणविदों को पुनः चिंतन करने पर विवश कर दिया है। जो त्रासदी हुई है, उसे आँखों से देखने के बाद दिल दहल उठता है। मानवी संवेदना जिन्दा है इसलिए सहायता भी पहुँची है किन्तु जिन तक पहुँचना चाहिए था, उन तक या तो नहीं पहुँची या देर से पहुँची।

इस आध्यात्मिक संगठन ने सामूहिक पुरश्चरण का शुभारंभ विगत तीन वर्षों पूर्व से ही बड़े व्यापक स्तर पर कर दिया था ताकि विभीषिकाएँ जिनकी घोषणा परम पूज्य गुरुदेव ने की थी, क्रमशः निरस्त हों। फिर भी जन धन हानि जो हुई है, उसकी क्षति पूर्ति हेतु शाँति कुँज का एक दल स्वयं सेवकों सहित नवम्बर के प्रथम सप्ताह में गया व जन-जन तक दूर दराज के पहाड़ी स्थानों तक साधन सहायता पहुँचाने का उसने प्रयास किया। जन सहानुभूति ही उसने अर्जित नहीं की, कष्ट पीड़ितों के आँसू पोंछने में आगे बढ़−चढ़ कर इस दल ने औरों का हाथ बँटाया। सभी केन्द्र प्रज्ञा संस्थानों से शाँतिकुँज की कुशल क्षेम के तार-टेलीफोन आए। शांतिकुंज को किसी भी प्रकार की कोई क्षति नहीं पहुँची है। किन्तु हिमालय का हृदय जो घायल हुआ है उस घाव को दूर होने में अभी काफी समय लगेगा। पूरे गायत्री परिवार की शुभ कामनाएँ कष्ट पीड़ितों के साथ हैं।


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