सन् 1982 के बाद सर्वभक्षी भूकम्पों का सिलसिला

March 1981

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पश्चिमी देशों में इन दिनों विनाश की भावी संभावनाओं और विभीषिकाओं की सबसे अधिक चर्चा है। मानवकृत उत्पात, युद्ध, अशान्ति और उपद्रव तो अगले दिनों बढ़ने वाले हैं ही, विश्व के मूर्धन्य विचारक इन दिनों जीवन के हर क्षेत्र में नैतिक मूल्यों के ह्रास का दुष्परिणाम इस रूप में प्रस्तुत होने वाला बताते हैं। प्रकृति विज्ञानियों का भी कहना है कि इन दिनों प्रकृति बहुत विक्षुब्ध हो रही है। कारण जो भी हो परन्तु प्रकृति का विक्षोभ, प्रकोप बनकर अगले दिनों मानव ही नहीं प्राणी जगत् के अस्तित्व पर गंभीर चुनौतियों भरे संकट के रूप में टूटेगा।

अभी पृथ्वी सहित नौ ग्रहों के सूर्य की एक सीध में आने वाली सौर घटना की चर्चा गरम ही थी कि वैज्ञानिक ढंग से भविष्यवाणी करने वाले प्रसिद्ध भविष्यवक्ता एडिथ लिटिलटन ने 1982 में प्रकृति विक्षोभों के कारण संभावित विनाशलीला की भविष्यवाणी कर इस ‘जूपिटर इफेक्ट’ के परिणामों के और नये आधार पर तथा प्रमाण प्रदान किये हैं। उनके अनुसार 1982 के आस-पास भूकम्पों के अलावा बाढ़, चक्रवात, तूफान, बवंडर, अति दृष्टि जैसी अनेक प्राकृतिक विपदाएं इस रूप में टूटने वाली हैं कि प्रलय का-सा दृश्य उपस्थित हो जाएगा। लिटिलटन के अनुसार इस विनाश के बाद जो लोग बच सकेंगे वे एक नई सभ्यता के जन्मदाता होंगे और संसार में उसके बाद सुख, शान्ति तथा स्नेह सौहार्द का स्वर्गिक वातावरण विनिर्मित होगा।

प्रकृति अपनी गोदी में अनेक प्राणियों का अनेक तरह से पोषण करती है तो उनकी उच्छृंखलता से कुपित होकर उन्हें कई तरह से दण्डित भी करती है। अगले दिनों मनुष्य को उसकी उच्छृंखलता का जो दण्ड मिलने वाला है, उसमें सर्व प्रमुख है- भूकम्प। यों भूकम्प कोई नई बात नहीं है। वैज्ञानिकों के अनुसार पृथ्वी में प्रति वर्ष 14,00,000 कम्पन होते हैं। यों तो पृथ्वी हर क्षण काँपती रहती है। सोये हुए व्यक्ति का सीना जिस प्रकार साँस लेते समय उठता-बैठता है, लगभग उसी प्रकार का कंपन पृथ्वी पर भी होता रहता है। उसे पृथ्वी का साँस लेना कहा जा सकता है परन्तु ये 14 लाख कम्पन कमोबेश बहुत हल्के भूकम्प ही होते हैं, जिन्हें रिचर-स्केल से भी नहीं मापा जा सकता। रिचर-स्केल की पकड़ में आने वाले भूकम्पों की संख्या 6000 है जो 1 डिग्री से भी कम होते हैं। एक डिग्री रिचर स्केल की वह सबसे छोटी इकाई है जो भूकम्प मापती है। अर्थात् सिप्लोग्राफ नामक यंत्र द्वारा अनुभव किये जाने वाले ये भूकम्प नहीं कहे जा सकते। रिचर-स्केल की पकड़ में आने वाले डिग्री में मापे जा सकने योग्य भूकम्पों की संख्या 1000 है। इनसे थोड़ी बहुत हानि पहुँचती है।

इन एक हजार भूकम्पों में से भी 120 ऐसे होते हैं जिनसे कुछ ज्यादा क्षति पहुँचती है। 20 भूकम्प शहरी आबादियों को ध्वंस कर देते हैं। गत सितम्बर 80 मैं अनजीरिया के अल असनाम शहर में आया भूकम्प इस वर्ष का सबसे भयंकर भूकम्प था जिसमें हजारों व्यक्ति मारे गये और लाखों बेघर बार हो गये। इस प्रकार का भूकम्प प्रति दूसरे या तीसरे वर्ष आता है, जिससे महाविनाश होता हैं प्रायः यह भूकम्प समुद्री क्षेत्रों या पृथ्वी के ऐसे स्थानों पर अधिक आता है जहाँ बहुत कम जान-माल को क्षति पहुँचती है क्योंकि ऐसे स्थानों पर प्रायः मनुष्य नहीं रहते हैं।

पृथ्वी के निर्माण स अब तक करोड़ों भूकम्प आये हैं। अगले दिनों सूर्य के एक सीध में नौ ग्रहों के एक ओर इकट्ठे हो जाने की घटना, संभवतः अब तक के इतिहास में अपने ढंग की एकमात्र ऐसी घटना है, जो अन्य सौर घटनाओं के साथ घट रही है। यथापूर्ण सूर्य ग्रहण सौर कलंकों की अभिवृद्धि का चरम वर्ष, चन्द्र ग्रहण, धूमकेतु का उदय आदि आदि। इन सब घटनाओं का प्रभाव पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र को असामान्य रूप से प्रभावित करेगा। इसलिए ऐसे भूकम्पों के आने की संभावना व्यक्त की जा रही है, जो अब तक कभी नहीं आये होंगे।

आने वाले भूकम्पों की विध्वंसकता का अनुमान लगाने के लिए अब तक आए उन भूकम्पों का विवरण जान लेना उपयुक्त रहेगा, जिनने सर्वाधिक विनाश किया है और जहाँ वे आए हैं वहाँ प्रलय का-सा दृश्य उपस्थित किया है। प्राकृतिक विपदाओं में यदि सबसे अधिक विनाशकारी और सर्वाधिक हानि पहुँचाने वाली विपत्ति यदि कोई है तो वह भूकम्प ही है। किन्हीं भी प्राकृतिक विपत्तियों ने उतनी हानि नहीं पहुँचाई न उतना विनाश किया जितना कि भूकम्पों के कारण हुआ है। भूकम्प क्यों आते हैं? उनके रोकथाम का क्या उपाय है? आदि बातें जानने के लिए वर्षों से प्रयास किये जा रहे हैं परन्तु अभी तक भूकम्प के किसी एक निश्चित कारण का पता नहीं चला है। जब कारण का ही पता नहीं चला है तो उनकी रोकथाम का तो प्रश्न ही नहीं उठता। अधिक से अधिक इतना संभव है कि भूकम्प आने के कुछ क्षणों पहले पता चल जाए कि धरती काँपने वाली है। परन्तु वह पता इतने थोड़े से समय पहले चल पाता है कि बचाव के, जहाँ भूकम्प आने वाला है वहाँ से जान-माल हटा कर सुरक्षित स्थान पर पहुँचाने के लिए कोई समय नहीं मिल पाता। इस स्थिति में भूकम्प की संभावना का पता लग जाना और नहीं लगना बराबर ही है।

पृथ्वी पर कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जहाँ प्रायः भूकम्प आते रहते हैं। इनमें जापान द्वीप समूह, चीन, एण्डीज पर्वत-माला, पूर्वी अनातोलिया तथा अमेरिका का पश्चिमी तट प्रमुख है। वैसे भूकम्प को किसी सीमा विशेष में बाँध पाना संभव नहीं है। वह कभी भी और कहीं भी आ सकता है। फिर भी उक्त क्षेत्रों में भूकम्प की संभावना और स्थानों की अपेक्षा अधिक रहती है।

अगले दिनों (जूपिटर इफेक्ट नवग्रहों के प्रभाव) से आने वाले भूकम्प अब तक आए सभी भूकम्पों का रिकार्ड तोड़ देंगे। उनकी विभीषिका का अनुमान लगाने के लिए अब तक आये भूकम्पों की विभीषिका को आधार बनाया जा सकता है। एक अनुमान के अनुसार प्रति वर्ष 15000 व्यक्ति भूकम्पों के कारण मृत्यु का ग्रास बनते हैं। धन सम्पत्ति की होने वाली क्षति का अनुमान लगाना तो लगभग असंभव है। सन् 1960 में मोरक्को, ईरान तथा चिली में भूकम्पों के कारण 17000 लोग मर गये थे और करीब 5 अरब रुपयों की सम्पत्ति नष्ट हुई थी।

जुलाई 1976 में चीन के तंगशान इलाके में आया भूकम्प इस शताब्दी का सबसे भयंकर भूकम्प माना जाता है। उस भूकम्प में अकेले तंगशान नगर में 8 लाख व्यक्ति मारे गए थे जबकि इस नगर की जनसंख्या कुल 10 लाख है। जो लोग बच सके थे वे भी कोई पूरी तरह सुरक्षित नहीं थे। उनमें से भी अधिकाँश को शारीरिक क्षति पहुँची। किसी का हाथ टूट गया, किसी का पैर टूट गया। किसी की आंखें फूट गईं तो कोई इमारतों के ढह जाने से गिरने वाले मलवे की चोट के कारण अपना चेहरा ही विकृत कर बैठा। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार भूकम्प आने के पूर्व इस क्षेत्र के ऊपर आकाश में एक तेज चौंधिया देने वाला प्रकाश फैल गया था। इस प्रकाश को 200 मील दूर रहने वाले उन लोगों ने भी देखा, जहाँ भूकम्प नहीं आया था। कुछ सेकेंडों तक थरथरा उठी धरती के कारण होने वाला धमाका इतना जोर का था कि कई एकड़ क्षेत्र में लगी हुई फसल अपनी सतह के साथ उखड़ कर इस प्रकार दूर जा गिरी जैसे किसी ने दूध पर से मलाई उतार कर दूसरे बरतन में बिछा दी हो। तंगशान नगर इस भूकम्प का केन्द्र था और वहाँ के नगर के बीचों बीच की जमीन फट गई तथा बहुत चौड़ी और मीलों लम्बी दरार बन गई। इस दरार में लाखों मनुष्य, मकान, इमारतें, सड़कें और सड़कों पर चलते हुए लोग समा गये। भूकम्प के धक्के से राह चलते, बैठे और सोये, लेटे हुए लोग भी कई फुट ऊंचे उड़ गये। इस स्थिति में पेड़ों का उखड़ कर दूर जा गिरना तो स्वाभाविक था। रेल की पटरियाँ और जमीन के भीतर लगाये गये पाइप भी इस प्रकार मुड़-तुड़ गए जैसे किसी ने धागे को गुड़ी-मुड़ी करके लपेट दिया हो।

सितम्बर 1923 में जापान के तोकियो याकोहाया क्षेत्र में भी ऐसा विनाशकारी भूकम्प आया था कि पूरे क्षेत्र की जमीन एक दिशा में इस प्रकार झुक गई जैसे किसी ने तराश दिया हो। इस भूकम्प में 5 लाख मकान गिर गए थे और करीब 12 लाख व्यक्ति मारे गए थे। निकटवर्ती संगामी खाड़ी में 36 फुट चौड़ी दरार उत्पन्न हो गई तथा आबादी वाले क्षेत्रों में ऐसी भयंकर आग लगी कि उस क्षेत्र में तीन दिन तक मकान, इमारतें और वृक्ष, वनस्पति धू-धू करके जलते रहे, इसके तीन वर्ष पहले चीन और तिब्बत की सीमा पर स्थित कन्सू क्षेत्र में भी ऐसा ही भूकम्प आया था, जिसमें कुछ ही सेकेंडों के भीतर लगभग 2 लाख व्यक्ति मारे गए। इसी क्षेत्र में दिसम्बर 1932 में आए भूकम्प की विनाशलीला देखने वाले कई लोग तो अभी भी जीवित हैं जिसमें करीब 70,000 व्यक्ति मारे गए थे।

सन् 1908 में इटली के मोसीना नगर में आए भूकम्प से करीब 1 लाख व्यक्ति तो मरे ही, पूरा का पूरा शहर इस तरह बर्बाद हो गया कि अब उसका कहीं भी नाम-निशान नहीं है। इस भूकम्प के झटके इटली के कुछ अन्य नगरों में भी महसूस किए गए थे और उन क्षेत्रों में भी करीब 50 हजार लोग मर गए थे। दक्षिण अमेरिका के पेरू क्षेत्र में तो मई 1970 में भूकम्प के साथ-साथ भारी वर्षा भी हुई। बर्फ की चट्टानें पर्वत शिखरों से टूट-टूट कर इमारतों और लोगों को पीसती हुई आगे निकल गईं। इसी तरह का एक विचित्र भूकम्प जून 1692 में जमैका के समुद्र तटीय इलाकों में आया था। उस समय समुद्र की लहरें उफनते हुए पानी की तरह बढ़ी और शहर के भीतर तक घुस आईं। पोर्टरायल बंदरगाह पर मरम्मत के लिए खड़ा एक जहाज पानी के इस तेज बहाव में बहता हुआ नगर के भीतर तक चला गया और मकानों, इमारतों सहित सैकड़ों लोगों को पीसता हुआ नगर के दूसरे छोर पर जा टिका, जन-धन की इस क्षति के साथ वहाँ की भौगोलिक संरचना में भी कुछ ऐसा परिवर्तन हुआ कि शहर का दो तिहाई हिस्सा सागर बन गया। वहाँ की जमीन पर समुद्र की लहरें कई फीट ऊंचाई तक लहराने लगीं। दो-ढाई सौ वर्ष बाद तक उस नगर की इमारतों का ऊपरी भाग समुद्री क्षेत्र में पानी की सतह के ऊपर दिखाई देता रहा यह विनाश कुछ ही मिनटों में हो गया।

ऐसा ही एक भूकम्प सन् 1755 में पुर्तगाल के लिस्वन क्षेत्र में आया जिसके पहले ही झटके में शहर के 85 प्रतिशत मकान धराशाई हो गए तथा हजारों लोग मारे गए। चालीस मिनट बाद भूकम्प का दूसरा झटका आया और उसने बाकी के मकानों को भी ध्वस्त कर दिया। मकानों और इमारतों के मलवे में आग लग गई। यह आग किन्हीं मानवी प्रयत्नों से नहीं बुझी बल्कि उस समय बुझी जब तीसरे झटके के साथ ही समुद्र की लहरें 16 से 20 फीट की ऊंचाई पर लहराती हुईं नगर में घुस पड़ीं। इस भूकम्प के कारण 13 लाख वर्ग मील क्षेत्र प्रभावित हुआ। मोरक्को, स्पेन तथा वेस्टइंडीज में भी उसी तरह का विनाश दृश्य उपस्थित हुआ। वही झटके और उसके बाद समुद्री लहरों का वही उत्पात। स्पेन में तो 60 फीट ऊंचाई तक समुद्र उफनने लगा।

पृथ्वी के जन्म से लेकर अब तक हजारों विनाशकारी भूकम्प आये हैं। इन भूकम्पों ने न केवल नगरों को वरन् विभिन्न देशों की सभ्यताओं को भी नष्ट किया, जिनका अब अता-पता भी नहीं चलता। इन भूकम्पों की भयावहता का चित्रण करते हुए वैज्ञानिक इसी परिप्रेक्ष्य में कहते है कि सन् 1982 में आने वाले भूकम्पों की श्रृंखला पता नहीं किन नगरों, देशों और क्षेत्रों को तबाह कर देगी। भूकम्पों के अलावा अन्य रूपों में होने वाला विनाश नर्तन संसार की अधिकाँश आबादी को नष्ट करके रख देगा। वैज्ञानिकों के अतिरिक्त भविष्यदर्शी, अन्तर्द्रष्टा भी यही बात कहते हैं। इस विनाश का कारण प्राकृतिक परिवर्तन तो है ही। आस्तिकजनों के अनुसार उद्दण्ड मनुष्य की उच्छृंखलता सीमा से अधिक बढ़ जाने के कारण यह प्रकृति का दण्ड विधान भी है।


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