कुलं पवित्नं जननी कृतार्था वसुन्धरा पुण्यवती च तेन।
अपारसंवित्सुखसागरेऽस्मिल्लीनंपरे ब्रह्मणि यस्य चेतः॥
–स्कन्द. माहेश्वर. कौमार. 55।140
उस व्यक्ति का कुल पवित्र हो गया, उसकी जननी कृतार्थ हो गई और उससे यह पृथ्वी पुण्यवती हो गई, जिस व्यक्ति का मन ‘अपारचिदानंद सिंधु परब्रह्म’ में लीन हो गया। अर्थात् परम आनंद के स्रोत परमात्मा से जुड़ा गया-उनके लोक-कल्याणकारी कार्यों में हाथ बँटाने लगा।