अपने सौर मण्डल के ग्रह-उपग्रहों की विविधविध गतिविधियों का स्रोत सूर्य है। उससे जो ऊर्जा निसृत होती है उसी के बलबूते सौर परिवार अपना निर्वाह करता है। गर्मी के बिना न चूल्हा ही जलता है और न रेल, मोटर, दौड़ती हैं। शरीर की गर्मी चुक जाय तो निस्तब्धता छा जायगी और मौत आ दबोचेगी। तेल, पेट्रोल न हों तो गाड़ी कैसे चलेगी? बिजली न हो तो उसके सहारे चलने वाले कारखाने ठप्प पड़ जायेंगे। सूर्य का ऊर्जा उत्पादन बन्द हो जाय तो सौर−मण्डल के ग्रह स्वतः ठण्डे हो जायेंगे और इस परिवार के पारस्परिक सम्बन्ध क्षीण होने से विगठन चल पड़ेगा। तब ठंडे ग्रह किसी अन्य गरम सूर्य का आश्रय पाने के लिए अपना देश छोड़कर किसी लम्बी यात्रा पर चल पड़ने की तैयारी करेंगे। जलाशय सूख जाने पर पक्षी भी तो उड़कर अन्यत्र चले जाते हैं।
जन्म के उपरान्त हर वस्तु मरण की दिशा में चलती है। विकास और यौवन के पड़ाव इसी बीच में आ जाते हैं। अपने सूर्य का बचपन चला गया। किशोर काल व्यतीत हो गया। प्रौढ़ावस्था भी व्यतीत हो गई। यह उसकी ढलती उम्र है जो उसे क्रमशः मरण की दिशा में घसीटे लिए जा रही है। जिस पृथ्वी पर हम रहते हैं वह शतपथ ब्राह्मण के अनुसार सूर्य की पतिव्रता पत्नी है। वह उसी कमाई खाती है। सुरक्षा के लिए उसी पर आश्रित है और पति मरण पर साथ सती होने के लिए समुद्यत है। अस्तु सूर्य के मरण का सीधा सम्बन्ध अपनी पृथ्वी के साथ होने और उसके अंचल में पलने वाले हम सब मनुष्यों का भाग्य भी इन अभिभावकों की स्थिति पर अवलंबित है। सूर्य और पृथ्वी की स्थिति से हम मानव प्राणी अप्रभावित नहीं रह सकते। अस्तु अपना भविष्य चिन्तन करते समय हमें सूर्य और पृथ्वी के भविष्य का विचार करना पड़े तो उसे अनावश्यक नहीं माना जाना चाहिए।
सूर्य ठण्डा हो रहा है। उसके फलस्वरूप पृथ्वी भी ठण्डी हो रही है। साथ ही उसकी सक्रियता भी घट रही है। अब से एक करोड़ वर्ष पहले दिन−रात 22 घण्टे के होते थे और वर्ष 400 दिन का था। अब वर्ष में प्रायः 40 दिन की कमी और दिनमान में 2 घण्टे की बढ़ी हो गई है। वह अपनी धुरी पर भी अपेक्षाकृत मन्द गति से घूमने लगी है और सूर्य की परिक्रमा करने वाली यात्रा में भी धीमापन आ गया है।
सूर्य बुझते−बुझते एक टिमटिमाते दीपक की तरह रह जायगा। गर्मी समाप्त हो जाने के कारण सौरमण्डल के सभी ग्रह उपग्रह ठण्डे हो जायेंगे, सघन अन्धकार उन्हें ढक लेगा। इतने पर भी बिखराव रोकने का एक कारण तब भी बहुत दिन बना रहेगा। सूर्य में भरा हुआ पदार्थ बहुत विस्तृत है। वह अपने विस्तार के कारण ही आकर्षण शक्ति बनाये रहेगा और उसमें बंधे हुआ ठंडा अंधेरा सौरमंडल किसी प्रकार अपनी कक्षा एवं धुरी पर परिभ्रमण करता रहेगा। यह नहीं कहा जा सकता है कि उस नीरस स्थिति को प्रकृति कब तक सहन करेगी, हो सकता है कि इस शून्य को भरने के लिए के लिए ब्रह्माण्ड के कोई समर्थ सूर्य कहीं से टूट पड़े और इन अनाथ बालकों की साज संभाल नये सिरे से करने लगें। एक सम्भावना और भी है कि अनाथालय जैसा सौरमण्डल अपनी पृथ्वी समेत नव जीवन पाने के लिए अन्तरिक्ष की लम्बी यात्रा पर निकल पड़े। उस महायात्रा के भटकाव से त्राण पाकर स्थिरता का संरक्षण मिलने में किन−किन परिस्थितियों का सामना करना पड़ेगा, इसका अनुमान लगाने में अभी तो मनुष्य की वर्तमान बुद्धि ने असमर्थता ही घोषित कर दी है।
पृथ्वी के आकार से सूर्य का आकार 13 लाख गुना बड़ा है। जिस ध्रुव तारे की अपना सूर्य अपने गृह परिवार समेत परिक्रमा करता है वह उसकी तुलना में 3 लाख गुना बड़ा है। ध्रुव के परिवार में अनेक सौरमण्डल सम्मिलित हैं। वह उन सब को समेटे हुए महाध्रुव की परिक्रमा के लिए दौड़ रहा है। महाध्रुव का आकार, प्रकाश और चुम्बकत्व अपने ध्रुव से अत्यधिक वृहत है।
इतने वजन से लदे हुए इतनी तीव्र गति से चल रहे इस परिभ्रमण में शक्ति खर्च होती है और वह कहीं न कहीं से आनी ही चाहिए। स्पष्ट है कि सूर्य की उत्तेजना से पृथ्वी का अन्तराल उफनता है। दोनों के समन्वय से वह क्षमता उत्पन्न होती है जो इस भूमण्डल की असंख्य गतिविधियों को संचालित करती है। साधन सामग्री सीमित है असीम नहीं। उत्पादन की तुलना में जब खर्च बढ़ जाता है तो जीवनी शक्ति घटती है और शरीर जराजीर्ण होते−होते मृत्यु के मुख में प्रवेश कर जाता है। यही अन्त ग्रह−नक्षत्रों का भी होता है। अपने सूर्य का और उसकी आश्रिता धरती का भी इसी प्रकार अन्त होता है। देर या सवेर में मरणधर्मा मनुष्यों की भाँति यह विशालकाय सूरज भी अपनी सहेली धरती समेत मरने की तैयारी कर रहा है। हमें भी इस तथ्य को समझना है और अपने मरण को ध्यान में रखना है।
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