अमेरिकन एकेडेमी आफ जनरल प्रेक्टिस के नेशनल आफीसर डाक्टर और फ्लोरिज (अमेरिका) के ख्याति नामा डाक्टर वाल्टर डबल्यू साकेट का कथन है कि आदमी जिन फिजूल बातों में उलझ गया है उनमें एक यह भी है कि दूध और उससे बने पदार्थों को आवश्यक मानकर पेट में ठूँसते रहना। उनने अपनी पुस्तक “ब्रिगिंग आफ बेवीज” में लिखा है कि दूध बेशक एक महत्वपूर्ण पदार्थ है। उसमें सब तो नहीं, पर बहुत सारे पोषक पदार्थ मिलते हैं। पर वह उपयुक्त केवल बच्चों के लिए ही हैं। “दूध एक पूर्ण भोज्य पदार्थ है।” इस मान्यता का मैं तभी समर्थन करूंगा जब उसमें ‘केवल शिशुओं के लिए’ शब्द और जोड़ दिया जाय। वे कहते हैं चुहिया से लेकर हाथी तब तक सभी प्राणियों के बच्चे ही दूध पर रहते हैं और बड़े होकर सब दाँतों से कुतरी जाने वाली खुराक पर निर्भर रहते हैं तो वही बात मनुष्य पर क्यों लागू नहीं होनी चाहिए।
दूध के सम्बन्ध में विरुद्ध विचार रखने वालों में डा0 साकेट अकेले नहीं हैं उनके मत का समर्थन संसार के अन्यान्य स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने भी किया है। न्यूयार्क सिटी हैल्थ डिपार्टमेन्ट ब्यूरो आफ न्यूट्रिशन के अधिकारी डा0 नार्मन जोलिफ ने कहा है मनुष्य को अधिकाधिक तीस प्रतिशत ही वसा ऊर्जा प्राप्त करनी चाहिए और वह हमारे शाकाहारी भोजन से सहज ही प्राप्त हो जाती है। दूध अथवा माँस, मछली की आवश्यकता मनुष्य को बिलकुल भी नहीं हैं।
अमेरिकन मेडिकल ऐसोसिएशन के अधिवेशन में कनाडा के प्रतिनिधि डाक्टर हान्स सिलाई ने बताया कि उनके परीक्षणों में यह निष्कर्ष सामने आया है कि कैल्शियम की अनावश्यक मात्रा ग्रहण करने वाले लोगों को समय से पहले बुढ़ापा आ घेरता है। दूध में कैल्शियम की बहुलता है यदि उसके सेवन में अनावश्यक उत्साह दिखाने वाले अपना यौवन समय में पहले गँवा बैठते हैं। उनने छोटे बालकों को बाहरी दूध की अपेक्षा फलों के रस पर पालने की सलाह देकर अपने संरक्षण में कितने ही बालकों को उनकी अपेक्षा देकर अपने संरक्षण में कितने ही बालकों को उनकी अपेक्षा अधिक स्वस्थ बनाया जिनको बाहरी दूध पर पाला गया था। उन्होंने गर्भिणी महिलाओं को भी दूध के स्थान पर फलों का रस लेने की ही सलाहें दी है और इसका अधिक अच्छा परिणाम देखा है।
अपने देश में दूध का उत्पादन ही बहुत कम हैं। दुबले दुधारू पशु बहुत थोड़ा दूध देते हैं और उनमें से अधिकाँश भरी जवानी में ही कसाई के घर चले जाते हैं। गरीबी के कारण इन दिनों तो लोग इतना महंगा दूध खरीद भी नहीं पाते। जो खरीद सकते हैं उन्हें पानी अरारोट आदि न जाने क्यों मिला सफेद पानी मिलना है। ऐसी दशा में दूध का मोह छोड़ा भी जा सकता है। यदि खरीदना और पीना ही हो तो गाय के दूध को ही प्रमुखता देनी चाहिए।
गोदुग्ध में ए. बी. सी. डी. ई. वर्ग के विटामिन समुचित मात्रा में विद्यमान हैं, जबकि भैंस के दूध में वे बहुत ही कम पाये जाते हैं। उसमें कैरोटिन तत्व न रहने से एक कठिनाई यह भी रहती है कि वे जल्दी ही नष्ट हो जाते हैं। गोदुग्ध में जो पीलापन पाया जाता है वह उसकी अति महत्वपूर्ण रासायनिक विशेषता है।
गोदुग्ध में प्रोटीन 3.3 वसा 3.6 शकर 4.9 और क्षार 7.75 प्रतिशत होते हैं उसके प्रोटीन को तीन भागों में विभक्त किया जा सकता है। (1) एलब्यूमिन (2) केसिन (3) लैक्टोगलो व्यूमेन। यह तीनों ही मानव शरीर की महत्वपूर्ण आवश्यकताओं को पूरा करते हैं। संसार के विविध पदार्थों में पाये जाने वाले प्रोटीनों में गोदुग्ध का प्रोटीन सर्वोत्तम माना गया है उसमें जो एमिनोएसिड पाये जाते हैं वैसा संतुलित स्तर अन्यत्र कहीं नहीं पाया जाता है।
इस दृष्टि से उपयोगिता केवल गोदुग्ध की है। भैंस का पीने की अपेक्षा तो सोयाबीन पानी में पीसकर उसका सफेद पानी दूध के स्थान पर काम में लेना अधिक सस्ता ओर अधिक उपयोगी है।