एकाग्रता कुशलता की जननी।

September 1978

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किसी महत्वपूर्ण निर्णय पर पहुँचने के लिए विचारों की एकाग्रता नितान्त आवश्यक है। यदि मन पर चंचलता छाई रहे, चित्त किसी पर जमे ही नहीं। विचारों की अस्थिर अस्त−व्यस्तता के कारण प्रस्तुत प्रसंग पर गहरा चिन्तन हो ही न सके तो फिर यह अत्यन्त कठिन रहेगा किसी बात के हर पक्ष पर विचार कर सकना और सही निष्कर्ष पर पहुँच सकना सम्भव हो सके।

चींटी, दीमक, मधुमक्खी, मकड़ी जैसे कई छोटे जीव जन्तु अपने नियत क्रम से नियमपूर्वक कार्य करने के आदी होते हैं। फलतः उनकी कृतियाँ देखने की बनती हैं। स्वयं लाभान्वित होते हैं और दूसरों की प्रशंसा के पात्र बनते हैं। बया पक्षी का घोंसला देखते ही बनता है। उसमें रहने वाला परिवार दूसरे पक्षियों की अपेक्षा अधिक सुखी रहता है। सर्वत्र उसकी प्रशंसा भी होती रहती है। इस सफलता का श्रेय उसे मात्र तन्मयता के आधार पर ही मिलता है। इसके अतिरिक्त उसमें और कोई ऐसी विशेषता नहीं होती जिसके कारण उसे यह ऐसी प्रतिष्ठा मिल सके।

योगी जन एकाग्रता का अभ्यास ध्यान धारणा द्वारा करते और उसमें प्राप्त सफलता के अनुपात में ऋद्धि−सिद्धियों के अधिकारी बनते हैं। किन्तु वह सर्वसाधारण के लिए भी उतनी ही उपयोगी है जितनी कि योगी, तपस्वियों के लिए। सर्वसाधारण के जीवन में भी उसकी नितान्त आवश्यकता है। मोची, दर्जी, लुहार, बढ़ई आदि अपना काम एकाग्रता के बल पर ही ठीक तरह कर पाते हैं अन्यथा उनके पैने औजार ही गफलत होने पर हाथ-पैर तोड़ कर रख सकते हैं।

घास खोदने से लेकर खेती करने वालों तक के काम ठीक तरह तभी हो पाते हैं जब वे अपना काम ध्यान पूर्वक करें। विद्यार्थी की बौद्धिक प्रखरता ही नहीं एकाग्रता भी सफलता में सहायक होती है। अभिनय और सरकस के पात्रों की कुशलता प्रकारान्तर से एकाग्रता की ही साधना होती है। गायक, वादक, चित्रकार मूर्तिकार, कवि और साहित्यकार भी अन्य शिल्पियों और कलाकारों की तरह तन्मयता के सहारे ही श्रेय सम्पादन करते हैं। इस विशेषता के न रहने पर समर्थ और साधन सम्पन्न व्यक्ति भी कहने लायक सफलता अर्जित नहीं कर सकता। वैज्ञानिकों और अनुसंधानकर्त्ताओं का कठिन कार्य उसी अनुपात से प्रगति पथ पर आगे बढ़ता है जिसे जितना उनका मन अभीष्ट प्रयोजन की गहराई तक उतरता चला जाता है। धनुष बाण की संरचना का अपना महत्व हो सकता है किन्तु लक्ष्यवेध के लिए समूचा ध्यान अभीष्ट केन्द्र पर केन्द्रित किये बिना कोई चारा नहीं।

बौद्धिक प्रखरता मौलिक नहीं है, उसे एकाग्रता की बेटी कहा जा सकता है। बुद्धि को अनेक तर्क और तथ्य तभी सूझते हैं जब उसकी क्षमता बिखरने से बचाई और अभीष्ट प्रयोजन में लगाई जाती है। ऐसा न हो सकने पर चिन्तन का तिनका अस्थिरता की आँधी में जहाँ−तहाँ उड़ता फिरेगा और किसी निश्चित स्थान तक पहुँच नहीं सकेगा।

आँखों के आगे से दृश्य गुजरते रहते हैं और कान के निकट ही ध्वनियाँ होती रहती हैं किन्तु चित्त यदि कहीं अन्यत्र पड़ा हो तो खुली आँखें भी अन्धी जैसी रहेंगी और सही कानों पर बहरापन छाया रहेगा। स्मरण शक्ति का भी स्वतन्त्र अस्तित्व नहीं है। आयु और स्वास्थता के अनुरूप मस्तिष्कीय धारणा घटती बढ़ती रहती है किन्तु विस्मरण का मूल कारण उपेक्षा ही रहता है। अन्यमनस्कता ही है जो स्मरण शक्ति की कमी के रूप में जानी जाती है। जिन घटनाओं में समुचित दिलचस्पी रही होगी वे सहज की विस्मृत नहीं होतीं वरन् चिरकाल तक याद बनी रहती है।

शिक्षा और अनुभव के महत्व से इन्कार नहीं किया जा सकता किन्तु कामों में गहरी दिलचस्पी न हो तो शिक्षा और अनुभव भी समय पर काम नहीं आते। गहरी दिलचस्पी का नाम ही एकाग्रता है और सफलताओं में उसी की प्रमुख भूमिका रहती है।

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