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February 1982

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चित्तोन्मेषनिमेषाभ्यां संसारस्योदयक्षयो।

वासनाप्राणसंरोधादनिमेषं मनः कुरु॥

चित्त (मन) के उदय और अस्त से संसार का उदय और अस्त होता है। अतः वासना और प्राण का निरोध करके ‘मन’ का निरोध करें।


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