कालिदास ने लिखा है ‘न रुपं पाप वृत्तये’ रूप की प्रशंसा तो है पर पाप वृत्ति में यदि वह प्रयुक्त होने लगे तो नहीं। ऐथेन्स के दार्शनिक पैरिक्लीस ने जनता का उद्बोधन करते हुए कहा था− “हमें कला चाहिए, विलास नहीं। हम विज्ञान की उपासना करते हैं किन्तु मानव का विनाश नहीं चाहते।’