यह जग संघर्षात्मक नहीं सृजनात्मक हैं। बीज वृक्ष के रूप में संघर्ष करने के लिये नहीं, अपने स्वतः के साक्षात्कार के लिये प्रकट होता है। उसके जीवन का उद्देश्य किसी का विनाश नहीं वरन् किसी के लिए अपने आप को समर्पित कर देना है। सम्पूर्ण सृष्टि एक दूसरे का सहयोग देती हुई चल रही हैं। पञ्च महातत्व इसलिये मिलकर एकत्रित नहीं होते कि उन्हें मिलकर किसी से संघर्ष करना है, अपितु इसलिये कि वह उनकी प्रकृति है, उसी के द्वारा वे सृष्टिकर्ता की इच्छा को पूर्ण कर सकते हैं। यदि हम विकासवादी है तो सृजन का नियम हमें स्वीकार करना चाहिए, विसर्जन या संहार का नहीं। यदि सम्पूर्ण सृष्टि में, सभी प्राणियों की किसी एक शक्ति की प्रेरणा और इच्छा से काम कर रही है तो निश्चित ही वह विधायक है, निर्माणात्मक और भावात्मक हैं, विनाशक और विभेदक नहीं। अभी प्रलयकाल नहीं सृजन की बेला है।
−दीनदयाल उपाध्याय