अन्तरिक्षीय सहयोग की प्रयास प्रक्रिया

April 1975

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मनुष्य की अदम्य जिज्ञासा इस प्रयत्न में संलग्न है कि वह धरती की परिधि में ही कूप−मण्डूक की तरह सीमाबद्ध न रहकर यह जाने की अनन्त आकाश में कहाँ क्या हैं? खगोल विद्या का विकास विस्तार इसी आधार पर सम्भव हुआ है। चन्द्रमा तक मनुष्य पहुँच चुका। उसकी भूमि पर झण्डा पहुँचा चुका। वहाँ क्या है और क्या नहीं? यह जान चुका। इस प्रयास से उसे भार हीनता में रहने−गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र में प्रवेश प्राप्त करने एवं उससे निकलने, अन्तरिक्षीय परिस्थितियाँ जानने जैसी अगणित ऐसी जानकारियाँ प्राप्त हुई है जो धरती पर रहते हुए उपलब्ध नहीं हो सकती है। इस प्रयास का अभी प्रत्यक्ष लाभ कुछ बहुत बड़ा प्रतीत न होता हो पर जो ज्ञान सञ्जय किया गया है वह भावी मानवी प्रगति के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण सिद्ध होगा वह निश्चित है।

इस सुविस्तृत ब्रह्माण्ड में हम पृथ्वी निवासी ही बुद्धिमान प्राणी हों, ऐसी बात नहीं है। असंख्य ग्रह पिण्डों में अवश्य ही ऐसे लोग होंगे जहाँ मनुष्य से भी अधिक बुद्धिमान प्राणी निवास करते हों। हम जिस प्रकार अन्य ग्रहों की खोज−खबर लेने के लिए अपने मानव सहित और मानव रहित यान आये दिन भेजते रहते हैं, उसी प्रकार यह भी स्वाभाविक है कि उन विकसित ग्रह तारकों के निवासी पृथ्वी की परिस्थितियों का पता लगाने के लिए अपने यान भेजते हों।

कभी−कभी ऐसे यान अपने आकाश में उड़ते और उतरते देखे भी गये है जिन्हें पृथ्वी निवासियों ने नहीं भेजा है। वे दृष्टि भ्रम भी नहीं थे। जाँच−पड़ताल के उपरान्त उन्हें सचाई के रूप में स्वीकार किया गया है। इन यानों की उपस्थिति और उनकी हलचलों से इस विश्वास को बहुत बल मिलता है कि अन्य लोकों में भी बुद्धिमान प्राणी मौजूद है और वे भी हमारी ही तरह ब्रह्माण्डव्यापी परिस्थितियों को जानने एवं जहाँ बुद्धिमान प्राणी मिलें वहाँ संपर्क स्थापित करने के लिए उत्सुक हैं। समय−समय पर देखे गये ऐसे अन्तरिक्षीय यान जिन्हें ‘उड़न तश्तरी’ कहा जाता हैं−इस तथ्य को साक्षी रूप में परिपुष्ट करते हैं।

जर्मनी के राकेट विशेषज्ञ हरमन ओवर्थ उन दिनों अमेरिकी सरकार के एक अत्यन्त गोपनीय प्रक्षेपणास्त्र शोध कार्य में संलग्न थे। उन्होंने एक भरी सभा में उड़न तश्तरियों के अस्तित्व का समर्थन ही नहीं किया वरन् यहाँ तक कह डाला कि इस सम्बन्ध में कितनी ही महत्वपूर्ण जानकारियाँ सरकार के पास है। उन्होंने इसके सम्बन्ध में विस्तृत प्रकाश डाला और बताया कि वे ‘एप्सिलोन एरिडैनी’ और ‘ताओ सेटि’ तारकों के किसी ग्रह से आती हैं।

जिन्होंने सन् 30 में ‘प्लूटो’ ग्रह खोज निकाला था वे अन्तरिक्ष विज्ञानी क्लाइड डबल्यू डाम्बा पिछले दिनों अमेरिका में प्राकृतिक उपग्रहों की खोज में संलग्न थे। उन्होंने भी अपनी सार्वजनिक साक्षी देते हुए कहा था−मैंने ही नहीं मेरी पत्नी ने भी इन्हीं आँखों से उड़न तश्तरियों को अपनी आँखों देखा था विज्ञान वेत्ता सिल्योर हेम ने कहा था उन्होंने एरिजोना क्षेत्र में एक ऐसी उड़न तश्तरी देखी जो धातु की बनी और ईंधन से चलती दिखाई देती थी।

ब्राजील की वायु सेना ने तो एक ऐसा प्रतिवेदन सन् 1955 में सार्वजनिक रूप से प्रकाशित कराया था जिसमें उस देश के वैज्ञानिकों द्वारा उड़न तश्तरियों के विवरण सम्बन्धी विचार निष्कर्षों का विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया था। कनाडा की सरकार ने ओटावा के समीप अवस्थित एक अनुसन्धान शाला शाला द्वारा सन् 1953 में उड़न तश्तरियों सम्बन्धी खोज कराई थी। उसके निर्देशक विर्ल्वट मथ ने घोषित किया था उड़न तश्तरियों के अस्तित्व सम्बन्धी ठोस प्रमाण मौजूद है। वे किसी अन्य ग्रह से जाती है। अर्जेण्टाइन के विज्ञानी ने मार्कस ग्युएकि तथा अन्य कई अफसरों ने दो उड़न तश्तरियाँ कारडोवा हवाई अड्डे के पास देखी थीं। यह वहाँ की सरकार द्वारा प्रकाशित एक विज्ञप्ति द्वारा स्पष्ट है। रूस के दो वैज्ञानिक कैजेन्त्सेव और एग्रेस्त उनका अस्तित्व सार्वजनिक रूप से स्वीकार कर चुके हैं।

फ्रान्स के “रैसिस्तैन्स” पत्र में स्वीडन में अनेक लोगों द्वारा देख गई उड़न तश्तरियों का विस्तृत विवरण अपने 11 जुलाई 1946 के अंक में विस्तार पूर्वक प्रकाशित किया था। स्टाक होम में ऐसी ही ज्योतियाँ देखी गई उन का विवरण ‘लामोन्द’ समाचार ने ‘रहस्यमय ज्योति बम’ नाम देकर प्रकाशित किया था। ब्रिटेन के ‘डेली मेल’ ने अपना प्रतिनिधि इन समाचारों का पता लगाने भेजा उसने स्वीडन तथा डेनमार्क के फौजी अफसरों तक को इस चिन्ता से ग्रसित पाया कि कहीं उड़न तश्तरियाँ कोई खतरा तो उत्पन्न नहीं करने वाली हैं, इन देशों के अनेक सम्भ्रान्त नागरिक आँखों देखे विवरण को साक्षी रूप से प्रस्तुत करते हुए उड़न तश्तरियों के स्वरूप की बात स्पष्ट कर रहे थे।

केनेथ आरनल्ड का वह विवरण अनेक पत्रों में छपा था जो उसने अपने वायुयान के निकट नौ उड़न तश्तरियों का एक जत्था आँखों के पश्चात प्रकाशित कराया था।

अमेरिकी सरकार द्वारा इस सम्बन्ध में जो अनुसन्धान कराया था उसका विवरण कमाण्डर मैक्लाफलिन ने एक प्रतिवेदन के रूप में छपाया है। उसमें उन्होंने उड़न तश्तरियों को किसी अन्य ग्रह के बुद्धिमान प्राणियों द्वारा भेजा गया बताया है और उनका आकार औसत 40 फुट चौड़ा 100 फुट लम्बा बताया है तथा उनकी की ऊँचाई कोई 2 लाख फुट निर्धारित की।

इस संदर्भ में वैज्ञानिकों का एक सम्मेलन बुलाया गया था। उसमें जनरल सैमफोर्ड ने न केवल उड़न तश्तरियों के अस्तित्व को स्वीकार किया वरन् उनकी शक्ति का उल्लेख करते हुए यह भी माना कि उनमें इतनी शक्ति है जिसको हम न तो समझ पाते हैं और न माप सकते हैं।

सन् 1961 में जब केप केनेडी से पोलरिस नामक राकेट उड़ाया गया तो राडार ने नोट किया कि उसके ऊपर किसी ‘अज्ञात वस्तु’ ने भयंकर झपट्टा मारा और फिर वह गायब हो गई। इस आघात ने राकेट के साथ वैज्ञानिकों का संपर्क ही तोड़ दिया। बहुत प्रयत्न करने पर 14 मिनट बाद फिर कहीं ढूँढ़ा देखा जा सका। ऐसा ही एक झपट्टा इस ‘अज्ञात वस्तु’ ने व्यूनस आयर्स के एजेजिया हवाई अड्डे के समीप उड़ते हुए ‘पैनिग्रा डी सी. 8 नामक जेट विमान पर मारा और उसे नियम समय पर उतरने से रोक दिया। यों सरकारी विज्ञप्ति ने इन समाचारों पर पर्दा डालने की कोशिश की पर जिन्होंने इन दृश्यों को आँखों से देखा वे उन विज्ञप्तियों को कैसे स्वीकार करते?

ऐसे ही और भी कई प्रामाणिक विवरण उपलब्ध है। यथा−न्यू मैक्सिको के प्रक्षेपणास्त्र अधिकारी स्टोक्स द्वारा ऊलामागोर्दा के निकट अपनी कार के समीप से एक भीमकाय यन्त्र को उड़ते हुए देखा जाना−18 जून 1963 में कैलीफोर्निया में जेट विमानों द्वारा एक उड़न तश्तरी का पीछा किया जाना−केनेवरा (आस्ट्रेलिया) में एक लड़खड़ाते लाल प्रकाश पिण्ड को अनेकों द्वारा देखा जाना−लिस्वन की वेधशाला द्वारा उड़न तश्तरियों का आक्रमण नोट किया जाना, आदि−आदि।

जन साधारण द्वारा अनेकों बार खुले आकाश में विचरण करती हुई उड़न तश्तरियाँ देखी गई है। एक दो ने नहीं वरन् असंख्यों ने उन्हें आँखों से देखा है। इनके समाचार समय−समय पर अखबारों में छपते रहे हैं।

1.पैरिस के विकट बरनाल नगर के निकट अँधेरी रात में पौन घण्टे तक एक नीली रोशनी वाले प्रकाश पिण्ड का घुमड़ते रहना और उसका व्यापारी बर्नार्ड तथा दूसरे अनेकों प्रामाणिक व्यक्तियों द्वारा देखा जाना (2) क्वारोबल के निकट एक उड़न तश्तरी का उतरना और उसमें से समुद्री पोशाक जैसे वस्त्रों वाले दो व्यक्तियों का निकलना, उन्हें मेरियस डिवाइल्ड का अपने साथियों सहित देखना एवं उस दृश्य के सहस्रों साक्षी मिलना, (3) लिस्वन के निकट फातिमा में और न्यूगिनी में बच्चों द्वारा छह बार देव मानवों के साथ भेंट का विवरण प्रस्तुत किया जाना (4) पादरी विर्कर लीरिया द्वारा आकाश में किसी देवदूत का प्रकाश विमान में बैठकर आना और उसकी कैथोलिक चर्च द्वारा पुष्टि किया जाना (5) कोइम्ब्रा विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक अलमीदा गैरत द्वारा एक भयंकर अन्तरिक्ष यान के गुजरने का विस्तृत वर्णन उसकी साक्षी में 70000 दर्शकों का समर्थन (6) रेवेण्डर विलियम वूथ गिल, डा. के. हाउस्टन, मेजर डोनाल्ड की हो जैसे सम्भ्रान्त व्यक्तियों द्वारा आँखों देखा घटना क्रम उड़न तश्तरियों की गतिविधियों का वर्णन (7) कनाडा के समुद्री तट ‘शाका हार्वर’ पर 4 अक्टूबर 1967 को सहस्रों दर्शकों द्वारा एक विशालकाय अग्नि पिण्ड का आकाश से उतर का समुद्र में प्रवेश करते हुए देखा जाना (8) अन्तरिक्ष शोधक एंडयूब्लासम की प्रकाशित डायरी में अनेकों आकाश पिण्डों के धरती पर आवागमन के देखे गये विवरणों का संग्रह (9) ब्रिटेन के विक्टोरिया जलयान द्वारा माल्टा के निकट तीन चमकदार उड़न तश्तरियों का समुद्र से निकल कर आकाश में उड़ जाने का विवरण उसके नाविकों द्वारा प्रकाशित कराया जाना (10) अमेरिकी जलपोत अलास्का का सेतल के निकट समुद्र से एक 250 फुट व्यास के पिण्ड का निकलना और आकाश में उड़ना, जहाज पर सवार विज्ञानी राबर्ट एस॰ क्राफर्ड द्वारा उसका वह विवरण बताया जाना जिसमें उस पिण्ड पर तोपें दागने की भी नाविकों ने तैयारी कर ली थी।

ऊपर कुछ प्रमुख घटनाएँ है इनके अतिरिक्त संसार के विभिन्न भागों में असंख्य लोगों द्वारा देखी गई ऐसी हजारों साक्षियाँ है जिनसे ‘उड़न तश्तरियों’ के अस्तित्व, स्वरूप एवं क्रिया−कलाप पर प्रकाश पड़ता है। यह प्रमाण इतने अधिक हैं और ऐसे लोगों के है जिन्हें सहज ही झुठलाया नहीं जा सकता।

‘फेट’ पत्रिका में ए॰ मार्शल का वह प्रत्यक्ष दर्शन छपा है जिसमें उन्होंने वर्जीनिया के मैनबोरो स्थान पर एक आकाशयान को अपने निकट से गुजरने की बात का विस्तार पूर्वक वर्णन किया है। लेखक एम॰ के0 जेसप ने अपनी ‘उड़न तश्तरियों की खोज’ पुस्तक में उन कितनी ही घटनाओं का उल्लेख किया है जो बहुचर्चित बन चुकी है और जिनकी साक्षी में अनेकानेक प्रत्यक्ष दर्शी प्रस्तुत किये जा सकते हैं। (1) स्काटलैंड में इववनिस नगर के लोगों द्वारा रात्रि के घने अँधेरे में उछल−कूद मचाते हुए दो प्रकाश पिण्ड (2) इटली के बेनिस नगर में रात को बादलों के बीच एक घण्टे तक दौड़−धूप करने वाले दो प्रकाश पुञ्ज (3) इंग्लैंड के वेल्सद्वीप पर तेज रफ्तार से चक्कर काटती हुई दो दीप्ति धाराएँ (4) लेनिक ग्राड के जंगली नाले के निकट आँख मिचौनी खेलते हुए तीन प्रकाश−गोलक (5) चीन सागर में ब्रिटिश जलयान कैरोलीन के कप्तान नारकाक द्वारा लगातार दो घण्टे तक समुद्र देखी गई दो प्रकाश नौकाएँ (6)ब्रिटिश जलया लिएन्डर के नाविकों द्वारा समुद्र की सतह पर सात घण्टे ठना रहा प्रकाश नृत्य (7) जान फिलिप वेसर द्वारा बताया गया उड़न तश्तरियों का क्रीड़ा विवरण आदि−आदि।

संसार के विभिन्न क्षेत्रों में देखी गई उड़न तश्तरियों के बारे में जब विस्तृत विवरण ‘डेली मिरर’ और ‘न्यूयार्क टाइम्स’ जैसे प्रख्यात पत्रों ने छापे तो उनकी उपेक्षा सम्भव न हो सकी। प्रक्षेपणास्त्र योजना के रियर एडमिरल डी0 एस॰ फाहर ने और हाउस आफ रिप्रेजेन्टेटिव के स्पीकार जान मैककोर मैन तक को प्रामाणिक साक्षियों पर विचार करने के बाद यह कहना पड़ा−‘अन्य ग्रहों द्वारा धरती से सम्बन्ध बढ़ाने की जो हलचलें इन दिनों चल रही है उनकी उपेक्षा नहीं की जा सकती।

उड़न तश्तरियों के अस्तित्व सम्बन्धी पक्ष−विपक्ष के प्रमाण एकत्रित करने के लिए एक अन्तर्राष्ट्रीय संस्था वाशिंगटन में गठित हुई, जिसका नाम हैं−नेशनल इनवेस्टीगेशन कमेटी आन एरियल फिनामिलना’ इसका संक्षिप्तीकरण है−“निकैप” इससे सम्बन्धित विषय में दखल रखने वाले विशेषज्ञों को ही सदस्य बनाया गया है। संसार में उनकी संख्या पाँच हजार के लगभग है। उसने जो प्रमाण सामग्री एकत्रित की है वह एक महापुराण जितनी । इनमें से जो अधिक महत्वपूर्ण था उसका प्रकाशन भी हुआ है। जो नहीं छापे जा सके वे घटना क्रम भी अपने ग के अनोखे हैं और उन्हें प्रस्तुत करने वाले ऐसे नहीं जिन्हें सिर फिरे अथवा गपबाज कहकर झुठलाया जा सके।

जो साक्षियाँ इन प्रकाश पुञ्ज आकाशीय पिण्डों के सम्बन्ध में प्राप्त हुई है उनमें से एक चौथाई वायुसेना के ऐसे प्रतिष्ठित पदाधिकारियों की है। जिन्हें गपबाजी फैलाने का दोषी कदाचित् ही कोई ठहरा सके। कुछ घटनाएँ तो ऐसी है जिनमें उन्हीं पर मुसीबत टूटी।

जुलाई 1948 की बात है अमेरिका में मेडिसन विल केन्टुकी की पुलिस को सूचना मिली कि गाडमैन हवाई अड्डे के इर्द−गिर्द एक विशालकाय उड़न तश्तरी चक्कर काट रही है। उसका पीछा करने के लिए ‘एफ॰ 51’ किस्म के तीन लड़ाकू विमान कप्तान थामस मेन्टल के नेतृत्व में उड़ाये गये। कप्तान ने आकाश में पहुँच कर रेडियो से सूचना दी हमें उड़न तश्तरी प्रत्यक्ष दीख रही है। उसे हमारे पीछा करने का पता चल गया है। इसलिए वह तेजी से भागने लगी है। हम भी 360 मील की चाल से उसका पीछा कर रहे है। 20 हजार फुट की ऊँचाई तक उसका पीछा करेंगे यदि पकड़ में न आई तो इसके बाद लौट पड़ेंगे। बाद में कप्तान के दो साथियों ने बताया कि मेन्टल का जहाज भी उड़न तश्तरी के साथ गायब हो गया। सरकार ने दो वर्ष तक इस विषय पर चुप्पी साधे रहने के पश्चात् इतना ही कहा− ‘मेन्टल अपना सन्तुलन खो बैठा और उसका जहाज नष्ट हो गया।’

इसी से मिलती−जुलती 23 नवम्बर 1953 की वह घटना है। लेक सुपीरियर आकाश में राडार यन्त्र ने एक विशालकाय उड़न तश्तरी के चक्कर काटने की खबर दी। उसका पीछा करने किनरास हवाई अड्डे से एक एफ॰ 89 जेट उड़ाया गया। सञ्चालक था−मौन्कला बिल्सन। राडार पर अंकित होता रहा कि जेट तेजी से उड़ता हुआ तश्तरी के निकट जा पहुँचा है। इसके बाद दृश्याँकन यकायक बन्द हो गया। दोनों ही गायब हो गये। जेट का मलबा उस पूरे क्षेत्र में तलाश किया गया पर कहीं कोई सुराग न मिला। उस रहस्य पर पर्दा डाल देने के अतिरिक्त और कोई रास्ता न था।

कप्तान विलियम ने अमेरिकी पत्रकारों के सामने बताया 24 फरवरी 1959 की रात को उन्होंने बताया डी0 सी0 6 यान जब पेन्सिलवेनिया से डिट्राएट की ओर उड़ता जा रहा था उसके सामने तीन उड़न तश्तरियाँ एकाकी और देर तक चक्कर काटती रहीं मानो वे जहाज का गम्भीर अध्ययन कर रही हों। इसके बाद वे एक भयंकर झटका देकर उसी अँधेरे आकाश में खो गई जिसमें से कि प्रकट हुई हुई थीं। इस घटना को उस क्षेत्र में उड़ते हुए अन्य हवाबाजों ने भी देखा था।

6 नवम्बर 1957 को ओटावा के आकाश में वास्काटाँग झील के ऊपर रात्रि के 9 बजे एक उड़न तश्तरी देखी गई। उसने उस क्षेत्र का रेडियो सञ्चार तब आरम्भ हुआ जब उनका आतंक समाप्त हो गया।

अन्तरिक्षीय यानों के धरती पर आवागमन की इन साक्षियों से हम इस निष्कर्ष पर सहज ही पहुँच सकते हैं कि इस ब्रह्माण्ड में हम मनुष्यों की अपेक्षा कहीं विकसित सम्पदाएँ मौजूद है। हमारे उड्डयन ज्ञान एवं साधनों की अपेक्षा वे कहीं आगे हैं। यदि ब्रह्माण्डव्यापी चेतन सत्ता पारस्परिक सहयोग के आधार पर आदान−प्रदान का द्वार खोज सके तो दूरवर्ती ग्रह तारकों के भी निकटवर्ती पड़ौसी बन कर रहने की सुखद परिस्थितियाँ प्राप्त हो सकती हैं। विज्ञान ने इस पृथ्वी पर रहने वाले सुदूरवर्ती लोगों को यातायात साधनों के आधार पर एक गली, मुहल्ले में रहने वालों की तरह बना दिया अब अन्तर्ग्रही सहयोग एवं आदान−प्रदान का द्वार खुलने की बारी हैं।

एक ओर अन्तर्ग्रही सहयोग के प्रयास और दूसरी ओर मनुष्य का अधिकाधिक संकीर्णतावादी स्वार्थपरायण बनते जाना−कैसी है यह विधि की विचित्र विडम्बना।


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