संकट नहीं साहस बड़ा है।

September 1978

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जीवट का प्रचुर भण्डार मानवी सत्ता के अन्तराल में कूट-कूटकर भरा हुआ है। उसके आधार पर वह आये दिन आँख मिचौनी करती रहने वाली कठिनाइयों से हँसते-खेलते निपटता रह सकता है। शारीरिक क्षमता मानसिक सूझबूझ, सहयोगियों का आश्वासन, साधनों की सामर्थ्य और ईश्वर का विश्वास यह सब मिलकर इतने भारी हो जाते हैं कि कठिनाइयों के पर्वत भी उनके सामने हलके पड़े।

शरीर शास्त्री कहते हैं कि जीवाणुओं और ऊतकों की गहराई में जो जीवनीशक्ति पाई जाती है उसी के आधार पर रोग-निरोध और आरोग्य-संरक्षण का उद्देश्य पूरा होता है। मनोविज्ञानी कहते हैं कि मनुष्य का व्यक्तित्व और भविष्य विद्या बुद्धि पर नहीं उसके उत्साह एवं साहस पर निर्भर है।

कठिनाइयाँ और उलझनें वस्तुतः उतनी जटिल नहीं होतीं जितनी कि भीरुता और घबराहट के कारण प्रतीत होती है। सन्तुलन बनाये रखा जाय तो हर गुत्थी को सुलझाया जा सकता है और ऐसा तालमेल बिठाया जा सकता है, जिसके आधार पर जो अपरिहार्य हैं उसे हँसते-हँसते सहन कर लिया जाय।

मानवी संरचना इतनी दुर्बल नहीं है कि छोटे-मोटे आक्रमणों और आघातों के सामने घुटने टेक दे। उसमें सहन करने से लेकर गुंथ जाने तक की ऐसी अनेक विशेषताएँ भरी पड़ी हैं जिनके सहारे कठिनाइयों और विपत्तियों से डटकर जूझना सम्भव हो सके। मौत से मरने वालों की तुलना में उनकी संख्या अधिक होती है जो भयभीत होकर मौत के मुँह में जा घुसते हैं। जिजीविषा को दुर्बल न पड़ने दिया जाय तो मौत की सहेली जैसी दीखने वाली विपत्तियों को पार कर सकना कुछ अधिक कठिन नहीं पड़ता।

साहसी का अन्तरंग उसकी सहायता करता है और कठिनाई के समय उसकी समस्त क्षमताएँ एकजुट होकर विपत्ति से लड़ पड़ती हैं। ऐसे लड़ाकू प्रायः विजयी होकर ही लौटते हैं। कहते हैं कि ‘ईश्वर उनकी सहायता करता है जो अपनी सहायता आप करते हैं।’ इस कथन में बहुत तथ्य है। योद्धा का पुरुषार्थ इतना आकर्षक होता है कि उसकी सहायता करने के लिए पड़ोसियों का ही नहीं भगवान का भी मन चलता है। दरिद्र परिवारों में जन्मे, स्वल्प साधनों में गुजारा करने वाले, प्रतिकूलताओं से घिरे कितने ही व्यक्ति क्रमशः आगे बढ़े और उन्नति के उच्च शिखर तक पहुँचे हैं। उस सफलता का श्रेय उनकी साहसिकता को ही दिया जा सकता है जो मनुष्यों से लेकर ईश्वर तक की सहायता को अपने लिए घसीट लाती है।

कहते हैं कोई दुर्भाग्य भी होता है और कई बार वह अप्रत्याशित रूप से मनुष्यों पर टूट पड़ता है। इतने पर भी यह नहीं कहा जा सकता कि ऐसे संकट टल नहीं सकते। धैर्य, साहस और सन्तुलन बनाये रहने पर ऐसी सूझबूझ का उदय होता है जो उस तथाकथित दुर्भाग्य से अठखेलियाँ करती रहे और विपत्ति की घड़ी को टाल सकने तक में समर्थ रह सके। ऐसे ही लोगों को अनुकूलताओं का लाभ मिलता है जिसे आमतौर से दैवी सहायता का नाम दिया जाता है। स्पष्ट है यह दैवी सहायता हर किसी को नहीं मिलती उसे उपलब्ध करने की पात्रता भी अपनी ही साहसिकता के आधार पर सिद्ध करनी पड़ती है।

न्यूयार्क की एक वयोवृद्ध महिला कैथोलिन मैक्कोइन का उदाहरण ऐसा है जिसमें आकस्मिक विपत्तियों और अप्रत्याशित सुरक्षा संयोगों का ऐसा विचित्र ताना-बाना है कि आश्चर्य से चकित रह जाना पड़ता है। लगता है कि कोई मारक शक्ति उसे मिटाने पर तुली रही और समय-समय पर प्राणघातक आक्रमण करती रही। दूसरी ओर ऐसा भी होता रहा कि कोई रक्षक सत्ता उसे बचाने के लिए भी कटिबद्ध बैठी रही। मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है, इस तथ्य की पुष्टि ऐसे ही प्रसंग करते हैं जिनमें एक ओर से आक्रमण और दूसरी ओर से संरक्षण के मध्य तगड़ी टक्कर होती रही हो उसमें मरण नहीं, वरन् जीवन जीतता रहा हो। कैथलिन पर सात बार मौत का हमला हुआ और वह सातों बार बेदाग बन गई।

जब वह सात वर्ष की थी तो स्कूल के अन्य बच्चों के साथ स्टीमर में हडसन नदी की सैर को गई। संयोगवश स्टीमर में आग लगी और कई सौ बच्चों में से प्रायः सभी जलकर खाक हो गये। केवल एक कैथलिन ही ऐसी थी जो उस विपत्ति में से दैवयोग से ही बच सकी। जब सब बच्चे बुरी तरह जल रहे थे तब इस लड़की को स्टीमर के एक कोने में बड़ा-सा लकड़ी का तख्ता रखा दीखा। उसने उसे उठाया-छाती से चिपकाया और नदी में कूद पड़ी। बहुत देर इस प्रकार लहरों के साथ मौत के झूले में झूलती रही। उधर से गुजरती हुई एक नाविक ने उसे पकड़ लिया और बचाकर उसके घर पहुँचा दिया।

इन्हीं दिनों टैक्सी से यात्रा करते समय सामने से आती दूसरी मोटर से टक्कर हो गई। गाड़ी टूट गई। ड्राइवर मर गया, तीनों अन्य यात्री बुरी तरह घायल हो गये। अकेली कैथलिन ही थी जिसे तनिक भी चोट नहीं लगी।

यह सात घटनाएँ ऐसी हैं जिनमें उसके लिए प्रत्यक्ष मृत्यु का निमन्त्रण था। अन्य घटनाएँ ऐसी हैं जिनसे प्रतीत होता है कि दुर्भाग्य ने सदा असाधारण रूप से पीछा किया है और बार-बार उस पर संकट छाये हैं किन्तु इतने पर भी कोई संरक्षक शक्ति उसका बचाव करती रही और 61 वर्ष की आयु तक वह भला चंगा जीवन जीती रही।

ऐसे अनेक उदाहरण हम अपने इर्द-गिर्द आसानी से ढूँढ़ सकते हैं जो विपत्ति के समय अपना सन्तुलन और साहस बनाये रहे। उबरने की आशा संजोये रहे और दुर्दिनों को परास्त करके यह सिद्ध करते रहे कि संकट नहीं साहस बड़ा है।


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