योग के प्रति विश्व आकर्षण और हमारा उत्तरदायित्व

March 1976

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भौतिकवाद के विकास, विस्तार की एकांगी प्रगति ने मानवी सुख शान्ति की जड़े हिलाकर रख दीं हैं। सर्वत्र यह गम्भीरतापूर्वक सोचा जा रहा है कि प्रगति को एकांगी रहने देने में खतरा ही खतरा है इसलिए उपेक्षित अध्यात्म को भी जीवन दर्शन की एक महत्वपूर्ण कड़ी मान कर चला जाय। चिन्तन की इस नई मोड़ ने संसार का ध्यान अध्यात्म की ओर आकर्षित किया है। चूँकि भारत योग एवं अध्यात्म के उत्पादन, उत्थान एवं परीक्षण प्रयोग का क्षेत्र रहा है इसलिए जब योग अध्यात्म की बात सोची जाती है तो उसे समझने के लिए भारत की ओर सहज ही सबका ध्यान चला जाता है। विदेशों में तब और भी अधिक प्रसन्नता होती है जब कोई भारतीय योग प्रचारक ‘योगी’ के रूप में वहाँ पहुँचता है। वे घर आये देवता से बहुत कुछ जानने, सीखने और पाने की आशा करते हैं। अस्तु योगविद्या के छात्रों और शिष्यों की सहज ही भीड़ लग जाती है। कम से कम उसे पास से देखने और समझने के लिए तो विचारशील वर्ग भी बड़े उत्साह के साथ आता है।

पिछले दिनों योग प्रचार के लिये गये हुए भारतीयों को विदेशों में इतनी सफलता मिली है जिसकी उन्होंने स्वयं भी आशा नहीं की थी। इन दिनों भारतीयों द्वारा चलाये जाने वाले योग शिक्षा केन्द्रों की संख्या सैकड़ों से बढ़कर हजारों तक पहुँच गई हैं। वे विभिन्न देशों में अपने−अपने ढ़ंग से अपना काम कर रहे हैं। इन सब के विवरण तो उपलब्ध नहीं हैं, पर जिनकी चर्चा पत्र, पत्रिकाओं में छपती रहती है उनके विवरणों पर थोड़ा सा दृष्टिपात करने से यह अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है कि उन्हें उत्साहवर्धक सफलता मिली है।

अमेरिका में स्वामी योगानन्द का सैल्फ रियलाइजेशन फैलोशिप बहुत समय से काम कर रहा है। लॉस ऐंजिलस के समीप माउण्ट वाशिंगटन पर इस का मुख्य केन्द्र है और शाखाएँ अमेरिका के बड़े शहरों और छोटे नगरों में फैली हुई हैं। हालीवुड के अभिनेताओं ने जब से योग साधना में दिलचस्पी लेनी शुरू की है तब से इस मिशन के प्रति जनता में उत्साह और भी अधिक बढ़ा है। स्वामी जी की ‘साइन्स आफ रिलीजन’−सोंगस आफ सोल−मैटाफिजिकल मेडीटेशन, कास्यिक चार्टस, ह्विस्पर्श फ्राम इटनिटी−पुस्तकें अमेरिका में बड़ी दिलचस्पी के साथ पढ़ी जाती हैं।

इस योग मिशन के सदस्यों की संख्या अब हजारों से बढ़कर लाखों तक जा पहुँची है। अमेरिकी नर−नारी योगाभ्यास को अपने दैनिक कार्यक्रम में सम्मिलित कर रहे हैं। कैलीफोर्निया के डियागो और पैसिफिक, पौलिसेड्स स्थानों में बने केन्द्र इस दिशा में उल्लेखनीय कार्य कर रहे हैं। इण्डिया सेन्टर का केफिटेरिया निरामिस भोजनगृह अमेरिका वासियों को शाकाहारी भोजन करने का आनन्द देता है और उसमें सदा भीड़ लगी रहती है। मिशन की अध्यक्षा कुमारी फ्रेराइट अमेरिका में दया माता के नाम से प्रख्यात है। योग शिक्षा का प्रधान उत्तरदायित्व प्रायः वे ही संभालती हैं।

महर्षि महेशयोगी का ट्राँसेडेन्टल मेडीटेशन योरोप, अमेरिका में खूब चला। यह साधना ‘टी0 एम0’ के नाम से बहु विख्यात है। अमेरिका के कई कालेजों ने उसे अपनाया है। शिक्षा मन्त्रालय ने स्कूलों में इसके प्रचार के लिए विशेष अनुदान स्वीकृत किया है। नशेबाजी की अपनी बुरी आदत से छुटकारा पाने में इस योग के सहारे बहुत सफलता मिल रही है। महेश योगी के ‘इंटरनेशनल मेडीटेशन सोसाइटी की भी शाखा प्रशाखाएँ बढ़ती ही जा रही हैं।

आरम्भ में ‘बीटल’ महेश योगी की ध्यान साधना से बहुत प्रभावित हुए थे। इससे उस ओर जनता का ध्यान भी तेजी से बढ़ा। ‘लान्स सेट’ पत्रिका के द्वारा भी उनका प्रचार बहुत हुआ। फिल्म कलाकार भी उस शिक्षा प्रक्रिया में सम्मिलित हुए हैं। अब तक तीन हजार से ऊपर अमरीकी उनकी दीक्षा ले चुके हैं। योग शिक्षा का पाठ्यक्रम तीन सप्ताह का है। सीखने वालों को इसकी फीस 600 डालर देनी पड़ती है।

दक्षिण भारत के एक स्वामी सच्चिदानन्द ने न्यूयार्क में योगशिक्षा सेन्टर खोला है। प्रति सप्ताह 13 कक्षाओं को योग शिक्षा देते हैं प्रत्येक कक्षा में 15 से 40 छात्र होते हैं।

न्यूयार्क में 94वीं स्ट्रीट पर स्वामी निखलानन्द ने भारतीय योग शिक्षा का एक केन्द्र स्थापित किया है। उसी नगर में इसकी 9 शाखायें हैं। अन्य कई देशों में उनके केन्द्र हैं।

महेश योगी की ध्यान साधना से अमेरिका के फिल्म कलाकार सिनावे और शर्लें मेवलेन बहुत प्रभावित हुए हैं और वे योग की अगली सीढ़ियां सीख रहे हैं।

कुछ समय पूर्व लन्दन में एक भारतीय तान्त्रिक कला प्रदर्शिनी लगाई गई थी। इसमें तन्त्र योग से सम्बन्धित साहित्य, चित्र तथा उपकरण सुसज्जित रूप में रखे गये थे। यों सर्वसाधारण ने उसे बहुत उत्साहपूर्वक देखा, पर विद्यार्थी और अध्यापक वर्ग की दिलचस्पी अधिक रही। रखी हुई सामग्री विवरण बताने वाला छोटा−सा सूची पत्र पाँच सिलिंग मूल्य का था, उसे न केवल दर्शकों ने वरन् इस सम्बन्ध में रुचि रखने वालों ने बड़ी संख्या में खरीदा। उसकी माँग प्रदर्शिनी समाप्त हो जाने के बाद भी आती रही।

जापान के विश्वमेले−एक्सपो 70 में भारत की ओर से योग प्रदर्शिनी लगाई गई। इस का संकलन विश्वायतन योगाश्रम की ओर से किया गया। दर्शकों ने योगासनों को देखने और समझने में बहुत उत्साह दिखाया।

ब्रह्मा कुमारी ईश्वरीय विद्यालय की ओर से योरोप, अमेरिका के 14 देशों में तथा आस्ट्रेलिया में योग चित्रों की प्रदर्शनी लगाने की व्यवस्था की थी जिसमें न केवल साधारण नागरिकों ने दिलचस्पी दिखाई वरन् उच्च कोटि के राजनेता पत्रकार तथा बुद्धिजीवी भी आयोजकों से बहुत बातें जानने पूछने आये।

पिछले दिनों दिल्ली में निरंकारी महात्मा सन्त कृपालु सिंह के विदेशी शिष्यों की धूम थी उनका एक बड़ा अंतर्राष्ट्रीय योग सम्मेलन हुआ था वालयोगेश्वर की गतिविधियाँ भारत में बहुत चर्चित हैं। विदेशों में भी उनकी धूम है। मुँगेर के स्वामी सत्यानन्द जी महाराज के शिष्यों की संख्या पाश्चात्य देशों में बढ़ ही रही है। ऋषिकेश,लक्ष्मण झूला के इर्द−गिर्द लगभग एक दर्जन बहुमूल्य आश्रम ऐसे ही हैं जिनका निर्माण विदेशों से आये धन द्वारा हुआ है। उनके संचालक योग प्रचार के लिए विदेशों में जाते हैं और आवश्यक अर्थ व्यवस्था जुटाते हैं। निस्संदेह इस प्रकार के योग प्रचारकों की संख्या अब सैकड़ों की गिनती को पार करके हजारों की सीमा तक पहुँच चुकी है। संसार के किसी भी देश में भारतीय योग शिक्षक पाये जा सकते हैं।

यह सफलता वस्तुतः प्रस्तुत योग शिक्षक की विशेषता नहीं, वरन् संसार में भौतिकवाद की अवाँछनीय अभिवृद्धि के कारण उत्पन्न हुई समस्याओं की विभिन्न प्रतिक्रिया है। हमें यह ध्यान रखना होगा कि समय की माँग और युग की पुकार ने वह आकर्षण उत्पन्न किया है जो कि देशों में परिलक्षित हो रहा है।

भौतिकता का आध्यात्मिकता के साथ ताल−मेल बिठाने वाली दार्शनिक और व्यावहारिक चिन्तन प्रक्रिया को प्रस्तुत करना, यही है वह उत्तरदायित्व जो विचारकाल अध्यात्मवेत्ताओं को निवाहना चाहिए। कारण जितना गहरा है समाधान भी उसी स्तर का होना चाहिए। यदि योग को उथले क्रिया काण्डों तक सीमित कर दिया गया तो निकट भविष्य में इस दिशा में उत्पन्न हुआ आकर्षण समाप्त हो जायगा और वह निराशा नास्तिकता से भी महंगी पड़ेगी। नास्तिकता में यह गुंजाइश थी कि आस्तिकता यदि सच निकली तो उसमें आशा की किरणें विद्यमान हैं पर यदि आस्तिकता को भी खोखली मान लिया गया तो फिर उससे उत्पन्न हुई अनास्था को मिटा सकना कठिन हो जायगा। योग प्रचारकों को इस खतरे का भी ध्यान रखना चाहिए और अपनी योगशिक्षा में उस दार्शनिकता का समन्वय करना चाहिए जो उद्विग्न लोक मानस को समुचित समाधान दे सके।

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