राजा उदयन (kahani)

March 1976

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राजा उदयन की रानी ने बुद्ध संघ को पाँच सौ चादरे दान दीं। उन्हें ले जाने के लिए प्रधान भिक्षु आयुष्मान् आनन्द जब राजमहल पहुँचे तो राजा ने उनका समुचित सत्कार किया और भेंट के वस्त्र वाहन पर लादकर उनके साथ भिजवाने की व्यवस्था कर दी।

जब आयुष्मान् आनन्द चलने लगे तो राजा ने जिज्ञासा की निवृत्ति के लिए विनोद शब्दों में पूछा−भन्ते, इतनी चादरों का आप लोग क्या करेंगे?

उत्तर में आयुष्मान् ने कहा−जिन भिक्षुओं के चीवर फट गये हैं उनमें इनको वितरित करेंगे।

प्रश्नोत्तर का सिल−सिला आगे चल पड़ा। उदयन पूछते गये और आनन्द उत्तर देते गये। भिक्षु लोगों के फटे−पुराने चीवरों का क्या होगा? उनसे बिछौनों की चादर बनावेंगे। बिछौनों की जो फटी पुरानी चादरें उतरेंगी उनका क्या होगा? उनमें से छाँटकर तकियों के गिलाफ बनाये जायेंगे। फिर पुराने गिलाफों का क्या होगा? उनकी जोड़ गाँठ कर गद्दी का भराव और झाड़न का प्रयोजन पूरा किया जायगा। पुराने भराव और झाड़नों का क्या होगा? उन्हें गारे में कूटकर इमारतों पर किये जाने वाले पलस्तर में उपयोग कर लिया जायगा।

राजा उदयन को बुद्ध संघ की अर्थ नीति पर पूरा संतोष हो गया और उनने अपनी राज्य व्यवस्था में भी उसी स्तर की मितव्ययिता एवं वस्तुओं को रद्दी न जाने देने की आज्ञा जारी कर दी।

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