किसी को कष्ट पहुँचाने से, किसी को उत्पीड़ित करने से विद्वेष के भाव उत्पन्न होते हैं। उत्पीड़ित के मन में प्रतिशोध की भावना जन्मती है और वह अपने से ताकतवर प्रतिपक्षी को अवसर पाकर नीचे पटकने, किये गये उत्पीड़न का बदला लेने के लिए प्रयत्न करता है। जीते जी तो विद्वेष का खतरा बना ही रहता है कि जिसका उत्पीड़न किया गया है वह कब उलट कर वार कर दे? किन्तु मरने के बाद भी इस प्रतिक्रिया की संभावना बनी रहती है। ऐसे कई उदाहरण देखे गए हैं जिनमें किन्हीं व्यक्तियों ने किन्हीं लोगों की हत्या कर दी और निश्चित हो गए कि अब उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। परन्तु कुछ ही समय बाद देखने में आया कि जिन्हें मरा हुआ समझ लिया गया था, वे वास्तव में मरे नहीं हैं बल्कि उनकी आत्मा प्रतिशोध लेने के लिए भटक रही है और उन्होंने अपने उत्पीड़नकर्ता से बदला चुका ही लिया।
रूस की साम्यवादी क्राँति के समय एक जागीरदार परिवार की मृत्यु उन्हीं व्यक्तियों के प्रेतों द्वारा हुई, जिन्हें उसने तड़पा-तड़पा कर मारा था। क्रान्ति के बाद काउण्ट इवान ‘सेण्टपीटर्स’ वर्ग से अपनी पत्नी अन्ना और दो बच्चों के साथ घर छोड़ कर भाग गया। पाँच व्यक्तियों की इस टोली इवान का विश्वस्त और वफादार नौकर भी था। जारशाधे के जमाने में इवान के अत्याचारों की कहानी सारे करेलिया प्रदेश में फैली हुई थी। कुछ समय तो ये लोग नोवगोरोद के प्राचीन नगर में छिप रहे और फिर नेवा नदी के तटीय वन प्रदेश में अपने रहने का स्थान तलाशते रहे।
घूमते-घूमते उन्होंने एक पुरानी झोंपड़ी में शरण ली। बूढ़ा मल्लाह आसपास कहीं कुछ खाने-पीने का समान तलाश करने के लिए निकल गया। रात हो गई। पति-पत्नी अपने बच्चों के साथ रात्रि विश्राम के लिए लेट गए। रोशनी के लिए उन्होंने कंदीलें जला ली थीं। तभी हवा का एक झोंका आया और कंदीलें बुझ गईं। दुबारा कंदील जलाई तो उन्होंने देखा कि आठ इस लोमड़ियां उन्हें घेरे खड़ी हैं। घेरा बनाकर उन्होंने इवान और अन्ना के चारों ओर कई चक्कर लगाये तथा अचानक लुप्त हो गईं। इससे दोनों घबरा गए। वातावरण इतना भयावह था कि दोनों की घिग्घी बंध गई।
जब बूढ़ा मल्लाह झोंपड़ी में वापस आया तो उसने अपने मालिक और मालकिन को अचेत पाया। वातावरण में घुली हुई भयानकता उसे भी व्याप रही थी। मल्लाह ने कंदील जलाकर देखा तो रेन्डियर की खाल ओढ़े एक विकराल साया कमरे में डोलता हुआ दिखाई दिया। बूढ़ा मल्लाह भयभीत होकर प्रार्थना करने लगा। वह समझ गया था कि इस झोंपड़ी में भूतों का डेरा है। तभी उस साये ने गरजदार आवाज में कहा, ‘‘प्रिय मल्लाह! तुम्हें डरने की आवश्यकता नहीं है। लेकिन इवान और अन्ना के पापों का घड़ा भर गया है। इनने हजारों निरपराध निरीह व्यक्तियों को जान से मारा है, बच्चों और औरतों को सताया है। और उसकी पत्नी, यह अन्ना.... यह तो जिन्दा चुड़ैल है। इसने अपने कई प्रेमियों, यहाँ तक कि अपने बाप और भाई को भी इवान के सिपाहियों से मरवाया है, कारण कुछ नहीं, केवल इसलिए कि यह अपने कुकृत्यों पर परदा डाले रही और स्वयं बेखटके ऐश करती रही।’’
अन्ना जागीरदार इवान की चौथी पत्नी थी। वह करेलिया में स्थित किजी के एक गिरजाघर में पली थी। काउण्ट इवान एक बार उस चर्च में प्रार्थना के लिए गया था। वहाँ से लौटते समय उसकी दृष्टि अन्ना पर पड़ गई और अपने प्रभाव तथा पैसे के बल पर उसे अपने महल में ले आया था। इवान के महल में विलासी जीवन जीते हुए उसे बुरी आदतें पड़ गई थीं। कई नवयुवकों को उसने अपने प्रेम पाश में फंसाया और अपनी भोग तृष्णा पूरी करने के बाद उनकी हत्या करा दी।
बूढ़े नौकर ने अपने मालिक और अन्ना के होश में आने की प्रतीक्षा की। रात के तीसरे प्रहर में उसकी आँखों के सामने लाल प्रकाश का गोला जगमगाने लगा। उस लाल गोले के चकाचौंध कर देने वाले प्रकाश में उसने देखा कि रेन्डियर की कई कच्ची खालें जमीन पर बिखरी हुई हिल रही थीं। कभी उनमें से घोड़ों की हिनहिनाहट सुनाई देती तो कभी भालुओं की गुर्राहट और फिर कभी लोमड़ियों की दर्दनाक चीखें। तभी झोंपड़ी के एक ओर की दीवार हहराकर गिर पड़ी। इससे जो शोर हुआ उसने इवान और अन्ना दोनों को जगा दिया, दोनों घबरा कर उठ बैठे। उन्होंने देखा कि उनके आसपास रेन्डियर की खालें बिखरी पड़ी हैं। जैसे ही उनकी दृष्टि इन बिखरी खालों पर पड़ी, वैसे ही उनमें से खिल-खिलाने की आवाज आई इवान और अन्ना घबराकर एक-दूसरे से चिपट गए। तभी गिरी हुई दीवार के पत्थरों पर से सूमरधारी सील मछलियों की सी आकृतियाँ कूदीं।
अब इन लोगों के पास भागने के अलावा कोई उपाय नहीं था। सबने जल्दी-जल्दी सामान बटोरा और नेवा नदी के किनारे पहुंचे। वहाँ उन्होंने तट पर बंधी नौकाएं खोलीं और उनमें सवार हो गए। वे नदी पार कर ही रहे थे कि अचानक न जाने कहाँ से लाल रंग की लोमड़ियां प्रकट हुईं और व अन्ना के ऊपर झपटीं तथा वह डर के मारे नदी में कूद गईं जहाँ सूमरधारी सील मछलियों ने देखते ही देखते उसे अपना ग्रास बना लिया।
अपनी प्रिय पत्नी का यह करुण अंत देखकर इवान विक्षिप्त सा हो उठा। नाव कुछ ही आगे बढ़ी होगी कि उसके साथ भी वही घटना घटी। अलबत्ता इन खालधारी प्रेतात्माओं ने बूढ़े मल्लाह का कुछ नहीं बिगाड़ा। उनके बच्चों को भी कोई परेशानी नहीं हुई। उन्हें बूढ़े मल्लाह ने ही पाल पोस कर बड़ा किया तथा पढ़ाया लिखाया।
ऐसे उदाहरण भी मिलते हैं, जिनमें ‘मृतात्माओं ने, जिनकी मृत्यु स्वाभाविक समझी गई थी या जिनकी हत्या का सुराग नहीं मिल सका था। अपने कातिलों को पकड़वाया। साउथ वेल्स में एक धनी किसान जेम्स फिशर ने अपने मित्र के बेटे जार्ज वारेल को अपना उत्तराधिकारी बनाया। जार्ज वारेल ऐयाशी और विलासी प्रकृति का आदमी था। जल्दी ही सम्पत्ति हथिया लेने की इच्छा से उसने फिशर को अधिक शराब पिलाकर उसकी हत्या कर डाली। हत्या इतनी सफाई से की गई थी कि उसके पीछे हत्या का कोई सूत्र नहीं छूटा था। यहाँ तक कि उसकी लाश का भी पता नहीं चला था।
जून 1826 की घटना है। जेम्स पार्ले नामक एक किसान जो फिशर के मकान के पास ही रहता था, एक दिन उनके मकान के सामने से गुजर रहा था। उसने फिशर का भूत देखा जो उसी के मकान से एक कमरे की ओर इंगित कर रहा था। उस समय तो पार्ले डर कर भाग गया किन्तु यह आकृति बार-बार दिखाई दी। दूसरे दिन जब वह दुबारा उधर से गुजर रहा था तो पुनः वही आकृति दिखाई दी। उस दिन भी वह डर कर भाग गया। तीसरे दिन, चौथे दिन, पांचवें दिन कई दिनों तक यह क्रम जारी रहा। वह आकृति ऐसी कोई हरकत नहीं करती थी, जिससे उससे डराने का कोई इरादा व्यक्त होता हो। वह केवल एक कोठे की ओर इंगित करती थी। एक दिन जब पार्ले अपने मित्रों के साथ इस घटना की चर्चा कर रहा था तो उन्होंने इसकी सूचना पुलिस को देने की सलाह दी। पुलिस को सूचना दी गई और उस कोठे की खुदाई कराई गई, जिधर वह प्रेतात्मा इंगित करती थी। खुदाई में फिशर की वैसी ही विकृत लाश मिली जैसी की पार्ले को उसकी आकृति दिखाई देती थी। यही नहीं ऐसे सूत्र भी मिले जिनके आधार पर हत्या के सुराग मिलते थे और उन सूत्रों के अनुसार जार्ज वारेल हत्या का दोषी सिद्ध हुआ। वारेल ने अपना अपराध स्वीकार किया और उसे इस हत्या के अपराध में फाँसी की सजा भी मिली।
इसी तरह की एक घटना एडिनवरा की है। वहाँ के एक मोहल्ले में एक मकान भुतहा मकान के नाम से प्रसिद्ध था। जो भी कोई व्यक्ति उस मकान में आकर ठहरता उसे एक महिला का प्रेत दिखाई पड़ता था और वह व्यक्ति या परिवार उससे डरकर या घबरा कर भाग खड़ा होता था। हालांकि उस महिला का प्रेत किसी को तंग नहीं करता था, पर प्रेत सो प्रेत उसका भय लोगों के दिमाग पर छाते ही हर कोई अपना रास्ता नापता था।
एक बार इस मकान में इंस्पेक्टर डिक्सन किराये पर आए। एक रात वे अखबार पढ़कर सोने जा ही रहे थे कि हवा का एक सर्द झोंका इतनी तेजी से कमरे में आया कि खिड़की के दरवाजे तथा पर्दे जमीन पर गिर पड़े, और फायर प्लेस में जलती हुई आग अपने आप बुझ गई। उन्होंने उठकर पुनः दरवाजा बंद किया तथा विस्तर की ओर बढ़े तभी द्वार पर दस्तक हुई। दरवाजा खोला तो सामने एक तीखे नाक नक्शे वाली युवती खड़ी हुई थी। प्रश्नवाचक दृष्टि से डिक्सन ने उसे देखा तो युवती बोली, ‘क्या मैं अंदर आ सकती हूँ असमंजस की स्थिति में पड़े डिक्सन ने उसे अंदर आने दिया।’
वह युवती वास्तव में उस मकान में पहले रहने वाली एक लड़की का प्रेत थी, जिसकी हत्या कर दी गई थी। नाम था उसका मिसजूरी, ‘उस ने बताया, दरअसल आप पुलिस इंस्पेक्टर हैं, इसलिए मुझे पूरा विश्वास है कि आप मेरी सहायता करेंगे। जिस बंगले में आप रह रहे हैं, पन्द्रह वर्ष पहले यह बंगला मेरा ही बंगला था। यहाँ मैं अपने बूढ़े पिता के साथ रह रही थी। माँ तो बचपन में ही मुझे संसार में अकेला छोड़ कर जा चुकी थी, यहाँ मैं अपने बूढ़े पिता के साथ रहती थी। मेरे पिता ने ही मुझे पाला-पोसा, बड़ा किया और पढ़ाया लिखाया। बड़े होने के कुछ दिन बाद ही मेरे पिता की मृत्यु हो गई। मैं बिलकुल असहाय हो गई। गुजारे का प्रबंध करने के लिए मैंने इस बंगले को किराये पर उठाया। पहला किरायेदार बाप जैसा ही पुलिस अफसर था। उससे मेरी घनिष्ठता बड़ी कि हम दोनों शादी करने के लिए राजी हो गए और हम दोनों में पति-पत्नी के संबंध स्थापित हो गए। मैंने अपनी सारी जिम्मेदारियाँ उस अफसर पर छोड़ दीं। कुछ दिनों बाद जब मैं गर्भवती हो गई और मैंने उससे अपनी स्थिति स्पष्ट कर कानून की निगाह में पति-पत्नी बन जाने के लिए कहा तो वह इंकार कर गया। दबाव देने पर उसने मेरी हत्या करा दी।
इतना कह कर जूरी की प्रेतात्मा चुप हो गई। कुछ देर बाद वह बोली आप उस अपराधी को गिरफ्तार कर सजा दिलवाई। जानती हूँ कि आप प्रमाण कहाँ से जुटायेंगे? इसी असमंजस में हो। मैं सारे प्रमाण उपलब्ध करा दूँगी। जब तक अपराधी को सजा नहीं मिल जाती, तब तक मेरी आत्मा इसी प्रकार भटकती रहेगी और इस बंगले में आने वाले किसी व्यक्ति को चैन से नहीं रहने देगी। आप अच्छी तरह विचार कर निश्चय कीजिए। मैं कल इसी समय आऊंगी।
इसके बाद उस युवती का रूप एकदम से बदला। उसका चेहरा पूरी तरह विकृत हो गया। अब वहाँ कोई भी सुँदर युवती नहीं थी, बल्कि थी एक चुड़ैल जैसी आकृति जो ऊपर से नीचे तक एक सफेद लबादा ओढ़े थी और जिसमें से केवल आँख की जगह गड्ढे से दिखाई दे रहे थे। कुछ देर बाद वह आकृति विलुप्त हो गई।
दूसरे दिन पुनः जब जूरी की आत्मा आई तो डिक्सन ने 15 वर्ष पहले हुए इस हत्याकांड का पता लगाने का निश्चय कर लिया था। जूरी की आत्मा ने उसका इस प्रकार मार्गदर्शन किया, जिस प्रकार कोई प्रत्यक्षदर्शी व्यक्ति कर रहा हो। जूरी की लाश के अवशेष बरामद किये गए। उसके हत्यारे प्रेमी को तलाश किया गया, उसे गिरफ्तार किया गया और उसे सजा मिली। इसके बाद जूरी की आत्मा ने इंस्पेक्टर डिक्सन को धन्यवाद ज्ञापन करते हुए, उसे अनेकों उपहार दिए।
इस तरह की सैकड़ों घटनाएं मिलती हैं, जिनमें कुकर्मी निर्बलों को सताते हुए यह सोचते हैं कि यह हमारा क्या बिगाड़ लेंगे? परन्तु प्रतिशोध की भावना इतनी उग्र होती है जो मरने के बाद भी सूक्ष्म शरीर द्वारा अपना बदला चुका कर ही रहती है। यदि ऐसा नहीं होता है तो प्रकृति उसे कोई न कोई दण्ड देती ही है।