“एक अधेड़ और एक नवयुवती महिला कही साथ−साथ जा रही थीं। अधेड़ चौथी तलाक लेकर कहीं सहारा ढूँढ़ने के फेर में थी। युवती को अभी पहला विवाह करना था। समय काटने के लिए दोनों ने आपस में बातें शुरू की।”
“अधेड़ ने अपनी यात्रा का उद्देश्य बताया−उलझन, डाँट−डपट, कष्ट, खतरा, संदेह, चिन्ता, निराशा और जान को जंजाल मोल लेने के लिए सहारे की खोज।”
“नव−युवती ने झल्लाकर कहा−ऐसी बेकार बातों में उलझने की मुझे तनिक भी इच्छा नहीं हैं। मैं तो विवाह कर सुखी रहना चाहती हूँ।”
“अधेड़ ने युवती के कन्धे पर हाथ रखकर मुसकराते हुए कहा−बहन हम दोनों बिलकुल एक ही रास्ते पर है। फर्क केवल समझ का है। अनुभव तुम्हें बतायेगा कि शादी में यही सारे सुख होते हैं जिनकी गणना मैंने कराई।”
—‘वाशिंग टन पोस्ट’ में प्रकाशित