‘‘स्वयं कृतं यदात्मना पुरा,
फलं तदीयम् लभते शुभाशुभम्।
परेण दत्तं यदि लभ्यते स्फुटं,
स्ययं कृतं कर्म निरर्थकं तदा॥’’
-शांडल्य नीति
अर्थात्- जो कर्म पूर्वकाल में मनुष्य द्वारा किया गया है, उसका शुभ तथा अशुभ फल उसको मिलता है। यदि वह माना जाये कि यह फल किसी अन्य व्यक्ति का दिया हुआ है तो अपने किये हुए कर्म निरर्थक ही ठहरेंगे।
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