द्वौ क्रमौ चित्तनाशाय योगो ज्ञानं च राघव।
योगश्चित्तनिरोधों हि ज्ञानं सम्यगवेक्षणम्॥
–योग वाशिष्ठ
मन को वश में करने के लिए योगमार्ग अथवा ज्ञानमार्ग का अवलंबन लेना चाहिए। चित्त की वृत्तियों के निरोध को ‘योग' और ठीक प्रकार से आत्मा−अनात्मा को जानना ‘ज्ञान’ कहलाता है।