भगवान बुद्ध का जब मरण काल निकट आया तब उन्होंने अपने शिष्यों को बुलाकर कुछ उपदेश दिये। उन्होंने कहा−
“धर्म मनुष्य को मर्यादाओं में रखता है और शालीन बनाता है। बिना तट की सरिता उच्छृंखल होकर अपना और सबका विनाश करती है। धर्म के सीमा बन्धन तोड़ना मत।”
“परस्पर एक होकर रहना। कारण कुछ भी हो− पृथकतावाद मत अपनाना। जो तुम में फुट डाले उनसे सतर्क रहना और उन्हें कभी क्षमा मत करना।”
“जहाँ रहते हो उसे पथ विश्राम मात्र मानना। तुम्हारा घर तो वहाँ हैं, जहाँ जीवन लक्ष्य पूर्ण होता है। रास्ते के साथियों से मिलना जरूर, पड़ावों पर ठहरना भी, पर उनके साथ इतने मत उलझ जाना कि मञ्जिल ही भूल जाये।”
“भिक्षुओं, बोलना कम, करना ज्यादा। जितना ज्यादा बोलोगे उतना ही तुम्हारा सम्मान गिरेगा। उथले लोग ही बहुत बकवास करते हैं। तुम जो बोलो−ठोस, मर्यादित, थोड़ा, अनुभूत और विश्वास पूर्वक बोलना। उस थोड़े से भी बड़ा प्रयोजन सधेगा।”