सच्चा राम भक्त (Kavita)

March 1981

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प्यार है यदि हमें राम के नाम से, राम के काम करते चलें रात दिन। जिस किसी से सहज प्यार होता जिसे, वह कहीं और अपना लगाता न मन॥1॥

नम मुँह से रटें, मन भटकता रहे, राम की भक्ति की वास्तविक विधि नहीं। ये जुबानी जमा खर्च करते वही, पास जिनके सहज भावना-निधि नहीं॥ राम के भक्त की बस परख है यही, राम के काम बिन चैन आता न क्षण। प्यार है यदि हमें राम के नाम से, राम के काम करते चलें रात दिन॥2॥

भक्त बजरंग को प्यार था वास्तविक, रात दिन राम के काम में जुट गये। पूँछ में लग गई आग तो क्या हुआ, इष्ट के काम में डट गये, डट गये॥ प्यार जिससे किया वीर बजरंग ने, बस उसी का किया कर्म से कीर्तन। प्यार है यदि हमें राम के नाम से, राम के काम करते चलें रात दिन॥3॥

पुण्य ही मानते थे जटायु जिसे, वे कि करते रहे बस उसी काम को। बिन कहे राम के काम में जुट गये, देख पाये नहीं थे अभी राम को॥ पाप से जूझते पंख भी कट गये, पर हटाये नहीं पुण्य पथ से चरण। प्यार है यदि हमें राम के नाम से, राम के काम करते चलें रात दिन॥4॥

वह जरा सी गिलहरी भरी भाव से, बिन कहे राम के काम पर डट गई। कर्म के कण उंडेला करी सिंधु में, भावना भव्य निर्माण में जुट गई॥ क्या पता नाम उसने जपा या नहीं, जा टिके किन्तु खुद राम जी के नयन। प्यार है यदि हमें राम के नाम से, राम के काम करने चलें रात दिन॥5॥

राम को तो जुबानी जमा खर्च से प्यार बिल्कुल नहीं, प्यार है कर्म से। इसलिये सिर्फ बातें बनायें न हम, हो विमुख राम के काम ‘युग धर्म’ से॥ स्वर्ग के इस धरा पर सृजन के लिये, देववत् हों हमारे सभी आचरण। प्यार है यदि हमें राम के नाम से, राम के काम करते चलें रात दिन॥6॥

*समाप्त*


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