विनाश के कगार पर बैठा है- संसार

March 1981

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पहाड़ की चोटी पर, जिसके दूसरी ओर गहरी खाई या बड़ा खड्ड है, उस पर कोई मनुष्य बैठा है, नशे में डूबा हुआ। ऐसा व्यक्ति कब नशे के झोंके में आकर या हवा का हल्का-सा झोंका लगने पर खाई या खड्ड में गिर पड़ेगा? कुछ नहीं कहा जा सकता। कोई एक व्यक्ति ऐसे कगार पर बैठा हो तो उसे किसी तरह समझा बुझाकर उतारा भी जा सकता है, उसे इस संकट से उबारा भी जा सकता है, किन्तु पूरी मनुष्यता पर ऐसा संकट विद्यमान हो तो स्थिति अवश्य चिन्तनीय और शोचनीय हो जाती है। इस समय परमाणु शक्ति सम्पन्न राष्ट्रों के पास करीब 50 हजार एटम बम हैं। हाइड्रोजन बम और वैसे ही अन्य संहारक अस्त्रों का भण्डार तो इस गणना से अलग ही है। इतने परमाणु अस्त्र पृथ्वी के पूरे जीवन को सात बार नष्ट करने के लिए पर्याप्त हैं। यद्यपि एक बार विनाश के बाद दुबारा उनके उपयोग की आवश्यकता तो नहीं ही होगी फिर भी यह स्थिति कितनी भयावह है कि उपलब्ध शस्त्रास्त्र सात बार पृथ्वी पर से जीवन को नष्ट कर सकते हैं।

परमाणु शस्त्रों के रख-रखाव और देखभाल के लिए भारी इन्तजाम किया जाता है। उनका उपयोग किसी एक व्यक्ति की इच्छा से नहीं हो सकता। अन्यथा कभी भी कोई भी व्यक्ति अपनी सनक का शिकार होकर कब संसार को परमाणु शस्त्रों से तबाह कर दे, इसका क्या ठिकाना? परमाणु बमों का सामयिक प्रयोजनों के लिए दूसरे विश्व युद्ध में पहली बार उपयोग किया गया। इसके बाद अब तक कभी किसी युद्ध में इन शस्त्रों के उपयोग की आवश्यकता नहीं हुई, या इनका प्रयोग नहीं किया गया। किन्तु द्वितीय महायुद्ध के बाद संसार के लगभग सभी देशों में परमाणु अस्त्र जमा करने की होड़-सी मच गई है और इन अस्त्रों का भण्डार करने के साथ-साथ परमाणु अस्त्रों के उपयोग की तकनीक भी विकसित हुई है।

6 और 9 अगस्त 1945 को क्रमशः नागासाकी तथा हिरोशिमा पर अणुबम गिराये गए। उससे जो विनाश हुआ, उसका विवरण आज भी रोंगटे खड़े कर देता है। भविष्य में होने वाले युद्धों में इन अस्त्रों का उपयोग न होने देने के लिए कई संधियां हुई हैं, अन्तर्राष्ट्रीय समझौते हुए हैं और संयुक्त राष्ट्रसंघ ने अपने सदस्य देशों पर तरह-तरह के प्रतिबंध लगाए हैं। परमाणु अस्त्रों के प्रसार पर रोक लगाने के लिए भी अनेक स्तर पर प्रयास हुए हैं किन्तु जो राष्ट्र परमाणु शक्ति सम्पन्न हैं वे अपनी शक्ति दिनोंदिन बढ़ाते जा रहे हैं तथा परमाणु युद्ध को रोकने के तमाम उपायों के बावजूद भी यह दावे के साथ नहीं कहा जा सकता कि अगले दिनों यदि कोई बड़ी लड़ाई हुई तो इन अस्त्रों का उपयोग नहीं हो सकेगा।

बड़ी लड़ाई की बात तो दूर रही, इन शस्त्रास्त्रों का जिस प्रकार रख-रखाव किया जाता है और जिस ढंग से उन पर नियन्त्रण किया जाता है वह तरीका ही इतना पेचीदा है कि किसी भी क्षण, बिना कोई युद्ध की घोषणा हुए कब कौन-सा देश, किस पर परमाणु बमों से हमला कर देगा? यह कुछ भी निश्चित नहीं है। पिछले 6 जून 1980 के दिन इसी प्रकार की एक यान्त्रिक भूल से अमेरिका द्वारा अपने प्रमुख प्रतिद्वन्द्वी देश रूस पर परमाणु हथियारों से हमला होते-होते रहा।

एक कम्प्यूटर की साधारण सी गलती के कारण इस दिन विश्व भयंकरतम परमाणु युद्ध से होने वाले विनाश का शिकार होते-होते रहा। हुआ इतना भर था कि कम्प्यूटर में आई एक साधारण सी गड़बड़ी के कारण अमेरिकी सैन्य विभाग के उच्च अधिकारियों को यह गलत सूचना मिल गई थी कि रूस ने अमेरिका पर अपने अंतर महाद्वीपीय प्रक्षेपास्त्र छोड़ दिये हैं बस फिर क्या था? एयर कमाण्ड के सीनियर कण्ट्रोलर ने वह बटन दबा दिया जो परमाणु हमले की सूचना मिलते ही हर क्षण बचाव और प्रत्याक्रमण के लिए तैयार रहता है। यह सूचना मिलते ही आकाश में विचरते बमवर्षक विमान अपने गन्तव्य की ओर उड़ने लगे। प्रक्षेपास्त्र अड्डों पर यह सूचना पहुँचते ही सैन्य अधिकारी अपना कर्त्तव्य पालन करने के लिए अपनी सीटों पर जा बैठे। परमाणु शक्ति से चलने वाली पनडुब्बियों को भी बेतार यंत्रों द्वारा संदेश दिया गया। यह सब तीन मिनटों में हो गया। सौभाग्य से कुछ ही क्षणों में पता चल गया कि कम्प्यूटर के एक साधारण से पुर्जे में आई खराबी के कारण यह गलत सूचना मिली है, अन्यथा ऐसी कोई बात नहीं है। तब कहीं जाकर परमाणु हमले की कार्यवाही रोकी गई और सारी तैयारियां, आदेश तथा निर्देश वापस लिये गये।

फर्ज कीजिए समय रहते यह गलती पकड़ में नहीं आती तो क्या होता? इस समय हम आप सब में से शायद ही कोई यह पंक्त्तियाँ लिखने और पढ़ने के लिए जीवित रहता। अमेरिका द्वारा प्रक्षेपास्त्रों से रूस पर गलत सूचना के आधार पर ही सही, हमला किया जाता तो क्या रूस उस हमले के उत्तर में प्रत्याक्रमण नहीं करता। वह गलती भी पकड़ में नहीं आती क्योंकि कम्प्यूटर ने सैन्य विभाग के तीन अलग-अलग केंद्रों पर थोड़े से अंतर के साथ एक सी ही जानकारी दी थी। अमेरिका में ये तीन केन्द्र अलग-अलग स्थानों पर स्थित हैं। नोराड, स्ट्रेटेजिक एयर कमाण्ड तथा नेशनल मिलिट्री कमाण्ड सेण्टर के प्रमुख नियन्त्रकों के पास कम्प्यूटर की यह सूचना मिली तो उन्होंने एक दूसरे से संपर्क साधा और पाया कि तीनों स्थानों पर प्राप्त हुई सूचनाओं में थोड़ा सा अंतर है। इस थोड़े से अंतर का स्पष्टीकरण करने और आश्वस्त होने के लिए दुबारा जाँच पड़ताल की गई, तब कहीं पता लगा कि कम्प्यूटर में छोटी-सी खराबी के कारण गलत सूचना दी है। इस सारी प्रक्रिया में तीन मिनट से भी कम समय लगा और उन तीन मिनटों में पूरे विश्व पर विनाश के बादल घटा टोप होकर मंडरा उठे थे।

द्वितीय महायुद्ध में नागासाकी और हिरोशिमा पर अणुबम गिराने के लिए विमानों का उपयोग किया गया था, किन्तु अब ऐसी आवश्यकता नहीं है। विमानों से बम गन्तव्य स्थान पर ले जाने और वहाँ फेंकना काफी जोखिम का काम है इसलिए अणुबम फेंकने के लिए प्रक्षेपास्त्रों का उपयोग करने की विधि ढूँढ़ निकाली गई है। ये प्रक्षेपास्त्र विमानों पर भी फिट किये जा सकते हैं, जिससे एक निश्चित दूरी पर पहुँच कर वहीं से अणुबम दागे जा सकें। इसके अतिरिक्त पनडुब्बियों में भी प्रक्षेपास्त्र फिट किये जाने लगे हैं। इसके कई लाभ हैं। एक तो दुश्मन देश के निकट समुद्र में पहुँच कर कुछ ही सेकेंडों के भीतर अणु अस्त्रों की मार की जा सकती है दूसरे ऐसे प्रक्षेपास्त्रों को नष्ट कर पाना भी कठिन है।

परमाणु अस्त्रों के प्रक्षेपण के लिए जमीन से जमीन पर मार करने वाले भूमिगत अड्डे भी बनाए गए हैं जहाँ अंतर महाद्वीपीय प्रक्षेपास्त्रों को फिटकर दिया जाता है, इन भूमिगत अड्डों की सुरक्षा के लिए भी विशेष व्यवस्था की गई है ताकि शत्रु यदि आकस्मिक आक्रमण करें तो बचाव किया जा सके। यद्यपि इन अड्डों को पूरी तरह गुप्त रखा जाता है फिर भी कभी किसी को पता चल जाए तो ऐसी व्यवस्था की गई है कि आकस्मिक आक्रमण के समय उन्हें भूमिगत भागों से ही स्थानान्तरित किया जा सके। इसके लिए जमीन के भीतर ही भीतर सुरंगों का जाल बिछाया गया है।

इसके अतिरिक्त हर क्षण जासूसी उपग्रहों की निगाह से बचने तथा निगाह में आ जाने पर सुरक्षा करने के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित सैन्य अधिकारी नियुक्ति रहते हैं। ऐसी बात नहीं है कि युद्ध न होने की स्थिति में ये अधिकारी निष्क्रिय बैठे रहते हों। उन्हें हर घड़ी और हर क्षण सजग रहना है। इसके लिए समय-समय पर, बिना कोई पूर्व सूचना दिए उन्हें चेतावनी स्वरूप झूठे हमले कर यह परखा जाता है कि अधिकारी अपने काम में कितने मुस्तैद हैं।

यहीं आकर यह आशंका प्रबल होती है कि इन अधिकारियों को अपना पूरा समय फालतू बैठकर ही बिताना पड़ता है। न उन्हें बाहरी लोगों से मिलने की सुविधा रहती है तथा न ही मनोरंजन और मन बहलाव का अवकाश। ऐसे एकाकी जीवन से ऊबकर उनका मानसिक संतुलन कभी भी बिगड़ सकता है, या उन्हें कभी भी कैसी भी सनक सवार हो सकती है। इस स्थिति में मैं अपरिमित शक्ति का स्वामी हूँ। यह विचार इन लोगों को विचलित कर सकता है और उनकी जरा सी भी सनक पृथ्वी पर तबाही तथा बर्बादी करने के लिए पर्याप्त हो सकती है।

इस तरह की सनक या किसी भी राष्ट्र के उच्च अधिकारियों, जिम्मेदार नेताओं की इच्छा पर कभी भी तबाही मच सकती है। इन सैनिक अड्डों की व्यवस्था और तैयारियाँ इतनी चुस्त दुरुस्त हैं कि उन पर नियन्त्रण करने वाला हर अधिकारी उस क्षण का इंतजार कर रहा होता है जबकि उन्हें अपना काम करना है। लगता है इन अधिकारियों की नियुक्ति ही इसीलिए की जाती है कि किसी भी क्षण उन्हें अणु अस्त्रों से दुनिया में तबाही मचा देने के लिए हर घड़ी तैयार रहना है।

रूस और अमेरिका इन दिनों विश्व की दो प्रमुख महाशक्तियाँ हैं। अन्य छोटे-बड़े राष्ट्र इन्हीं दो देशों में से किसी के न किसी के पक्ष में हैं। यह भी कहा जा सकता है कि सारा संसार रूसी खेमे और अमेरिकी खेमे इन दो गुटों में बंटा हुआ। यदि कभी भी किसी भी देश में अणु अस्त्रों के उपयोग की पहल की और प्रतिपक्षी देश के महत्त्वपूर्ण ठिकानों पर हमला बोल दिया तो प्रत्याक्रमण की संभावना सुनिश्चित है।

परमाणु युद्ध की संभावनाओं को इस आधार पर नकारा जाता है कि इससे आक्रामक राष्ट्र भी नहीं बचेगा। युद्ध की संभावनाएं बहुत क्षीण हैं, फिर क्यों इतने विकास की इतनी तैयारियाँ की जा रही हैं? इसका उत्तर यह दिया जाता है कि ताकि परमाणु शक्ति सम्पन्न देश इस प्रकार का युद्ध छेड़ने की पहल न करे अर्थात् एक दूसरों से डरते दबते रहें।

किन्तु 6 जून 80 की घटना यह सिद्ध करती है कि वास्तव में यह व्यूह रचना एक दूसरे को रोकने, दबा कर रखने और उससे धमकाने के लिए भी की गई हो तो भी छोटी-सी गलती इस तरह की विनाश लीला का सूत्रपात कर सकती है। शत्रु देश के आक्रमण की सूचना मिलने और प्रत्याक्रमण करने का निर्णय लेने में कुछ ही सेकेंड का समय किसी भी देश के लिए मात देने वाला सिद्ध हो सकता है। उस स्थिति में कहीं भी, कोई भी गलती परमाणु युद्ध का सूत्रपात करने के लिए पर्याप्त सिद्ध होगी और उस स्थिति में परमाणु युद्ध निश्चित है।

प्रक्षेपास्त्र और आधुनिकतम मशीनों द्वारा अणुबम फेंकने की व्यवस्था जिन दिनों थी उन दिनों आज की व्यवस्था के समान गलतियाँ होने की संभावना बहुत कम, करीब-करीब नहीं के बराबर थी। किन्तु इन दिनों जिस तरह की व्यवस्था है, उसको यह खतरा हमेशा बना हुआ है और जैसे-जैसे इस तरह की व्यवस्थाएं बनती जायेंगी खतरा और बढ़ेगा ही। यद्यपि इस तरह की व्यवस्था सुरक्षा के लिए ही की जाती है किन्तु उनसे सुरक्षा का प्रयोजन कितना पूरा होता है। इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है, पिछले एक वर्ष में इस प्रकार की तीन गलतियाँ हो चुकी हैं। इस प्रकार की व्यवस्था बनाई तो सुरक्षा के नाम पर जाती है, परन्तु वास्तव में उनका उद्देश्य शत्रु देश की टोह लेना और किसी भी तरह की आक्रामक गतिविधि का प्रत्युत्तर तुरन्त देना होता है। इन व्यवस्थाओं का उद्देश्य यही रहता है कि किस जगह से दुश्मन देश ने प्रक्षेपास्त्र छोड़े हैं? उनकी कितनी संख्या है? कब छोड़े हैं? आदि बातों का तत्क्षण पता चलाया जा सके। क्योंकि इस प्रकार के आक्रमणों में समय का अत्यधिक महत्त्व होता है इसलिए ये व्यवस्थाएं करने वाले राष्ट्र निर्णय लेने और प्रत्याक्रमण करने में एक क्षण के लिए भी चूकना नहीं चाहते।

आगे कब किस समय कोई यान्त्रिक गड़बड़ी परमाणु युद्ध की शुरुआत कर दे? इस संबंध में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता। कुल मिला कर इसी निष्कर्ष पर पहुँचना पड़ता है कि सारी दुनिया परमाणु पर्वत की उस चोटी पर बैठी हुई है, जहाँ कभी भी कोई यान्त्रिक गड़बड़ी का झोंका उसे विनाश के गर्त में झोंक सकता है।


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