शिव की षोडशोपचार-पूजा (kahani)

September 1978

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

धनुर्धर अर्जुन भगवान शिव की षोडशोपचार-पूजा के उपरान्त ही भोजन ग्रहण करते। पाण्डव-बन्धुओं का यह नियम था कि वे एक साथ भोजन करते।

अज्ञातवास की अवधि में एक दिन भोजन का समय हो चला। भीम को भूख लगी थी। उन्होंने देखा कि आसपास कोई शिव-मन्दिर नहीं है। अर्जुन बिना शिव-पूजन भोजन न लेंगे। वे विचलित हो उठे। मन्दिर न मिलते देख, हताश हो लौट रहे थे कि एक ताड़ी वृक्ष का तना उसी आकार का पड़ा दिखा। भीम ने उसे ही भूमि में गाड़ दिया और उस पर जल-पुष्प आदि चढ़ाकर अर्जुन से कहा-शिव प्रतिमा मिल गई है, चलो, जल्दी पूजन करो।

अर्जुन ने जाकर पूजा की और तब सबने साथ भोजन किया।

भोजन के बाद भीम को विनोद सूझा। उन्होंने कहा-अर्जुन! तुमने आज जिस शिव प्रतिमा की पूजा की है, वह वस्तुतः क्या है?

अर्जुन ने कहा-‘‘आपने स्वयं ही तो उसे शिव-प्रतिमा कहा था।”

भीम ने हँसते-हँसते बताया कि वह ताड़ी वृक्ष का तना था अर्जुन यह मानने को तैयार नहीं थे। तब युधिष्ठिर ने कहा-चलकर देख लिया जाय। वहाँ पहुँचकर भीम से उसे उखाड़ने को कहा गया। महाबली भीम ने पूरी ताकत लगा दी। पर विफल रहे। उनका सिर लज्जा से झुक गया।

युधिष्ठिर ने कहा- भीम! तुम्हारी बात सही होगी। पर अर्जुन एक निष्ठावान साधक है। जब उसने शिवलिंग की भावना से उस प्रतीक का पूजन किया, तो उसका शिवलिंग हो जाना आश्चर्य नहीं।

----***----


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles