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February 1982

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साधना के दर्शन में भ्रांति घुस पड़ने से ही इन दिनों देवत्व के साथ संपर्क-साधना और उससे लाभान्वित हो सकना अशक्य बन गया है। हर क्षेत्र अपने पुरुषार्थ की उपलब्धियों पर प्रसन्न होता और गर्व करता दीखता है। एक अध्यात्म क्षेत्र ही ऐसा है, जिसमें उदासी, निराशा, असफलता का माहौल है। अविश्वास बढ़ने से प्रयत्न शिथिल हो रहे हैं और उस शून्य को भरने के लिए निहित स्वार्थों की विडंबना अनेकानेक प्रपंचों का ढकोसला सर पर लादकर सामने खड़ी हो रही है। इस स्थिति का अंत होने के लिए आवश्यक है कि आत्मिकी का वास्तविक स्वरूप और प्रयोग सामने आए।


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