Quotation

February 1982

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

इन दिनों आत्मिकी के बारे में चल रहे अंधविश्वासों ने जन−मान्यता कुछ विचित्र स्तर की बना दी है। समझा जाता है कि आसमान में रहने वाले देवी−देवता बेकार बैठे रहते हैं। उन्हें पूजा कराने की भारी उत्कंठा है। जो उनकी इस आवश्यकता को छोटे रूप में भी उपेक्षापूर्वक भी कर दें उसी को वे अपना भक्त मान लेते हैं और मनोकामना पूर्ण करने के लिए आँख मूँदकर दौड़ पड़ते हैं, उचित−अनुचित जैसा कुछ भी उन्हें नहीं सूझता। पूजा लेने और वरदान देने भर का धंधा उन्होंने अपनाया हुआ है, इसी भ्रमग्रस्तता में देवपूजा के नाम पर आत्मिकी का अधिकांश आडंबर कागजी रावण की तरह अपना विशालकाय ढकोसला रचे खड़ा है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles