चुम्बकत्व की सामर्थ्य और उसका उच्चस्तरीय उपयोग

March 1981

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ऊर्जा की अन्यान्य शक्तिधाराओं में चुम्बक का अपना स्थान है। उसके द्वारा पदार्थ और प्राणी किस प्रकार प्रभावित होते हैं, इसकी जानकारी मनुष्य की ज्ञान सम्पदा में अभी इतना स्थान प्राप्त नहीं कर सकी है, जितना कि उसे करना चाहिए था। साधारणतया लौह चुम्बक का खेल साँप न्यौले की लड़ाई की तरह एक कौतुक-कौतूहल के रूप में देखा जाता है।

बहुत हुआ तो याँत्रिक तकनीकी में उसका जब-तब जहाँ-तहाँ उपयोग होता है। ग्रह-नक्षत्र परस्पर चुम्बकत्व से बंध हैं। मनुष्य शरीर में स्नायुसंस्थान में बहने वाले विद्युत प्रवाह में चुम्बकत्व की मात्रा रहती है। इतना तो बहुत हल्की-फुल्की जानकारी की तरह माना जाता रहा है। फिर भी इस ओर कम ही ध्यान गया है कि भौतिक एवं प्राणि स्तर के चुम्बकत्व का अधिक महत्वपूर्ण प्रयोजनों के लिए किस प्रकार कितनी मात्रा में उपयोग सम्भव हो सकता है।

नवीनतम शोध निष्कर्षों ने यह प्रकाश दिया है कि शारीरिक ही नहीं मानसिक रोगों की निवृत्ति में भी चुम्बक उपचार का सफल उपयोग हो सकता है। स्वस्थता सम्वर्धन एवं रुग्णता निराकरण के अन्य उपचार जितना काम करते हैं, उससे कहीं अधिक उपयोग चुम्बकत्व का हो सकता है। इसके अतिरिक्त अन्य प्राणियों को तथा वनस्पतियों को भी उससे प्रभावित तथा लाभान्वित करने का भी उद्देश्य पूरा किया जा सकता है।

एक बार कुछ गड़रिये चट्टान पर बैठकर भोजन कर रहे थे। जब वे चलने लगे तो देखा उनकी लाठियाँ चट्टान से चिपक गई थीं। घबराहट के कारण उनके मुँह से चीख निकल गई। ‘भूत-भूत’ कहकर वे भागे। झाड़फूंक करने वाला ओझा आया। बाद में एक सयाने ने अक्ल लगायी और पता चला कि चट्टान में चुम्बक है और उसने लाठियों में लगे लोहे को चिपका रखा है।

चुम्बक के बारे में जबसे इसकी खोज हुई है- कई कहानियाँ प्रचलित हैं। जैवचुम्बकत्व से संबंधित खोजें काफी दिलचस्प परिणाम हमारे समक्ष रख चुकी हैं। उनमें एक और अध्याय जुड़ता है- चुम्बकीय चिकित्सा या मैग्नेटथेरेपी के रूप में।

किसी व्यक्ति को देखकर अपनापन-सा महसूस होना, उसकी ओर आकर्षित हो जाना एवं किसी की सूरत देखते ही डर या घृणा का अनुभव होना मनोवैज्ञानिकों व जैव वैज्ञानिकों के लिये उलझन का विषय रहा है। रूसी वैज्ञानिकों ने जैव-चुम्बकत्व से संबंधित कुछ दिलचस्प निष्कर्ष अभी पिछले दिनों प्रकाशित किये हैं, जिनसे इस विषय पर प्रकाश पड़ता हैं।

प्रोफेसर वी.वी.येफिमोव का कहना है कि इस सारी क्रिया का कारण जीवजगत में, जिसमें वनस्पतियाँ भी शामिल हैं एक प्रकार के चुम्बकत्व का होना है। उनके अनुसार पक्षियों का एक पंक्ति या फिर अलग-अलग प्रकार से उड़ना। उत्तर की तरफ बोये जाने वाले बीजों में अन्य दिशाओं की अपेक्षा कम समय में अंकुर फूटना आदि पृथ्वी तथा जीव वनस्पतियों के चुम्बकीय तत्वों के कारण हैं।

वैज्ञानिक इस बात को मानने लगे हैं कि भू-चुम्बकीय क्षेत्र जीव कोशिका की जैव रासायनिक प्रतिक्रियाओं व जैव तरंगों में परिवर्तन कर देता है तथा अनेक पशुओं के स्नायविक तंत्र को प्रभावित कर देता है।

माइकेल फैराडे ने वर्षों पहले कहा था कि सभी पदार्थों में चुम्बकीयता की क्षमता हो सकती है। लेकिन इसकी अभिव्यक्ति अलग-अलग पदार्थों में भिन्न-भिन्न प्रकार से होती है। लेकिन अभी हाल ही तक चुम्बक की जीव-जगत में उपस्थिति को किसी ने स्वीकार नहीं किया था। डच वैज्ञानिक मैग्नस ने कुत्ते पर परीक्षण कर यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया है कि अनुमस्तिष्क के आसपास कुछ ऐसी कोशिकायें अवश्य हैं, जिनसे चुम्बक नियंत्रण होता है। कुत्ते के अनुमस्तिष्क को निकालने के बाद यह देखा गया कि जब उसके शरीर पर उंगली रखी गयी तब अंगुली को कुत्ते के शरीर से उठाने में कठिनाई हुई।

यदि यह बात सही है कि शरीर और वनस्पतियों में कोई न कोई चुम्बकीय तत्व अवश्य होता है तो आगे चल कर मनुष्य के जीवन में बहुत से क्रान्तिकारी परिवर्तन होंगे, जिनमें से एक चुम्बक की सहायता से मनन तथा चिन्तन को प्रभावित करना भी होगा। चुम्बक से चिकित्सा की बातें अभी तक विज्ञान की कसौटी पर कसी नहीं गई हैं, लेकिन इस दिशा में वैज्ञानिक प्रयत्नशील हैं। विज्ञान सतत् रूप से यह सिद्ध करने की दिशा में अग्रसर हो रहा है कि चुम्बक जीवन में भलाई के लिये परिवर्तन करेगा।

वैज्ञानिकों का कहना है कि शरीर के किसी भी अंग में दर्द, जोड़ों की जकड़न, दाँत के दर्द, विशेष कर आधा सीसी के दर्द को चुम्बक की सहायता से ठीक किया जा सकता है। काफी हद तक यह मोटापा दूर करने की मदद कर सकता है। इन दिनों अमेरिका, रूस, जापान, कनाडा, भारत आदि अनेक देशों में चुम्बकीय चिकित्सा तेजी से लोकप्रिय होती जा रही है।

आज विज्ञान का पुट मिल जाने की वजह से यह पद्धति नई भले ही लगती हो, लेकिन ऐसे प्रामाणिक उद्धरण वेदों में भी मिलते हैं कि लोगों को इस चिकित्सा पद्धति की जानकारी थी। अथर्ववेद में रेत द्वारा रक्तस्राव रोकने एवं पत्थर द्वारा स्त्री रोगों के उपचार का वर्णन आता है। चुम्बक में भी रेत, बेरियम और आयरन आक्साइड होता है। यही तीनों मिलकर चुम्बक में मानव शरीर की चिकित्सा के गुण उत्पन्न करते हैं। मिस्र की सुँदरी क्लियोपेट्रा के बारे में प्रसिद्ध है कि वह अपनी सुंदरता बनाये रखने के लिए माथे पर छोटा चुम्बक लगाये रखती थी।

सोलहवीं शताब्दी में भी स्विस चिकित्सक फिलिपस पेरासेल्सस ने चुम्बक की महत्ता की ओर संकेत किया था। उसका कहना था कि चुम्बक मानव शरीर के बाहरी एवं भीतरी दोनों तरह के रोगों का उपचार करने में सक्षम है। इस सिद्धान्त को मेस्सर ने बहुत प्रचारित किया। स्विट्जरलैंड के डा. फैंस ऐंटन मेस्सर ने भीषण सरदर्द से परेशान एक महिला फ्रेंज ऑस्टरलीन का चुम्बक से इलाज कर एक आश्चर्यजनक उदाहरण प्रस्तुत किया। बाद में डा. मेस्सर ने इसी चुम्बकीय प्रभाव के सिद्धान्त पर उंगलियों से वैसा ही प्रभाव उत्पन्न करने की क्रिया आरम्भ की जो मैस्मरेज्म के नाम से विख्यात हुई। उन्हीं के समकालीन डा. सेम्युएल हैनीमेन ने भी चुम्बक के प्रभावों को स्वीकार कर इस चिकित्सा विधि की महत्ता प्रतिपादित की।

माइकल फैराडे द्वारा बताये गये जैविक चुम्बक के सिद्धान्त पर विश्व के अनेक देशों के वैज्ञानिकों ने अनुसंधान किये व तदनंतर वर्तमान आधुनिक चुम्बक चिकित्सा पद्धति का आरम्भ हुआ।

चुम्बक की तंरगों का मानव शरीर पर प्रभाव पड़ता है। यदि किसी शक्तिशाली पर हथेली पर रखें और फिर हाथ पर आलपिन रखें तो चुम्बकीय प्रभाव की वजह से वह खड़ी रहेगी। विज्ञान यह भी सिद्ध कर चुका है कि पृथ्वी एक विशाल चुम्बक है। इसी तरह सूर्य, चन्द्रमा आदि ग्रह भी अपने चुम्बकीय गुणों द्वारा मानव शरीर को प्रभावित करते हैं। पृथ्वी के दो ध्रुव चुम्बक के उत्तरी व दक्षिणी ध्रुव हैं। मानव शरीर को यदि उत्तर की ओर सिर और दक्षिण की और पैर करके लिटा दिया जाये तो उसका सिर और पैर उत्तर-दक्षिण ध्रुव माने जा सकते हैं। उसके शरीर में उत्तर तथा दक्षिण ध्रुवों के चुम्बकीय प्रभावों का संतुलन कायम हो जाता है। स्वस्थ शरीर में लगातार चुम्बकीय संतुलन होने से शरीर के विभिन्न रोग हो सकते हैं इसलिये शास्त्रीय मान्यता यही है कि लगातार इस स्थिति में कभी नहीं सोना चाहिये।

सामान्यतः शरीर को जैवचुम्बकत्व विज्ञान के अनुसार दो भागों में बाँटा जा सकता है। कमर से ऊपर का भाग उत्तर ध्रुव का क्षेत्र तथा नीचे का दक्षिण ध्रुव का क्षेत्र और लम्बवत स्थिति में दांया भाग उत्तर ध्रुव का क्षेत्र तथा बांया भाग दक्षिण ध्रुव का क्षेत्र माना जाता है। आज विश्व के सभी वैज्ञानिक इस बात से सहमत हो गये हैं कि मानव शरीर पर चुम्बक का बहुत तीव्र प्रभाव पड़ता है और इसके सही उपयोगों द्वारा अनेक रोगों का उपचार किया जा सकता है।

मानव शरीर में रक्त अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। रक्त में होने वाले परिवर्तन ही हमें रोगी या निरोगी बनाते हैं। हमारे शरीर पर जब चुम्बक तरंगों का प्रभाव पड़ता है तो इससे रक्तवाहिनी नलियों से हल्की-सी विद्युत तरंग उत्पन्न होती है। इससे रक्त प्रवाह तेज होता है, आयन की मात्रा उसमें बढ़ जाती है, और यह आयनयुक्त रक्त पूरे शरीर में अपना प्रवाह ले जाता है। इससे लाल रक्तकणों की संख्या काफी बढ़ी जाती है और सफेद रक्तकणों के साथ संतुलन बिगड़े बिना रक्त प्रवाह की प्रक्रिया अच्छी हो जाती है।

बायोमैग्नेटिक थेरेपी के अनुसार शरीर की सभी कोशिकाओं में जैविक विद्युत प्रवाहित होती है। पोटेशियम और सोडियम आयन सभी कोशिकाओं में धनात्मक और ऋणात्मक आयन में पृथक हो जाते हैं। चुम्बक का प्रभाव इन दोनों आयनों का संतुलन बैठाना है। चुम्बक का उत्तर ध्रुव चोट से होने वाले रक्तस्राव को कम करता है। जले हुए भाग पर जलन कम करना व अति अम्लता को रोकना भी उत्तर ध्रुव का काम है।

कैल्शियम की अधिकता को कम करने में, रक्त-धमनियों में जमे कोलेस्टेरॉल की पर्तों को कम करने में एवं नाडियों एवं पुठ्ठों के दर्द को कम करने में यह सहायक होता है तथा सूजन आदि कम कर देता है।

चिकित्सा प्रयोजन के लिए, पदार्थों की चुंबक शक्ति का उपयोग किस तरह हो सकता है? इन संदर्भ में शोध कार्य का जो सिलसिला इन दिनों चला है, उसमें सफलता मिलती जायेगी, उतना ही दुर्बलता और रुग्णता से छुटकारा पाने का एक सस्ता एवं प्रभावी सूत्र मनुष्य को हस्तगत हो जायेगा।

उच्चस्तरीय वर्ग के जीवन्त चुम्बकत्व मनुष्य के अपने शरीर में विद्यमान हैं और उसे प्रयत्नपूर्वक अधिक समर्थ बनाया जा सकता है। तत्त्वदर्शी इस प्रवाह को ‘प्राण’ करते रहे हैं और उसकी न्यूनाधिकता को मनुष्य की आन्तरिक समर्थता का आधार बताते रहे हैं। साहस और संकल्प के, पराक्रम और पुरुषार्थ के रूप में उसी के द्वारा कई प्रकार की असाधारण उपलब्धियाँ हस्तगत होती हैं। सौंदर्य एवं प्रतिभा का आकर्षण इसी क्षमता पर निर्भर है। ओजस्वी, मनस्वी, तेजस्वी कहे जाने वाले व्यक्ति वस्तुतः प्राणवान ही होते हैं, उनकी प्राण प्रखरता ही अनेकों विशिष्टताओं एवं विभूतियों के रूप में परिलक्षित होती है।

प्राण संवर्धन के लिए प्राणायाम जैसे व्यायाम उपचार एवं अनुष्ठान, तप-साधना जैसे अध्यात्म योगाभ्यासों का अवलम्बन किया जाता रहा है, पर उसे उतना महत्व नहीं मिला, जितना मिलना चाहिए था। व्यक्तित्व में प्राण ऊर्जा का चुम्बकत्व इतनी मात्रा में भरा जा सकता है जिसे मनुष्य अपने को हर दृष्टि से अधिक प्रभावशाली बना सके, अधिक पुरुषार्थ कर सके, एवं अधिक सहयोग संपादित कर सके, अधिक सफलता सम्पादित करने में समर्थ हो सके।

कुसंग और सत्संग का जो चमत्कारी परिणाम देखा जाता है, उसमें विचार विनियम, परामर्श, अनुकरण जैसे सामान्य कारण उतने प्रभावी नहीं होते जितना कि व्यक्ति विशेष का चुम्बकत्व। उसकी उत्कृष्टता, निकृष्टता का समीपवर्ती लोगों पर भले-बुरे अनुदान उड़ेल देना भी संभव होता है। चिकित्सा-प्रयोजनों में चुम्बकत्व की सामर्थ्य का उपयोग होने लगे तो यह अच्छी परम्परा चलेगी। इससे भी बड़ी बात इस संदर्भ में यह हो सकती है कि वैयक्तिक चुम्बकत्व का महत्व समझा जाय, प्राण साधना द्वारा उसे क्षमता को बढ़ाया जाय और ऐसे उच्चस्तरीय प्रयोजनों के लिए उसका उपयोग किया जाये जिससे न केवल रुग्णता का निवारण संभव हो वरन् उत्कृष्टता का समग्र संवर्धन भी इस माध्यम से संभव हो सके।


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