सच्चा प्यार (kavita)

March 1976

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सच्चा प्यार हमेशा रहता मिटने को तैयार। प्रेम पात्र से यह न चाहता है कोई प्रतिकार।

इसका जन्म जहाँ होता वह आत्मा का उद्यान। इसीलिए तो जन्म−जन्म तक चलती यह पहचान॥

प्राणों को मृदु पुलक बाँटती इस की मंद बयार। प्रेम पात्र से यह न चाहता है कोई प्रतिकार॥

यह न माँगता कुछ भी प्रिय से देकर होता तुष्ट। सुखी रहे दूसरा इसी में यह होता सन्तुष्ट॥

यह न कभी भी भव्य भावना का करता व्यापार। प्रेम पात्र से यह न चाहता है कोई प्रतिकार॥

यह पराग−सा, गंध बाँटना ही है इसका ध्येय। यह बादल−सा, एक बूँद भी इसकी नहीं अदेय॥

यह रवि के सम खुद जलकर बाँटता सदा उजियार। प्रेम पात्र से यह न चाहता है कोई प्रतिकार॥

यह सुख का मृदु स्रोत यही मानस वीणा का तान। मधुर प्यार से ही उपजा जीवन का शाश्वत गान।

सच मानो, निष्कपट प्रेम ही जीवन का आधार। प्रेम पात्र से यह न चाहता है कोई प्रतिकार॥

जीने का साहस देता है, मंजिल का विश्वास। मिलने पर चिर तृप्ति, बिछड़ने पर देता चिर प्यास॥

देने ही देने का क्रम रखता है सच्चा प्यार। प्रेम पात्र से यह न चाहता है कोई प्रतिकार॥

जब होता यह मातृभूमि से, बनता तब बलिदान। बंधुता जब युग−पीड़ा से तब होता युग−निर्माण॥

और सदा निःस्वार्थ प्रेम से प्रभु होते साकार। प्रेम पात्र से यह न चाहता है कोई प्रतिकार॥

−माया वर्मा

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*समाप्त*


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