चित्तोन्मेषनिमेषाभ्यां संसारस्योदयक्षयो।
वासनाप्राणसंरोधादनिमेषं मनः कुरु॥
चित्त (मन) के उदय और अस्त से संसार का उदय और अस्त होता है। अतः वासना और प्राण का निरोध करके ‘मन’ का निरोध करें।