आत्मिकी को भौतिकी के समतुल्य एवं उससे भी अधिक उपयोगी सिद्ध करने के लिए, जन−जन को उसे अपनाने पर सहमत करने के लिए प्रथम आवश्यकता इस बात की है कि इस महाविज्ञान के प्रचलित स्वरुप को संशोधन एवं प्रमाणिक स्तर का प्रतिपादन करने के लिए आधारभूत ढाँचा खड़ा किया जाता। ऐसा ढाँचा जो तत्त्वदर्शी, महामनीषियों के चिरकालीन अनुभव की साक्षी भी साथ लिए हो और साथ ही तर्क, प्रमाण एवं प्रत्यक्ष की हर कसौटी पर पूर्ण रूप से खरा सिद्ध होता हो।